विधिक व्यक्ति का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार | विधिक व्यक्तित्व के सिद्धांत

विधिक व्यक्ति का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार | विधिक व्यक्तित्व के सिद्धांत

विधिक व्यक्ति का अर्थ एवं परिभाषा

अधिकार की संकल्पना पर विचार करने पर यह पाया गया कि अधिकार का एक धारणकर्ता होना चाहिये. अर्थात् वह कौन है जो अधिकार को धारण करता है और कर्तव्य से बाध्य हैं. इसकी प्राप्ति के लिये व्यक्ति की परिभाषा जानना आवश्यक हो जाता है.

पैटन के अनुसार, विधिक व्यक्तित्व को विधि का एक कृत्रिम सृजन माना है.

केल्सन ने विधिक व्यक्तित्व को मिथक के अलावा कुछ नहीं माना.

विधि के अन्तर्गत ‘व्यक्ति’ का जो अर्थ होता है वह उसके सामान्य अर्थ से भिन्न है. सामण्ड (Salmond) के अनुसार व्यक्ति वह है जिसमें अधिकार या कर्तव्य की क्षमता हो. ग्रे (Gray) महोदय कहते हैं कि व्यक्ति वह है जिसमें अधिकार एवं कर्त्तव्य के गुण मौजूद हों अतः हम यहाँ पर दो भिन्न परिभाषाओं को पाते हैं.

सामण्ड के अनुसार ‘व्यक्ति’ में अधिकार या कर्तव्य होना चाहिए जबकि ग्रे के अनुसार व्यक्ति में अधिकार एवं कर्तव्य दोनों प्रकार के गुण विद्यमान होना चाहिये. इन दोनों परिभाषाओं में सामण्ड की परिभाषा अधिक उपयुक्त लगती है. पागल मनुष्य कर्त्तव्यों से मुक्त होता है, किन्तु उसको बहुत से अधिकार प्राप्त हैं, फिर भी वह ‘व्यक्ति’ समझा जाता है. इसी प्रकार रोम के कानून में दास को कोई अधिकार नहीं प्राप्त था, किन्तु वह वहाँ के कानून के द्वारा बहुत-से कर्तव्यों से बंधा था. फिर भी वह कानून की दृष्टि से ‘व्यक्ति’ समझा जा सकता है.

‘व्यक्ति’ दो प्रकार के होते हैं; प्राकृतिक और वैधानिक.

प्राकृतिक व्यक्ति से तात्पर्य जीवित मनुष्य से है. जबकि ‘विधिक व्यक्ति’ का तात्पर्य किसी भी वस्तु से है जिसको कानून द्वारा विधिक व्यक्तित्व प्राप्त रहता है. वर्तमान समय में राज्य के समस्त जीवित मनुष्यों को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त रहता है. विधिक व्यक्तित्व कानून द्वारा प्राप्त कराया जाता है. कानून चाहे तो यह विधिक व्यक्तित्व जीवित मनुष्यों के अतिरिक्त निर्जीव वस्तुओं में भी सौंप सकता है. उदाहरण के लिए, हिन्दू विधि के अन्तर्गत मूर्तियाँ विधिक ‘व्यक्ति’ हो सकती हैं.

न्यायिक व्यक्ति जीवधारी नहीं होता है. इसकी विषयवस्तु कोई भी दूसरी चीज हो सकती है चाहे वह वस्तु हो या सम्पत्ति या आदमियों का समूह.

विधिक व्यक्ति के प्रकार

हिलवर्ट ने निम्न प्रकार के विधिक व्यक्ति बताये हैं-

  1. कुछ निर्जीव वस्तुओं को मानवीकरण द्वारा विधिक व्यक्तित्व प्रदान किया जाता है. इनका व्यक्तित्व काल्पनिक होता है. रोमन विधि में इन्हें प्रेडियम डोमिनन्स तथा प्रेदियन सर्वियन्नस कहा जाता है.
  2. किसी निर्जीव वस्तु में अधिकार तथा कर्तव्य एकत्रित रूप से विद्यमान होने के कारण उसे विधिक व्यक्ति माना जा सकता है. रोमन विधि में इसे हेरिडिटास जेसेन्स कहा जाता है.
  3. अंग्रेजो विधि में केवल कुछ ही प्रकार के विधिक व्यक्तियों को मान्यता दी गई है. जैसे; निगम, संस्थाएं, संपदा आदि.

निगमित व्यक्तित्व के सिद्धान्त

1. वैधानिक कल्पना का सिद्धान्त अथवा “कल्पित सिद्धान्त”

इस सिद्धान्त के प्रतिपादक सामण्ड तथा हालैण्ड हैं. इनका कहना है कि व्यक्ति समूहों तथा समस्याओं को वैधानिक कल्पना के द्वारा व्यक्तित्व प्रदान किया जाता है. इस प्रकार का प्रदान किया गया व्यक्तित्व उन व्यक्तियों के वास्तविक व्यक्तित्व से भिन्न होता है. हिन्दू-धर्म में पूजी जाने वाली मूर्ति को भी वैधानिक कल्पना द्वारा व्यक्तित्व प्रदान किया जाता है. सैविनी ने कहा कि प्रत्येक अकेला व्यक्ति और केवल अकेला व्यक्ति अधिकारों के योग्य है.

2. रियायत का सिद्धान्त

यह सिद्धान्त “कल्पित सिद्धान्त” से मिलता-जुलता है, अतः दोनों सिद्धान्तों के समर्थक प्रायः एक ही हैं. इस सिद्धान्त के अनुसार निगम का व्यक्तित्व राज्य द्वारा दी गई रियायत से बना है. कुछ प्रयोजनों के लिये राज्य निगमों को रियायत देकर विधिक व्यक्तित्व प्रदान करता है. यह इस बात पर जोर दिया कि विधि विधिक व्यक्तित्व का अपरिहार्य स्रोत है.

3. यथार्थता का सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रवर्तक गियर्क हैं. निगम का अस्तित्व वास्तविक होता है. निगम में प्राकृतिक व्यक्तियों का विलय हो जाता है परिणामस्वरूप एक नये रूप का निर्माण होता है और वह वास्तविक व्यक्ति होता है न कि काल्पनिक. मेटलैंड तथा पोलक ने भी इस तर्क का समर्थन किया. संघ को सामाजिक यथार्थता माना गया तथा कहा गया कि जब यह विधि द्वारा मान्यता प्राप्त कर लेता है तो विधि के यथार्थता में बदल जाता है.

4. कोष्ठक या प्रतीक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त के प्रमुख प्रवर्तक इहरिंग हैं. इनके अनुसार निगम के सदस्य ही वास्तविक व्यक्ति होते हैं. जब अनेक सदस्यों को कोष्ठक में रखा जाता है तो वह निगम का रूप धारण कर लेता है.

इस सिद्धान्त के अनुसार केवल मानव प्राणी ही अधिकारों एवं हितों को धारण कर सकते हैं. निगम तो समझने का मात्र माध्यमं है.

5. प्रयोजन सिद्धान्त

जैसे मानव के अलावा पदार्थ व्यक्ति नहीं होते हैं किन्तु कुछ प्रयोजनों के लिए उन्हें व्यक्ति मान लिया जाता है. प्रयोजन का सिद्धान्त के अनुसार केवल मानव प्राणी ही व्यक्ति है. केवल मानव प्राणी ही अधिकार कर्तव्य के धारण कर्ता हैं अतः विधिक व्यक्ति व्यक्ति नहीं है. यह सिद्धान्त जर्मन एवं रोमन विधि में प्रतिपादित किया गया था.

6. केल्सन का सिद्धान्त

विधिवेत्ता केल्सन ने विधिक व्यक्तित्व के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा है कि विधिक प्रयोजनों के लिए प्राकृतिक तथा विधिक व्यक्तियों के बीच कोई विषमता नहीं है. विधि के अन्तर्गत व्यक्तित्व का अभिप्राय अधिकारों तथा कर्तव्यों को स्थापित करना है अतः विधिक व्यक्तित्व का प्रक्रियात्मक रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए न कि शारीरिक रूप में. यह प्राकृतिक व्यक्ति एवं विधिक व्यक्ति के बीच विभेद को समाप्त मानता है. केल्सन नीति पर विचार करना नहीं चाहा. बल्कि विधिक व्यवस्था की बात किया है.

7. हॉफील्ड का सिद्धान्त

हॉफील्ड के अनुसार विधि व्यक्तित्व का निर्माण प्रक्रियात्मक नियमों द्वारा ही हुआ है. हॉफील्ड ने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए विधिक व्यक्ति को प्राकृतिक व्यक्ति से पूर्णतः भिन्न माना है.

हाफील्ड ने मानव प्राणियों तथा विधिक व्यक्तियों के बीच अन्तर स्वीकार किया.

निष्कर्ष

फ्रीडमेन के अनुसार, सभी सिद्धान्तों का अपना-अपना निजी महत्व है. साथ ही साथ सिद्धान्तों का राजनीतिक महत्व भी रहा है. यद्यपि किसी भी सिद्धान्त को पूर्ण रूप से नहीं अपनाया गया फिर भी हम कह सकते हैं कि विविध प्रयोजनों के लिये प्राकृतिक तथा विधिक व्यक्तियों में भेद मिटाया गया है. हॉफील्ड के अनुसार, जटिल समूह को सुविधाजनक तरीके से कार्यान्वयन करने के लिए निगम को विधिक व्यक्ति माना गया है. केल्सन ने भी इसके विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है |

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