दान (हिबा) क्या है? | दान (हिबा) की परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

दान (हिबा) क्या है? | दान (हिबा) की परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

दान (हिबा) की परिभाषा

मुल्ला ने हिबा अर्थात् दान की परिभाषा इस प्रकार दी है-

मुस्लिम विधि के अनुसार, “हिबा या दान सम्पत्ति का ऐसा तुरन्त अन्तरण है जिसको बिना किसी प्रतिदान के बदले में गया हो और जिसको दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति स्वीकार कर ले”.

फैजी ने हिबा की परिभाषा देते हुये कहा है कि-

हिबा सम्पत्ति के स्थूल का तुरन्त एवं बिना शर्त बिना किसी प्रतिदान के अन्तरण है.

विधि ग्रन्थ हेदाया में उल्लिखित है कि हिबा किसी वर्तमान सम्पत्ति के स्वामित्व का प्रतिफल रहित एवं बिना शर्त के किया गया तुरन्त प्रभावी होने वाला हस्तान्तरण है. जो व्यक्ति अपनी सम्पत्ति दान द्वारा अन्तरित करता है उसे दाता और वह व्यक्ति जो दान ग्रहण करता है उसे दानग्रहीता कहते हैं |

हिबा के प्रकार

हिबा निम्नलिखित प्रकार का होता है-

1. हिबा-बिल-एवज

यह एक विशिष्ट प्रकार का दान होता है जिसके बदले प्रतिफल दिया जाता है. किसी चीज के एवज में किया गया दान हिबा-बिल-एवज कहलाता है.

ऐसी हिबा एक प्रकार से विक्रय के समान होती है. इस प्रकार की हिबा भारत में ही प्रचलित है. ऐसी हिबा के लिये दो बातें जरूरी हैं-

  1. दान देने वाले का सद्भावपूर्ण आशय यह होना चाहिये कि वह सम्पत्ति पर अपना कब्जा छोड़ देगा व दानग्रहीता को दे देगा.
  2. दाता वास्तव में विनिमय या प्रतिफल देता है.

2. हिबा-ब-शर्तुल-एवज

जब दान के समय यह करार होता है कि दान लेने वाला भी कुछ न कुछ प्रतिफल के रूप में दाता को देगा तो ऐसा दान हिया-ब-शर्तुल-एवज कहलाता है.

ऐसा दान प्रतिफल की शर्त के साथ किया जाता है. जब शर्त पूरी हो जाती है अर्थात् प्रतिफल दे दिया जाता है तो दान विक्रय का रूप धारण कर लेता है. सामान्य हिया की तरह इसमें भी कब्जे का प्रतिदान किया जाना जरूरी होता है. शर्त के पालन से पहले दान को वापस लिया जा सकता है किन्तु शर्त के पूरा होते ही दान अप्रतिसंहरणीय बन जाता है. इस प्रकार की हिबा प्रारम्भ में सामान्य हिबा की तरह ही होती है किन्तु बाद में अर्थात् प्रतिफल देते ही विक्रय बन जाती है.

जहां सम्पत्ति विभाज्य होती है वहां मुशा की हिबा अमान्य अर्थात् अनियमित होती है |

दान के आवश्यक तत्व

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत किसी दान के विधिमान्य होने के लिये निम्नलिखित शर्तों का पालन होना अनिवार्य है-

  1. दान (हिबा) की घोषणा,
  2. दान की स्वीकृति,
  3. दान की सम्पत्ति के कब्जे का परिदान।

1. दान की घोषणा

दाता की ओर से दान की घोषणा होनी चाहिये. दूसरे शब्दों में, दाता द्वारा दान की इच्छा स्पष्ट रूप से घोषित होनी चाहिये, चाहे वह प्रत्यक्ष हो या उपलक्षित.

मुहम्मद हेसाबुद्दीन बनाम मुहम्मद हेसारुद्दीन (AIR 1984 गौहाटी 41) के बाद में गौहाटी उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया कि मुस्लिम विधि में हिबा लिखित हो या अलिखित दोनों विधितः मान्य है, क्योंकि हिबा का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है.

यदि हिबा (दान) के सभी आवश्यक तत्व पूरे किये गये हैं तो हिबा (दान) इस कारण शून्य नहीं होगा कि दान की घोषणा मौखिक रूप से की गई है.

दाता का मुस्लिम होना तो आवश्यक है ही, साथ-साथ उसे स्वस्थचित्त का और भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 में वर्णित वयस्कता की आयु प्राप्त होना ही आवश्यक है. दान के सम्बन्ध में वयस्कता की आयु 18 वर्ष है. मुस्लिम विधि को वयस्कता की आयु हिबा पर लागू नहीं होती है. उन्मत्त व्यक्ति भी स्वस्थचित्तता के मध्यान्तर में दान कर सकता है.

2. दानग्रहीता द्वारा स्वीकृति

दानग्रहीता द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दान की स्वीकृति होनी चाहिये. यह स्वीकृति चाहे प्रत्यक्ष हो या उपलक्षित हो. दानग्रहीता द्वारा दान का स्वीकार किया जाना आवश्यक है. दानग्रहीता अवयस्क हो सकता है या वयस्क, नैसर्गिक व्यक्ति हो सकता है या कृत्रिम अवस्था, लिंग, जाति या धर्म दानग्रहोता होने में कोई विघ्न उपस्थित नहीं करता है. परन्तु दान के समय दानग्रहीता का अस्तित्व में होना आवश्यक है.

गर्भस्थ शिशु जो दान की घोषणा के 6 मास के भीतर पैदा होता है विधि में अस्तित्व में माना जाता है और वह दानग्रहीता हो सकता है. जब दानग्रहीता अवयस्क हो तो दान को स्वीकृति उसके विधिक संरक्षक द्वारा की जानी चाहिये.

3. कब्जे का परिदान

दाता द्वारा दान की विषय-वस्तु पर दानग्रहीता को कब्जा देना अनिवार्य है. यह कब्जा वास्तविक या आन्वयिक हो सकता है. कब्जा देना दान में बहुत हो महत्वपूर्ण कृत्य है. मुस्लिम विधि में बिना कब्जा दिये दान अमान्य होता है. मुस्लिम विधि में कौन से दान (हिबा) नहीं हो सकते हैं-

निम्नलिखित दान मुस्लिम विधि के अन्तर्गत नहीं हो सकते हैं-

1. अजन्मे व्यक्ति को दान

उस व्यक्ति को दान जो जन्मा नहीं है, निष्प्रभावी होता है, क्योंकि दान में दानग्रहीता द्वारा सम्पत्ति स्वीकार करना आवश्यक शर्त है. जहां दानग्रहीता हो ही नहीं वहां उसे सम्पत्ति कहाँ से उपलब्ध हो सकेगी.

अपवाद

  1. वह सन्तान जो दान के बाद 6 माह के भीतर पैदा हो जाय या वह जो गर्भ में हो, योग्य दानग्रहीता हो सकता है.
  2. शिया कानून में अजन्मे व्यक्ति को दान मान्य नहीं है परन्तु जीवन कालिक हित का दान उस व्यक्ति के पक्ष में मान्य होता है यदि उसके पैदा होने पर हित जारी कर दिया जावे.

2. भावी वस्तु का दान

भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी वस्तु का दान नहीं किया जा सकता है, क्योंकि दान के समय सम्पत्ति का अस्तित्व में होना आवश्यक है.

ट्रान्सफर आफ प्रापर्टी एक्ट, 1882 की धारा 6 (3) के अनुसार, उत्तराधिकार की सम्भावना हस्तान्तरण योग्य नहीं है. अतः हस्तान्तरण शून्य है. इसी प्रकार दाता के खेत में पैदा होने वाले अगले वर्ष के अनाज का दान शून्य होता है.

3. घटनापेक्षित दान

भविष्य में या भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के आधार पर दान करने की घोषणा मुस्लिम विधि के अनुसार, निष्प्रभावी मानी जाती है.

उदाहरण के लिए,

  1. यदि ‘क’, ‘ख’ से कहे कि ‘क’ के निःसन्तान मरने पर ‘क’ अपना मकान ‘ख’ को दान दिया गया मानेगा, तो यह दान शून्य होगा.
  2. ‘अ’, ‘ब’ को अपने मकान का दान इस शर्त पर करता है कि ‘ब’, ‘स’ से विवाह करेगा. यह दान घटनापेक्षित दान की कोटि में आयेगा, अतः मान्य नहीं है.

4. अविभाजित भाग का दान

विभाज्य सम्पत्ति के अविभाजित भाग का दान अनियमित होता है.

6. सशर्त दान

दान (हिबा) का अर्थ है दानग्रहीता को सम्पत्ति का तुरन्त तथा बिना कोई प्रतिफल प्राप्त किये अन्तरण. इस कारण दान में किसी प्रकार की शर्त नहीं होनी चाहिये. यदि दान में किसी प्रकार की शर्त लगाई गई है या उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध लगाया गया है तो दान तो मान्य होगा, किन्तु उसके साथ लगाई हुई शर्त या प्रतिबन्ध निष्प्रभावी माना जायेगा.

V. श्री रामचन्द्र अवाधिनी बनाम शेख अब्दुल रहीम, (AIR 2014 SC 3464) के वाद में पति ने पत्नी के पक्ष में अचल सम्पत्ति का दान किया था जिसके द्वारा पत्नी को दान की विषय-वस्तु के काय का अन्तरण किया गया था, परन्तु इसके उपयोग एवं व्ययन पर नियंत्रण हेतु शर्तें दानपत्र में दी गई थीं.

उच्चतम न्यायालय यह अवधारित किया कि दानपत्र में संलग्न ऐसी शर्तें, जिनके द्वारा दान की विषय-वस्तु का उपयोग करने अथवा उसका व्ययन करने के सम्बन्ध में अंकुश लगाया जाता है, शून्य होती है. दानकर्ता के द्वारा दान की गयी सम्पत्ति का विक्रय विधिपूर्ण एवं मान्य है |

दान कब प्रतिसंहत या रद्द किया जा सकता है?

मुस्लिम विधि में सामान्यतः स्वेच्छा से किये गये सभी संव्यवहार रद्द किये जा सकने योग्य होते हैं. किन्तु पैगम्बर मुहम्मद की परम्परा के अनुसार, पूर्णकृत दान रद्द करना अनुचित होता है अतः सुत्र विधि पूर्णकृत दान केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में रद्द किया जा सकता है-

1. कब्जा देने के पूर्व

दान दाता द्वारा कब्जा देने के पूर्व कभी भी रद्द किया जा सकता है. कारण यह है कि कब्जा देने के पूर्व दान पूर्ण नहीं होता है.

बीबी रियाजन खातून बनाम सदरूल आलम, (AIR 1996 पटना 156) नामक वाद में प्रतिपादित किया गया कि दान रद्द किया जा सकता है यदि दानकर्ता ने सम्पत्ति पर से अपना अधिकार एवं नियंत्रण समाप्त नहीं किया है तथा दान प्राप्तकर्त्ता को सम्पत्ति का कब्जा प्रदान नहीं किया गया है.

2. कब्जा देने के पश्चात्

कुछ प्रकार के दान कब्जा देने के पश्चात् रद्द नहीं किये जा सकते हैं. परन्तु सुन्नी विधि में सामान्यतः दान कब्जा देने के बाद भी दानग्रहीता की सम्मति अथवा न्यायालय की किसी डिक्री द्वारा रद्द किये जा सकते हैं.

जैनाबाई बनाम सेठना, (34 Bom 704), शिया विधि में पूर्णकृत दान भी बिना न्यायालय की अनुमति या दानग्रहीता की सहमति के रद्द हो सकता है.

यदि हिबा किसी मुसलमान ने किसी गैरमुसलमान को किया हो तो हिबा रद्द करने में मुस्लिम वैयक्तिक विधि का ही प्रयोग होगा |

दान कब रद्द नहीं किये जा सकते हैं?

  1. जब दाता की मृत्यु हो जाय. केवल दाता दान को रद्द कर सकता है. उसकी मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी दान को रद्द नहीं कर सकते हैं.
  2. जब दानग्रहीता की मृत्यु हो जाती है.
  3. जब दानग्रहीता दाता से वर्जित डिक्री के भीतर सम्बन्धित हो.
  4. जब दान पति द्वारा पत्नी को या पत्नी द्वारा पति को दिया गया है.
  5. जब दान में दी गई वस्तु-
    • दानग्रहीता द्वारा विक्रय, दान या अन्य प्रकार से अन्तरित कर दी गयी हो,
    • खो गई हो या नष्ट हो गयी हो,
    • ऐसी परिवर्तित हो गई हो कि पहिचानी न जा सके, जैसे गेहूँ का आटा हो गया हो.
    • मूल्य में अधिक बढ़ गई हो और वृद्धि इस प्रकार की हो कि मुख्य वस्तु से अलग न की जा सकती हो, या
  6. जब दाता दान के बदले में कोई वस्तु प्राप्त किये हो (हिबा-बिल-1 अविखण्डनीय होता है) मेहर के बदले में दिया गया दान रद्द नहीं किया जा सकता है.
  7. जब दान का उद्देश्य धार्मिक हो जिससे वह सदका हो.
  8. जब दान के फलस्वरूप ऋणी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया हो |

हिबा-बल-एवज और हिबा-ब-शर्तुल-एवज के बीच अंतर

  1. हिबा-बिल-एवज में प्रत्यक्ष और तात्कालिक प्रतिकर के रूप में हिबा की संविदा में “एवज” अन्तर्यस्त होता है, जबकि हिबा-ब-शर्तुल-एवज में मूल हिबा के साथ एवज का अनुबंध और उसकी संविदा की जाती है.
  2. हिबा-बिल-एवज की मान्यता के लिये कब्जे का परिदान आवश्यक नहीं है, जबकि हिवा-ब-शर्तुल-एवज की मान्यता के लिये कब्जे का परिदान आवश्यक है.
  3. हिबा-बिल-एवज में किये जाने के समय से ही यह जाने पर ही केवल यह अनिवर्तनीय होता है, जबकि हिवा-ब-शर्तुल-एवज में दानग्रहीता द्वारा एवज का भुगतान किये जाने पर ही केवल यह अनिवर्तनीय होता है.
  4. हिबा-बिल-एवज में विक्रय की संविदा के समान होता है, जबकि हिवा-ब-शर्तुल-एवज में आरम्भ में यह एक हिबा रहता है परन्तु एवज के भुगतान हो जाने पर यह विक्रय की प्रकृति धारण कर लेता है |

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