किन परिस्थितियों में एक अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है?

किन परिस्थितियों में एक अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है?

व्यावसायिक अवचार के लिये अधिवक्ता को दण्ड

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35 से 44 तक उन प्रावधानों का वर्णन किया गया है जिसके तहत किसी अधिवक्ता को व्यावसायिक अवचार के लिये दण्डित किया जा सकता है. यह दण्ड राज्य विधिज्ञ परिषद (State Bar Council) तथा भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) द्वारा दिया जा सकता है.

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1. राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा दण्ड

धारा 35 के अनुसार-

  1. जहाँ किसी शिकायत की प्राप्ति पर या अन्यथा, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी नामावली का कोई अधिवक्ता वृत्तिक या अन्य अवचार का दोषी रहा है वहाँ वह मामले को, अपनी अनुशासन समिति को निपटाने के लिए, निर्दिष्ट करेगी.
    • राज्य विधिज्ञ परिषद अपनी अनुशासन समिति के समक्ष लंबित किसी कार्यवाही को, या तो स्वप्रेरणा से या किसी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा उसको किए गए आवेदन पर, वापस ले सकेगी और यह निदेश दे सकेगी और यह निदेश दे सकेगी कि जाँच उस राज्य विधिज्ञ परिषद् की किसी अन्य अनुशासन समिति द्वारा की जाए.
  2. राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति मामले की सुनवाई के लिए तारीख नियत करेगी और उसकी सूचना संबद्ध अधिवक्ता को और राज्य के महाधिवक्ता को दिलवाएगी.
  3. राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, सम्बद्ध अधिवक्ता और महाधिवक्ता को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् निम्नलिखित आदेशों में से कोई आदेश कर सकेगी, अर्थात्-
    • शिकायत खारिज कर सकेगी या जहाँ राज्य विधिज्ञ परिषद की प्रेरणा पर कार्यवाहियाँ आरम्भ की गई थीं वहाँ यह निदेश दे सकेगी कि कार्यवाहियाँ फाइल कर दी जाएं.
    • अधिवक्ता को दंड दे सकेगी.
    • अधिवक्ता को विधि व्यवसाय से उतनी अवधि के लिए निलंबित कर सकेगी जितनी वह ठीक समझे.
    • अधिवक्ता का नाम, अधिवक्ताओं की राज्य नामावली में से हटा सकेगी.
  4. जहाँ कोई अधिवक्ता उपधारा (3) खंड (iii) के अधीन विधि व्यवसाय करने से निलंबित कर दिया गया है वहाँ वह, निलंबन की अवधि के दौरान, भारत में किसो न्यायालय में या किसी प्राधिकरण या व्यक्ति के समक्ष किया जाएगा. विधि व्यवसाय करने से विवर्जित
  5. जहाँ महाधिवक्ता को उपधारा (2) के अधीन कोई सूचना जारी की गई हो वहाँ महाधिवक्ता राज्य विधिज्ञ परिषद् की अनुशासन समिति के समक्ष, या तो स्वयं या उसको ओर से हाजिर होने वाले किसी अधिवक्ता की मार्फत हाजिर हो सकेगा |

2. भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा दण्ड

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 36 के अनुसार, “जहाँ किसी शिकायत की प्राप्ति पर या अन्यथा, भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई ऐसा अधिवक्ता, जिसका नाम किसी राज्य नामावली में दर्ज नहीं है, वृत्तिक या अन्य अवचार का दोषी रहा है, वहाँ वह उस मामले को, अपनी अनुशासन समिति को निपटारे के लिए, निर्दिष्ट करेगी.”

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इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति के समक्ष किसी अधिवक्ता के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के लिए लंबित किन्हीं कार्यवाहियों को या तो स्वप्रेरणा से या किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की रिपोर्ट पर या किसी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा उसको किए गए आवेदन पर, जाँच करने के लिए अपने पास वापस ले सकेगी और उसका निपटारा कर सकेगी.

भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, इस धारा के अधीन किसी मामले के निपटारे में, धारा 35 में अधिकथित प्रक्रिया का यथाशक्य अनुपालन करेगी, और उस धारा में महाधिवक्ता के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे भारत के महान्यायवादी के प्रति निर्देश हैं.

इस धारा के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों के निपटारे में भारतीय विधिज्ञ परिषद को अनुशासन समिति कोई ऐसा आदेश दे सकेगी जो किसी विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति धारा 35 की उपधारा (3) के अधीन दे सकती है और जहाँ भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति के पास जाँच के लिए किन्हीं कार्यवाहियों को वापस लिया गया है, वहाँ सम्बद्ध राज्य विधिज्ञ परिषद् ऐसे आदेश को प्रभावी करेगी |

3. भारतीय विधिज्ञ परिषद् को अपील

धारा 37 के अनुसार, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद (State Bar Council) की अनुशासन समिति की धारा 35 के अधीन किए गए आदेश या राज्य के महाधिवक्ता के आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, आदेश की संसूचना की तारीख से साठ दिन के भीतर, भारतीय विधिज्ञ परिषद को अपील कर सकेगी.

प्रत्येक ऐसी अपील की सुनवाई भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा की जाएगी और वह समिति उस पर ऐसा आदेश जिसके अन्तर्गत राज्य विधिज्ञ परिषद् की अनुशासन समिति द्वारा अधिनिर्णीत दण्ड को परिवर्तित करने का आदेश भी है पारित कर सकेगी, जैसा वह ठीक समझे.

परन्तु राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति का कोई भी आदेश, व्यथित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना, भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, द्वारा इस प्रकार परिवर्तित नहीं किया जाएगा जिससे कि उस व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े |

4. उच्चतम न्यायालय को अपील

धारा 38 के अनुसार, भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) की अनुशासन समिति द्वारा धारा 36 या धारा 37 के अधीन या, यथास्थिति, भारत के महान्यायवादी या सम्बद्ध राज्य के महाधिवक्ता द्वारा किये गये आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस तारीख से साठ दिन के भीतर, जिसको उसे वह आदेश संसूचित किया जाता है, उच्चतम न्यायालय को अपील कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय उस पर ऐसा आदेश जिसके अन्तर्गत भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति द्वारा अधिनिर्णीत दण्ड में परिवर्तन करने का आदेश भी है पारित कर सकेगा, जैसा वह ठीक समझे.

परन्तु भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति का कोई भी आदेश, व्यधित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना उच्चतम न्यायालय द्वारा इस प्रकार परिवर्तित नहीं किया जायेगा जिससे कि उस व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े.

धारा 40 के अनुसार, धारा 37 या धारा 38 के अधीन की गई कोई अपील उस आदेश के जिसके विरुद्ध अपील की गई है, रोके जाने के रूप में प्रवर्तित नहीं होगी किन्तु, यथास्थिति, भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति या उच्चतम न्यायालय, पर्याप्त हेतुक होने पर, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, उस आदेश को प्रभावी होने से रोकने के लिये निदेश दे सकेगी.

जहाँ धारा 37 या 38 के अधीन उस आदेश से अपील करने के लिये अनुज्ञात समय को समाप्ति के पूर्व आदेश को रोकने के लिये आवेदन किया जाता है वहाँ, यथास्थिति, राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, या भारतीय विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, पर्याप्त हेतुक होने पर, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, उस आदेश को प्रभावी होने से रोकने के लिये निदेश दे सकेगी.

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रोशन दीन बनाम प्रीति लाल [(2002) 1 SCC 100] के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जहाँ अधिवक्ता ने याचिकाकर्ता से धोखा तथा छल किया है वहाँ न्यायालय स्वप्रेरणा से भी राज्य विधिज्ञ परिषद से उन अधिवक्ता के विरुद्ध जांच करने का आदेश दे सकता है |

अधिवक्ता नामावली में परिवर्तन

जहाँ किसी अधिवक्ता को दण्ड देने या उसे निलंबित करने का कोई आदेश दिया जाता है, वहाँ उस दण्ड का अभिलेख-

ऐसे अधिवक्ता की दशा में, जिसका नाम किसी राज्य नामावली में दर्ज, उस नामावली में, उसके नाम के सामने दर्ज किया जायेगा, और जहाँ किसी अधिवक्ता को विधि व्यवसाय से हटाने का आदेश दिया जाता है वहाँ उसका नाम राज्य नामावली में से काट दिया जायेगा.

जहाँ किसी अधिवक्ता को विधि-व्यवसाय करने से निलंबित किया जाता है या हटा दिया गया है वहाँ, उसके नामांकन की बावत धारा 22 के अधीन उससे अनुदत्त प्रमाणपत्र वापस ले लिया जाएगा |

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