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एक अधिवक्ता के अपने मुवक्किल के प्रति कर्त्तव्य
अधिवक्ता के अपने मुवक्किल के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं? एडवोकेट अधिनियम की धारा 49 (1) (C) के अधीन भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा जी नियम बनाये गये हैं, उनमें नियम 11 से 33 तक उन नियमों का उल्लेख किया गया है.
जिनमें यह बताया गया है कि एक अधिवक्ता के अपने मुवक्किल के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं. वे कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं-
1. दोनों एक दूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहें
अधिवक्ता का अपना कर्त्तव्य है कि वह किसी पक्षकार की मामला लेकर उसके अंतिम निस्तारण तक अपने कर्त्तव्यों का समुचित रूप से निर्वहन करे. जब पक्षकार द्वारा अधिवक्ता पर विश्वास व्यक्त किया जाता है तो अधिवक्ता का भी यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह उस विश्वास को कोई आंच नहीं आने दे. वह ऐसा कोई कार्य नहीं करे जिससे पक्षकारों को नुकसान हो और उनका विश्वास टूट जाये.
इसी प्रकार पक्षकारों का भी यह कर्त्तव्य है कि वह जिस विश्वास के साथ अधिवक्ता के पास आया है उस विश्वास को अंतिम क्षण तक बनाये रखे. वह ऐसा कोई कार्य नहीं करे जिससे अधिवक्ता की निष्ठा पर आंच आये. इस प्रकार अधिवक्ता व पक्षकार की आपसी निष्ठा पर उनके मधुर संबंध यथावत बने रह सकते हैं.
2. अधिवक्ता की पूर्ण निष्ठा से पैरवी करे
दोनों पक्षों के बीच मधुर संबंध बनाये रखने के लिये यह परम आवश्यक है कि अधिवक्ता अपने पक्षकार के मामले की पूर्ण निष्ठा से पैरवी करे. वह उसमें किसी प्रकार की शिथिलता नहीं बरते. मामले की पैरवी के दौरान वह किसी अन्य व्यक्ति अथवा पक्षकार के प्रलोभन में नहीं आये. वह ऐसा कोई कार्य नहीं करे जो अपने पक्षकार के हितों के प्रतिकूल हो. अपने पक्षकार की पूर्ण निष्ठा से पैरवी करना अधिवक्ता का विधिक एवं नैतिक कर्त्तव्य भी है. पक्षसार स्वीकार किये जाने के उपरान्त बिना किसी कारण के कोई अधिवक्ता अपने को वाद से अलग नहीं कर सकता.
श्री माथी बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (1997 RLT 1) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि अधिवक्ता यदि पक्षकार के मामले की ठीक तरह से पैरवी नहीं करता है अथवा उसमें लापरवाही करता है तो ऐसे अधिवक्ता के विरुद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत कार्यवाही की जा सकती है.
3. दुरभिसंधि नहीं करे
अधिवक्ता का यह भी कर्त्तव्य है कि वह मामले की पैरवी के दौरान विरोधी पक्षकार से किसी प्रकार को दुरभिसंधि नहीं करे. दुरभिसंधि से अभिप्राय यह है कि अधिवक्ता विरोधी पक्षकार से मिल कर अपने पक्षकार को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाये. यदि कोई अधिवक्ता इस प्रकार का कृत्य करता है तो इससे दोनों पक्ष मैं संबंधों में कटुता आना स्वाभाविक है. अतः अधिवक्ताओं को इस प्रवृत्ति से बचना चाहिये.
4. अच्छा व्यवहार करे
अधिवक्ता एवं पक्षकारों के बीच वैश्वासिक संबंध बनाये रखने के लिये यह भी अपेक्षित है कि अधिवक्ता एवं पक्षकार दोनों एक दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करें, एक दूसरे का सम्मान करें और एक दूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहें. व्यवहार से अभिप्राय यह है कि अधिवक्ता अथवा पक्षकार एक दूसरे के प्रति अभद्र, अश्लील व संसदीय भाषा का प्रयोग नहीं करे, छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव अथवा उत्तेजना पैदा नहीं करें. दोनों ही पक्ष अर्थात अधिवक्ता और पक्षकार एक टीम भाव से कार्य करें.
5. वृत्तिक संसूचनाओं को प्रकट नहीं करें
अधिवक्ताओं का यह कर्त्तव्य है कि पैरवी के दौरान उन्हें अपने पक्षकारों से जो भी गोपनीय सूचनायें दी जाती है उन गोपनीय सूचनाओं को इस तरह प्रकट नहीं करें कि उनके पक्षकारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 के अंतर्गत ऐसी संसूचनाओं को प्रकट न करने का अधिवक्ता का विशेषाधिकार मिला हुआ है. अधिवक्ता इस विशेषाधिकार का अपने पक्षकारों के हितों में प्रयोग करे. ऐसा इसलिये आवश्यक है कि यदि अधिवक्ता पक्षकार द्वारा प्राप्त सूचनाओं को इस तरह प्रकट कर देता है कि उससे पक्षकारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो दोनों के बीच संबंधों में कटुता आ सकती है.
6. समुचित पारिश्रमिक लें
कई बार यह देखा जाता है कि अधिवक्ता की फीस को लेकर पक्षकार व अधिवक्ता के बीच विवाद उत्पन्न हो जाते हैं. यह भी सुनने में आता है कि अधिवक्ता कई बार अपने पक्षकारों से अत्यधिक फीस वसूल कर लेते हैं. इससे पक्षकारों में असंतोष पैदा होता है. अधिवक्ता को चाहिए कि वह राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्धारित शुल्क ही अपने मुवक्किल से प्राप्त करें. निर्धारित किया गया पारिश्रमिक यदि मुवक्किल देने में असमर्थ है, तो अधिवक्ता शुल्क में छूट दे सकता है, परन्तु निर्धारित शुल्क से अधिक पारिश्रमिक वसूल नहीं कर सकता.
साथ ही यह भी सुनने में आता है कि कई बार पत्रकार भी अपने अधिवक्ता को अनुबंधित फीस का संदाय नहीं करते हैं. इससे भी दोनों पक्षों के संबंध में कटुता उत्पन्न हो जाती है और कभी-कभी वह विवाद का रूप ले लेता है. अतः दोनों पक्षों का यह कर्त्तव्य है कि वे फीस के लेनदेन में ईमानदारी बरतें.
7. पक्षकारों को सुने
अधिवक्ताओं का यह दायित्व है कि वह अपने पक्षकारों की बात को अच्छी तरह सुने. अधिवक्ता पक्षकारों को उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखे. जो भी सूचनाएं, साक्ष्य आदि पक्षकारों द्वारा अधिवक्ता को दी जाती हैं उस पर अधिवक्ता ध्यान दे और पक्षकार की बात को न्यायालय के समक्ष रखने का पूरा प्रयास करे. यदि अधिवक्ता अपने पक्षकार की उपेक्षा करने लगता है तो न केवल दोनों पक्षों के बीच संबंध बिगड़ जाते हैं अपितु पक्षकार अपने पूर्व अधिकार को छोड़ कर किसी अन्य अधिवक्ता को नियुक्त कर लेता है. अतः इस प्रवृत्ति से बचने के लिये वह आवश्यक है कि अधिवक्ता अपने पक्षकार को सुनवाई का समुचित समय दे.
Dr. हनीराज L. चुलानी बनाम बार कौंसिल ऑफ महाराष्ट्र (AIR 1996 SC 2076) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह सही कहा है कि अधिवक्ताओं का पेशा एक पूर्णकालिक पेशा है. अधिवक्ताओं को अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित होकर कार्य करना होता है. उन्हें अपने पक्षकारों को पूर्ण समय भी देना पड़ता है. अतः यह आवश्यक है कि कोई भी अधिवक्ता विधि व्यवसाय के अलावा अन्य कोई व्यवसाय नहीं करे क्योंकि यदि अधिवक्ता अन्य कोई व्यवसाय करता है तो वह अपने पक्षकार को समुचित समय नहीं दे पायेगा और उनके साथ न्याय भी नहीं कर पायेगा.
वकील एवं मुवक्किल के बीच मधुर सम्बन्धों को कायम रखने के लिये उपरोक्त बातों के अलावा यह भी अपेक्षित है कि अधिवक्ता-
- अपने पक्षकार की अनुपस्थिति पर न्यायालय में उसका प्रतिनिधित्व करे तथा पक्षकार को उपस्थिति से अभिमुक्ति दिलाये.
- पक्षकारों पर असम्यक् असर (Undue Influence) का प्रयोग नहीं करे.
- अपने पक्षकार की वादग्रस्त सम्पत्ति के साथ किसी प्रकार का संव्यवहार (Transaction) नहीं करें.
पक्षकारों की ओर से कूट दस्तावेजों की रचना न करे. - पक्षकार यदि निर्धन है तो उसे राज्य की ओर से निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास करें |