साक्षियों की मुख्य परीक्षा, प्रतिपरीक्षा एवं पुनः परीक्षा किसे कहते हैं? तीनों में क्या अंतर है?

गवाहों की मुख्य परीक्षा, प्रतिपरीक्षा एवं पुनः परीक्षा के बीच अंतर?

मुख्य परीक्षा क्या है?

धारा 137 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार, किसी साक्षी की उस पक्षकार द्वारा जो उसे बुलाता है. परीक्षा उसकी मुख्य परीक्षा (Main Examination) कही जाती है.

धारा 138 के अनुसार, मुख्य परीक्षा सुसंगत तथ्यों से सम्बन्धित होनी चाहिये और बाद से विसंगत प्रश्न मुख्य परीक्षा में नहीं पूछे जा सकते. विशेषज्ञ के अतिरिक्त अन्य साक्षी तथ्यों के बारे में अपनी राय नहीं प्रकट कर सकते. वे केवल तथ्यों के बारे में अपनी जानकारी प्रकट कर सकते हैं.

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दूसरा नियम यह है कि यदि प्रतिपक्षी द्वारा आपत्ति की जाय, जो प्रायः की जाती है, तो मुख्य परीक्षा में सूचक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते। मुख्य परीक्षा के बारे में तीसरा नियम यह है कि न्यायालय की अनुमति के बिना अपने ही द्वारा बुलाये गये साक्षी से मुख्य परीक्षा में उसकी विश्वसनीयता परखने वाले प्रश्न नहीं पूछे जा सकते.

मुख्य परीक्षा का उद्देश्य होता है कि उसके जानकारी के सम्बन्धित तात्विक तथ्यों को प्राप्त करना होता है. यह भी ध्यान रहना चाहिये कि साक्षी को तथ्यों के बारे में ही बोलना चाहिये किसी राय या अनुमान या विश्वास के बारे में नहीं |

प्रतिपरीक्षा क्या है?

धारा 137 के अनुसार, जब मुख्य परीक्षा के बाद प्रतिपक्षी द्वारा उसी साक्षी की परीक्षा की जाती है तो उसे प्रतिपरीक्षा (जिरह) करते हैं. प्रतिपरीक्षा (Cross-examination) साधारणतया विरोधी पक्षकार द्वारा की जाती है.

प्रतिपरीक्षा का मुख्य उद्देश्य अपने विरोधी पक्षकार के साक्षी के हाथों अपना वाद मजबूत करना और विरोधी पक्षकार का मामला ध्वस्त करना है. साथ ही प्रतिपरीक्षा द्वारा साक्ष्य को सत्यता की कसौटी पर कसा जाता है.

धारा 138 के अनुसार, प्रतिपरीक्षा में पूछे गये प्रश्न बाद से सुसंगत हो सकते हैं, पर यह आवश्यक नहीं है कि वे सुसंगत तथ्यों तक ही सीमित हों. यह भी आवश्यक नहीं है कि प्रतिपरीक्षा में वे ही प्रश्न पूछे जायें जो मुख्य परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों या तथ्यों से सम्बन्धित हों. प्रतिपरीक्षा का उद्देश्य किसी साक्षी को तोड़ने का प्रयत्न होता है. या यह दर्शित करना होता है कि उसके कथन पर निर्भर नहीं किया जा सकता है.

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प्रतिपरीक्षा का उद्देश्य साक्षी की विश्वसनीयता की जाँच करना होता है यह सत्य को प्रकट करने का प्रबलतम विधि का साधन है. धारा 143 के अनुसार प्रतिपरीक्षा में साक्षी से सूचक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं. धारा 145 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि साक्षी ने पहले कोई लिखित कथन किया है या उसके कथन को लिखा गया है तो प्रतिपरीक्षा में बिना उस कथन को साक्षी को दिखाये या साबित किये उसके बारे में प्रश्न पूछा जा सकता है |

पुनः परीक्षा क्या है?

धारा 137 के अनुसार, पुनः परीक्षा (Re-examination) उसे कहते हैं जो साक्षी की प्रतिपरीक्षा के बाद उस पक्षकार द्वारा की जाती है. जिसने साक्षी को बुलाया था और पहले उसकी मुख्य परीक्षा की थी.

जब साक्षी की मुख्य परीक्षा और प्रतिपरीक्षा हो जाती है तो प्रतिपरीक्षा में आयी कुछ बातों या तथ्यों को अधिक स्पष्ट करने के लिये उसकी वह पक्षकार पुनः परीक्षा कर सकता है जिसने उसे साक्षी के तौर पर बुलाया था.

पुनः परीक्षा में भी न्यायालय की अनुमति के बिना साक्षी से सूचक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते.

पुनः परीक्षा का उद्देश्य साक्षी को बुलाने वाले पक्षकार को ऐसा अवसर देना होता है. जिससे वह मुख्य परीक्षा की उस कमी को दूर करे जिसका प्रतिपरीक्षा के समय पता चला है. न्यायालय की अनुमति के बिना कोई नई बात नहीं पूछा जाना चाहिये |

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मुख्य परीक्षा तथा प्रतिपरीक्षा के बीच अंतर?

  1. मुख्यपरीक्षा (Main Examination) उस पक्षकार द्वारा की जाती है जो उसे बुलाता है, जबकि प्रतिपरीक्षा (Cross-examination) विरोधी पक्षकार द्वारा की जाती है.
  2. मुख्य परीक्षा में सूचना प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं, जबकि प्रतिपरीक्षा में सूचक प्रश्न किये जाते हैं.
  3. मुख्य परीक्षा के बाद प्रतिपरीक्षा होती है, जबकि प्रतिपरीक्षा के बाद पुनः परीक्षा होती है.
  4. मुख्य परीक्षा में साक्षी के मुकर जाने पर उसे पक्षद्रोही साक्षी घोषित कर दिया जाता है, जबकि प्रतिपरीक्षा में ऐसा नहीं होता है |

प्रतिपरीक्षा तथा पुनः परीक्षा के बीच अंतर?

  1. साक्षियों की प्रथमतः मुख्य परीक्षा (Re-examination) होती है उसके बाद प्रतिपरीक्षा होती है, जबकि साक्षियों की प्रतिपरीक्षा के बाद यदि उसे बुलाने वाला पक्षकार चाहे तो पुनः परीक्षा होगी.
  2. प्रतिपरीक्षा का उद्देश्य सत्य का पता चलाना होता है यह सत्य के प्रकटीकरण का प्रबलतम साधन होता है, जबकि पुनः परीक्षा का उद्देश्य किसी साक्षी को बुलाने वाले पक्षकार को ऐसा अवसर देना होता है कि मुख्य परीक्षा में रह गयी कमी को पूरा किया जा सके.
  3. प्रतिपरीक्षा में विधिक सीमाओं के अधीन रहकर कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता है तथा नई बात प्रविष्ट की जा सकती है, जबकि पुनः परीक्षा में न्यायालय की अनुमति के बिना कोई नई बात प्रविष्ट नहीं की जा सकती है |

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