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मानहानि की परिभाषा
मानहानि (Defamation) की परिभाषा विभिन्न विधिशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की है. कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित है-
अण्डरहिल के अनुसार, “मानहानि प्रतिष्ठा को कलंकित करने वाला ऐसा झूठा कथन है, जिसका प्रकाशन किया गया हो, जिसके प्रकाशन से वादी की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँची हो तथा जिसको प्रकाशित करने का कोई विधिक औचित्य न हो.”
सामण्ड के अनुसार, “मानहानि के अपकृत्य में किसी अन्य व्यक्ति के सम्बन्ध में बिना किसी औचित्य के असत्य एवं मानहानिकारी कथन का प्रकाशन होता है.”
प्रोफेसर विनफील्ड के अनुसार, “किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में ऐसे कथन को मानहानि कहा जाता है, जिससे वह व्यक्ति समाज के विवेकशील सदस्यों की दृष्टि में सामान्यतः गिर जाय या जिसके कारण लोग उससे घृणा करने लगें.”
दीपक कुमार विश्वास बनाम नेशनल इंश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड (AIR 2006 गौहाटी 10) के वाद में गौहाटी न्यायालय ने सामण्ड की परिभाषा को उद्धृत करते हुये यह अभिकथन किया कि उनके अनुसार मानहानि एक ऐसा कथन है जो उस व्यक्ति को जिसके प्रति वह कथन किया जाता है, की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाता है, अर्थात् समाज में सही सोच रखने वाले व्यक्तियों की नजरों में वह व्यक्ति गिर जाता है और वे उसे घृणा, अपमान, उपहास की दृष्टि से देखते हैं और नापसंद करते हुये उससे दूरी बनाये रखते हैं.
इस प्रकार किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में किसी कथन को शब्दों, लेख चित्रों या महत्त्वपूर्ण संकेतों द्वारा प्रकाशित करना, जिसके कारण सम्बन्धित व्यक्ति के प्रति घृणा, उपहास या अपमान का भाव पैदा हो और उसकी प्रतिष्ठा को धक्का लगे तो ऐसे कृत्य को मानहानि कहा जाता है |
मानहानि के आवश्यक तत्व
मानहानि अपवचन (Slander) अथवा अपलेख (Libel) के द्वारा हो सकती है. दोनों ही दशाओं में मानहानि के अपकृत्य के लिए निम्नलिखित अवयव विद्यमान होने चाहिए-
1. कथन मानहानि का कारण हो
कथन को मानहानि का कारण माना जाता है यदि-
- यह वादी के प्रति घृणा, अपमान, उपहास अथवा बदनामी पैदा करता है, या
- उसको उसके पेशा या व्यापार में क्षति पहुँचाता है या
- उसको पड़ोसियों की दृष्टि में उपेक्षित अथवा तिरस्कृत करने योग्य बना देता है.
आशय का महत्व
यदि कथन मानहानिकारक है और असत्य है तो आशय का कोई महत्व नहीं है. कानून उसमें दुराशय की परिकल्पना कर लेता है.
2. कथन वादी के सन्दर्भ में होना चाहिए
मानहानि के वाद में वादी को यह प्रमाणित करना होता है कि कथन वादी से सम्बन्धित था. इस सम्बन्ध में प्रश्न यह नहीं है कि प्रतिवादी का अभिप्राय किससे था, वरन् यह है कि कथन ने किसे आघात पहुँचाया है? प्रतिवादी का आशय क्या था यह न देखकर यह देखा जाता है कि परिस्थितियों में सापेक्ष सामान्य विवेक वाले व्यक्तियों ने उस कथन को क्या समझा है? जिस व्यक्ति को कथन का प्रकाशन किया गया है यदि उसने उसे युक्तियुक्त आधार पर वादी से सम्बन्धित समझा है तो वह कथन वादी से सम्बन्धित माना जाएगा.
राम जेठमलानी बनाम सुब्रामनियम स्वामी, (AIR 2006 दिल्ली 300) के मामले में स्वर्गीय राजीव गांधी की हत्या की जांच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया गया, जिसमें प्रतिवादी गवाह के रूप में उपस्थित हुआ और उसने अपने लिखित कथन में वादी (वरिष्ठ अधिवक्ता) के विरुद्ध अत्यन्त गलत आरोप लगाये कि वह LTTE से धन प्राप्त कर रहे थे. निर्णीत किया गया कि उक्त कथन मानहानिकारक था तथा विशेषाधिकार के परे तथा वास्तविक द्वेष से प्रेरित था. प्रतिवादी ने माफी मांगने से इन्कार कर दिया, न्यायालय ने प्रतिवादी के विरुद्ध पांच लाख रुपये नुकसानी के रूप में वादी को प्रदान किये.
3. कथन प्रकाशित होना चाहिए
कथन के प्रकाशन से अभिप्राय उस तथ्य का ज्ञान वादी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को करने से है. मानहानि के लिए कथन का बोलना या लिखा जाना ही पर्याप्त नहीं है, यह अनिवार्य है कि कथन का प्रकाशन किया जाय. मानहानि के अन्तर्गत चाहे वह अपवंचन हो अथवा अपलेख, जब तक उसका प्रकाशन नहीं हुआ है कि उसके लिए वाद दायर नहीं किया जा सकता है.
पति एवं पत्नी
इंग्लैण्ड में पति-पत्नी को एक माना गया है. पति द्वारा पत्नी या पत्नी द्वारा पति से कहे गये शब्द मानहानि के अन्तर्गत नहीं आते हैं. लेकिन-
- पति के सम्बन्ध में पत्नी या पत्नी के सम्बन्ध में पति को मानहानिकारक पत्र भेजना मानहानिकारक माने जा सकते हैं.
- जब पति अपनी पत्नी या पत्नी अपने पति के सम्बन्ध में अपमानपूर्ण बात इस प्रकार कहे कि किसी तीसरे व्यक्ति को ज्ञान हो, तो कथन प्रकाशित समझा जायेगा तथा बाद चलाने योग्य होता है.
पुनरावृत्ति
किसी मानहानि कारक कथन के प्रकाशन की पुनरावृत्ति एक नया प्रकाशन माना जायेगा तथा नये वाद का वादकरण बनता है |