मानहानि के प्रकार

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मानहानि के प्रकार

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. उसका समाज में अपना अस्तित्व होता है, और हर व्यक्ति अपने अस्तित्व को बनाये रखने का प्रयास करता है.

मनुष्य को अनेक सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करना होता है एवं उसके लिए अनेक संघर्षो का सामना भी करना पड़ता है. उसे सामाजिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत सुरक्षा के अनेक अधिकार उपलब्ध हैं और वह उन अधिकारों का स्वच्छन्द होकर उपयोग करना चाहता है. वह इन अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या अवरोध पसन्द नहीं करता, खासतौर से वह अपनी प्रतिष्ठा के अधिकार में तो किसी प्रकार का विघ्न नहीं चाहता; क्योंकि सभी अधिकारों में प्रतिष्ठा का अधिकार एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

हर व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए उद्यत रहता है. यदि कोई भी व्यक्ति उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाता है तो वह दण्डनीय माना जाता है क्योंकि प्रतिष्ठा के पीछे हो उसका सारा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास निहित रहता है |

मानहानि के प्रकार

मानहानि के दो प्रकार है-

  1. अपवचन और
  2. अपलेख।

1. अपवचन

अपवचन (Slander) एक मिथ्या एवं मानहानिकारक शाब्दिक अथवा मौखिक कथन है जो अस्थायी हो और जो बिना किसी विधिक औचित्य के वादी की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाने वाला हो. प्रतिष्ठा से अभिप्राय किसी के बारे में लोगों की सामान्य राय से है. अपवचन कुछ अपवादों को छोड़कर बिना विशिष्ट क्षति के प्रमाण के अनुयोज्य नहीं है |

अपवचन के आवश्यक तत्व

1. आरोपित कथन मानहानिकारक होना चाहिए

जब यह वादी की प्रतिष्ठा को दूसरों की दृष्टि में नीचे गिराता है या सामाजिक अपमान का कारण बनता है, तो यह उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार किसी प्रकाशित कथन से वादी के प्रति घृणा, उपहास या अपमान के भाव पैदा हो और उनसे व्यवसाय या पेशों पर असर पड़ता है.

एन्जिल बनाम H.H. बुशेल एण्ड कम्पनी लिमिटेड (1967) में यह कहा गया था कि यह कहना कि प्रतिवादी व्यवसाय से सम्बन्धित नैतिकता से अनभिज्ञ है, उसके लिए मानहानि होगा. यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे वचन उसके व्यवसाय में क्षति पपहुँचाए. उसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाना ही पर्याप्त है.

सालेन्दनदासी बनाम गज्जला मल्ला रेड्डी (AIR 2008 N. O. C. आंध्र प्रदेश) के मामले में तेलुगू दैनिक समाचार पत्र में एक समाचार इस आशय का प्रकाशित किया गया था कि वादी अधिवक्ता द्वारा एक हरिजन महिला के साथ बलात्कार किया गया. यह समाचार पुलिस थाने में वादी के विरुद्ध दर्ज कराई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) पर आधारित होना बताया गया. वस्तुतः समाचार कुछ बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित किया गया था. न्यायालय ने इसे मानहानिकारक माना.

2. आरोपित अपमानकारी वचन असत्य होना चाहिए

अपवचन के लिए यह आवश्यक है कि कथन असत्य हो और किसी विशेषाधिकार अथवा निष्कपट, निष्पक्ष आलोचना पर आधारित नहीं होना चाहिए.

3. इसका सम्बन्ध वादी से होना चाहिए

आरोपित वचन वादो से सम्बन्धित होना चाहिये. कथन वादी के सम्बन्ध में है या नहीं, इसका परीक्षण इस आधार पर होता है कि जिन लोगों को उसका प्रकाशन किया गया है उन लोगों ने उसे वादी से सम्बन्धित समझा है या नहीं.

4. आरोपित अपवचन का प्रकाशन होना चाहिए

प्रकाशन से अभिप्राय वचन में निहित विषय का तीसरे व्यक्ति को ज्ञान कराने से है. यह ज्ञान भाषा, भाव-भंगिमा अथवा किसी भी माध्यम से कराया जा सकता है.

5. इसका प्रकाशन प्रतिवादी द्वारा किया गया हो.

6. आरोपित अपवचन से वादी को विशेष क्षति होनी चाहिए

यह उन विशेष में आता हो जिसमें विशेष क्षति प्रमाणित नहीं करनी पड़ती. अपवचन कुछ अपवादों को छोड़कर स्वतः अनुयोज्य (Actionable) नहीं है. अपवचन तभी अनुयोज्य होता है जब उसमें विशेष क्षति प्रमाणित की जाय. केवल प्रतिष्ठा की हानि मौखिक शब्दों को अपचन नहीं बना सकती, जब तक कि कोई विशिष्ट क्षति न हुई हो अथवा कोई ऐसी क्षति न हुई है जिसे धन के रूप में आँका जा सके.

लेकिन यदि क्षति अथवा प्रतिष्ठा को हानि का तथ्य साबित नहीं होता है तो मानहानि के अपराध का गठन नहीं होगा.

अपवचन कब स्वतः अनुयोज्य होता है?

अपवचन के सम्बन्ध में सामान्य नियम है कि अपवचन स्वतः अनुयोज्य नहीं होता है बल्कि अपवचन को अनुयोज्य बनाने के लिए विशिष्ट क्षति प्रमाणित करनी चाहिये. इस सामान्य नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं-

1. कारावास से दण्डनीय अपराध का आरोप

जब वादी पर अपवचन द्वारा किसी ऐसे अपराध का आरोप लगाया गया हो, जो कारावास के दण्ड से दण्डनीय हो न कि केवल जुर्माने के दण्ड से.

2. संक्रामक रोग से ग्रसित होने का आरोप

जब वादी पर किसी ऐसी बीमारी से ग्रस्त होने का आरोप लगाया जाय जिसमें लोग उसके साथ उठना-बैठना बन्द कर दें. यौन रोग, कोढ़ इस नियम में आते हैं, किन्तु चेचक (Smallpox) नहीं.

3. वादी के सम्बन्ध में कार्य या व्यवसाय के प्रति, अयोग्यता या अक्षमता का आरोप लगाना

वादी के पद, व्यवसाय एवं पेशे के सम्बन्ध में उसके आचरण को लांछित करने वाले आरोप लगाये गये हों.

4. महिला पर दुश्चरित्र होने का आरोप

इंग्लैण्ड में “The Slander of Women Act, 1891 के अनुसार महिला अथवा लड़कियों के प्रति चरित्रहीनता या परपुरुषगमन (Unchastity or adultery) का आरोप लगाने सम्बन्धी अपवचन स्वतः अभियोज्य हैं. भारत में इस प्रकार के अपवनन एवं अपलेख भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 499 के अन्तर्गत हैं और स्वतः अनुयोज्य हैं.

5. जाति निन्दा

भारतीय न्यायालयों के द्वारा प्रारम्भ में किसी कुलीन उच्च जाति की महिला को नीची जाति की बताना उसके एवं उसके पति दोनों के लिए हानिकारक माना था |

अपलेख

अपलेख किसी असत्य एवं अपमानकारी लिखित कथन का स्थायी प्रकाशन होता है जिससे बिना किसी औचित्य या कारण के, किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा अथवा सम्मान को ठेस पहुँचे. अभिलेख की अभिव्यक्ति लेखन छपाई या चित्रों के माध्यम से होती है. साथ ही इन माध्यमों का प्रकाशन होना भी आवश्यक है |

अपलेख के आवश्यक तत्व

किसी अपलेख के लिए बाद में निम्नलिखित बातें सिद्ध करनी पड़ती हैं-

1. कथन की असत्यता

वादों को कथन की असत्यता सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. विधि को धारणा वादी के पक्ष में रहती है, अतः प्रतिवादी का दायित्व है कि वह कथन की सत्यता को प्रमाणित करे.

2. कथन स्थायी एवं स्पष्ट हो

अपलेख के लिए कथन को स्थायी एवं स्पष्ट अथवा दृश्यमान होना चाहिए जैसे- छापा हुआ चित्र, पुतला, सिनेमा की फिल्म, ग्रामोफोन का रिकार्ड.

इंग्लैण्ड के मानहानि अधिनियम, 1952 के अनुसार वायरलेस, टेलीग्रामों के द्वारा भाषण प्रसारित करना अपलेख है.

3. कथन अपमानजनक होना चाहिये

कथन ऐसा हो जिससे वादी के प्रति घृणा, उपहास या अपमानकारक भावनायें पैदा हो और उसके व्यवसाय एवं पेशा को आघात पहुँचे.

बाला राम बनाम सुखसम्पत लाला (AIR 1975 RAJ 11) के वाद में वादी अचल सम्पत्ति का सौदा तय कराने वाला एक दलाल था. प्रतिवादी ने एक समाचार पत्र में एक इश्तहार छापा, जिससे वादी पर झूठे सौदे तय कराने का आरोप लगाया गया था. वादी ने इश्तहार के लिये प्रतिवादी एवं प्रकाशक के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का वाद दायर किया, जिसमें व्यापार में हुई क्षति, समाज के लोगों की नजरों से हुई मानहानि के लिए क्षतिपूर्ति माँगी. न्यायालय ने सामान्य एवं विशिष्ट दोनों प्रकार की क्षति के लिए क्षतिपूर्ति दिलवाई.

4. कथन वादी के सम्बन्ध में हो

जिन लोगों को इसका प्रकाशन हुआ है वह तथा उन परिस्थितियों के साथ मिलकर सामान्य विवेक वाला व्यक्ति उस कथन को वादी के सम्बन्ध में समझे तो वह वादी के सम्बन्ध में माना जायेगा.

5. अपलेख प्रकाशित किया गया हो

अपलेख का प्रकाशन अत्यन्त आवश्यक है और प्रकाशन वादी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष किया गया हो.

कब अपलेख स्वतः अनुयोज्य है?

अपलेख स्वतः अनुयोज्य होते हैं. अर्थात् अपलेख के मामले में वास्तविक या विशिष्ट क्षति प्रमाणित नहीं करनी पड़ती है |

अपवचन तथा अपलेख के बीच अन्तर

  1. अपवचन (Slander) का सम्बन्ध बोले हुए शब्दों तथा कानों से सुनी हुई बातों से होता है, जबकि अपलेख (Libel) का सम्बन्ध लिखित शब्दों से होता है.
  2. अपवचन अस्थाई रूप में मानहानि है, जबकि अपलेख स्थाई दशा में मानहानि है.
  3. अपवचन केवल अपकृत्य है तथा वचन देशद्रोह, अश्लील होने पर ही अपराध हो सकते हैं. परन्तु भारत में यह अपकृत्य तथा अपराध दोनों की श्रेणी रखा गया है, जबकि यह अपकृत्य तथा अपराध दोनों होता है.
  4. अपवचन अपवादों को छोड़कर स्वतः अनुयोज्य नहीं है, जबकि अपलेख स्वतः अनुयोज्य है.
  5. अपवचन उत्तेजनावश भी हो सकता है, जबकि अपलेख दुराशय की धारणा को प्रदर्शित करता है.
  6. अपवचन के पुन: प्रकाशन में प्रकाशन की बदनियत साबित होती है, जबकि अपलेख का वास्तविक प्रकाशक निर्दोष हो सकता है |

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