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संयुक्त राष्ट्र महासभा की संरचना
संयुक्त राष्ट्र (UN), चार्टर के अनुसार, महासभा संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है. महासभा सबसे अधिक प्रतिनिध्यात्मक अंग है. इसमें संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है. प्रत्येक सदस्य महासभा में अपने पाँच प्रतिनिधि तक रख सकता है.
महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है तथा प्रत्येक सदस्य को पाँच प्रतिनिधि तक भेजने का अधिकार होता है. यह बड़ी सभा है, अतः इसने कार्य को सुचारु रूप से करने के लिये कुछ समितियाँ स्थापित की हैं.
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महासभा की मुख्य समितियाँ
मुख्य समितियाँ
महासभा की मुख्य समिति महासभा द्वारा विचारणीय प्रस्तावों के एजेन्डा आदि पर विचार करती है. वह महासभा के लिए सुझाव आदि तैयार करती है. मुख्य समितियों में प्रत्येक सदस्य को प्रतिनिधित्व का अधिकार है. महासभा की मुख्य समितियाँ निम्नलिखित हैं-
- राजनैतिक तथा सुरक्षा-समिति; इसके अतिरिक्त एक विशेष राजनैतिक समिति भी स्थापित की गई है जो पहली समिति की सहायता करती है,
- आर्थिक एवं वित्तीय समिति,
- सामाजिक, मानवीय एवं सांस्कृतिक समिति,
- विन्यास समिति
- प्रशासनिक एवं बजट समिति तथा
- कानूनी समिति.
अन्य समितियाँ;
- प्रक्रिया सम्बन्धी समिति
- स्थायी समिति
- तदर्थ समिति
प्रक्रिया
महासभा के वार्षिक अधिवेशन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अथवा सदस्यों के बहुमत द्वारा बुलाये जा सकते हैं. महासभा को अधिकार प्राप्त है कि वह प्रक्रिया सम्बन्धी अपने नियम स्वयं निर्मित करे. महासभा को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह अपने कार्यों को पूरा करने के लिए गौण अंग स्थापित कर सकती है. महासभा का कार्य महासचिव की रिपोर्ट पर बहस से प्रारम्भ होता है.
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मतदान अधिकार
चार्टर के अनुच्छेद 18 के अनुसार प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होता है. महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर निर्ण महासभा के सदस्य के 2/3 बहुमत से किया जाता है.
महासभा के कार्य तथा शक्तियाँ
1. विमर्शकारी कार्य
विमर्शकारी कार्यों से तात्पर्य महासभा के उन कार्यों से है जिनके अन्तर्गत यह विभिन्न प्रश्नों पर विचार-विमर्श करती है, अध्ययन करती है तथा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है. इस सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं-
- चार्टर के अनुच्छेद 10 के अन्तर्गत महासभा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अन्तर्गत किसी भी प्रश्न अथवा किसी भी अंग के कार्य तथा शक्तियों से सम्बन्धित प्रश्न पर विचार कर सकती है.
- महासभा अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति तथा सुरक्षा को बनाये रखने तथा निरस्त्रीकरण एवं शक्तिकरण को नियंत्रित तथा नियमित करने के सिद्धान्तों पर विचार-विमर्श कर सकती है तथा इस सम्बन्ध में अपनी सिफारिशें सदस्यों या सुरक्षा परिषद अथवा दोनों को दे सकती है.
- महासभा सुरक्षा-परिषद का ध्यान उन परिस्थितियों की ओर आकर्षित कर सकती है जिनसे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा को खतरा होने की सम्भावना है.
- महासभा उन समस्याओं तथा परिस्थितियों में जिनसे राष्ट्रों के पारस्परिक मित्रतापूर्ण सम्बन्ध अथवा सामान्य कल्याण के प्रभावित होने की सम्भावना हो, शान्तिपूर्ण समाधान के लिये उपायों की सिफारिश कर सकती है.
2. पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्य
पर्यवेक्षण सम्बन्धी कार्यों का तात्पर्य उन कार्यों से है जिनके द्वारा महासभा दूसरे प्रमुख अंगों तथा विशिष्ट एजेंसियों पर अपना नियन्त्रण रखती है. महासभा विशेषकर संयुक्त राष्ट्र के दो प्रमुख अंगों – आर्थिक तथा सामाजिक परिषद तथा न्यासधारिता परिषद पर अपना नियंत्रण रखती है.
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3. वित्त सम्बन्धी कार्य
महासभा महत्वपूर्ण वित्त सम्बन्धी कार्य भी करती है. चार्टर के अनुच्छेद 17 के अनुसार महासभा संस्था के बजट पर विचार-विमर्श करती है तथा उसे पारित करती है. महासभा को यह भी महत्वपूर्ण शक्ति प्राप्त है कि वह संस्था के व्यय को सदस्यों में विभाजित करती है. अर्थात सदस्यों की संस्था के लिये उतना धन देना होता है जो महासभा निर्धारित करती है. महासभा विशिष्ट एजेन्सियों के बजट तथा वित्त प्रबन्धों पर विचार करती है तथा उनका अनुमोदन करती है.
4. निर्वाचन सम्बन्धी कार्य
संयुक्त राष्ट्र की महासभा दो प्रकार के निर्वाचन सम्बन्धी कार्य सम्पादित करती है-
- नये राज्यों की सदस्यता सम्बन्धी,
- दूसरे अंगों के सदस्यों के निर्वाचन सम्बन्धी.
वास्तव में नये राज्यों का उनकी सदस्यता के लिये महासभा में चयन होता है जब नये राज्य के प्रार्थना पत्र पर सुरक्षा परिषद की सहमति प्राप्त हो जाती है तो. महासभा उसे 2/3 उपस्थित सदस्यों के बहुमत से चयन करके संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाती है.
5. संवैधानिक कार्य
महासभा कुछ संवैधानिक कार्य भी सम्पादित करती है. महासभा चार्टर के संशोधन में भाग लेती है. चार्टर का कोई संशोधन तभी सम्भव है जबकि संयुक्त राष्ट्र के 2/3 सदस्य उसे स्वीकार करें जिसके लिये पाँच स्थायी सदस्यों का अनुमोदन होना आवश्यक है तथा वे 2/3 सदस्य इसका अनुसमर्थन करें. अतः जब तक महासभा 2/3 मतों से चार्टर के संशोधन के लिये अपनी सहमति प्रदान नहीं करती, चार्टर में संशोधन नहीं हो सकता. चार्टर के संशोधन के लिये आवश्यक है कि पाँचों स्थायी सदस्यों की सहमति के बाद उन सदस्यों की सरकारें ऐसे संशोधनों का अनुसमर्थन करें |