वक्फ का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

वक्फ का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं आवश्यक तत्व

वक्फ का अर्थ एवं परिभाषा

वक्फ का शाब्दिक अर्थ होता है “रोक रखना” अर्थात समर्पित सम्पत्ति के स्वामित्व को समर्पण करने वाले से दूर करके सर्वशक्तिमान ईश्वर में रोक रखना. वक्फ के सृजन के उपरान्त सम्पत्ति का स्वामित्व सर्वशक्तिमान ख़ुदा में निहित हो जाता है और वक्फकर्ता का स्वामित्व वक्फ सम्पत्ति में समाप्त हो जाता है.

संबंधित मामला; छेदी लाल मिश्रा बनाम सिविल जज, लखनऊ, (2007) 4 SCC 632].

वर्तमान सन्दर्भ में मुस्लिम विधि के अन्तर्गत इसका अर्थ है, ऐसी भौतिक सम्पत्ति जिसका अन्तरण न किया जा सकता हो तथा जिसका उपयोग धर्मार्थ तथा पवित्र संदान के लिये निर्देशित हो.

वक्फ क्या है? अबू हनीफा के अनुसार, वक्फ का तात्पर्य है; किसी विशिष्ट वस्तु को इस प्रकार से रोक रखना कि इसके स्वामी का अधिकार तो इस पर बना रहे परन्तु इसका लाभ खैराती उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हो. यह प्रयोग आरीयत के समान होता है. इस परिभाषा में दो तत्व निहित हैं. प्रथम, वक्फ के पश्चात् भी वस्तु के स्वामी का स्वामित्व बना रहता है और द्वितीय आय को किसी खैराती अथवा धार्मिक उद्देश्य में लगाया जाता है.

अबू हनीफा के शिष्य; अबू हनीफा के दो शिष्य हैं, अब युसूफ और मोहम्मद के अनुसार, वक्फ का अर्थ है- किसी सम्पत्ति के स्वामित्व को इस प्रकार ईश्वर को समर्पित करना कि वह ईश्वरीय नियमों द्वारा अनुशासित हो ताकि इसमें सम्पत्ति के स्वामी का स्वामित्व सदा के लिये लुप्त हो जाय और उससे होने वाली आय का उपभोग उसके द्वारा निर्मित प्राणियों के हित के लिये हो, यह स्थायी तथा रद्द न होने वाला कृत्य होगा. इस परिभाषा में तीन तत्व विद्यमान हैं-

  1. ख़ुदा का स्वामित्व,
  2. वक्फकर्ता के अधिकार की समाप्ति, और
  3. मानव जाति को लाभ.

वक्फ मान्यकरण अधिनियम, 1913 की धारा 2 अनुसार, वक्फ का तात्पर्य किसी सम्पत्ति का किसी व्यक्ति द्वारा जो मुसलमान धर्म का अनुयायी हो, ऐसे प्रयोजन के लिये स्थायी समर्पण है जो मुस्लिम विधि के अनुसार धार्मिक, पवित्र या खैराती हो.

वक्फ एक्ट 1995 क्या है? मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम, 1913 की धारा 2 के अधीन दी गई परिभाषा को वक्फ अधिनियम, 1995 में कुछ परिवर्तित कर दिया गया है. इस अधिनियम की धारा 3(r) निर्दिष्ट करती है कि ‘वक्फ’ किसी मुस्लिम धर्म के मानने वाले व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रयोजन के लिए जो मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र धार्मिक अथवा खैराती माना गया हो किसी चल या अचल सम्पत्ति का स्थायी समर्पण अभिप्रेत है तथा इसमें शामिल है-

1. उपयोगिता द्वारा वक्फ

किन्तु ऐसे वक्फ का केवल इस कारण वक्फ होना समाप्त नहीं हो जायेगा कि उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गई है चाहे ऐसी समाप्ति की अवधि कितनी भी हो.

2. अनुदान

इसके अन्तर्गत किसी प्रयोजन के लिए मशरत-उल-खिदमत भी है जिन्हें मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक अथवा खैराती माना गया है.

3. वक्फ-अलल-औलाद

वहां तक जहां तक कि सम्पत्ति का समर्पण किसी ऐसे प्रयोजन के लिए किया गया है जिसे मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र धार्मिक या खैराती माना गया हो. ऐसा व्यक्ति जो वक्फ के लिए सम्पत्ति समर्पित करता हो वाकिफ कहलाता है.

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013 ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 3 (1) को प्रतिस्थापित कर दिया है. इस प्रतिस्थापन के बाद वक्फ की परिभाषा है वक्फ किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे प्रयोजन के लिए जो मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र धार्मिक या खैराती माना गया है, किसी चल या अचल सम्पत्ति का स्थायी समर्पण अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत है-

  1. उपयोगिता द्वारा वक्फ; किन्तु ऐसे वक्फ का केवल इस कारण वक्फ होना समाप्त नहीं हो जायेगा कि उसकी उपयोगिता समाप्त हो गई है चाहे ऐसी समाप्ति की अवधि कितनी भी हो.
  2. कोई शामलात पट्टी, शामलात देह, जुमला मलक्कन या राजस्व अभिलेख में दर्ज कोई अन्य नाम.
  3. अनुदान; इसके अन्तर्गत किसी प्रयोजन के लिए महारत-उल-खिदमत भी है जिसे मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक अथवा खैराती माना गया है.
  4. वक्फ अलल-औलाद वहां तक जहां तक कि सम्पत्ति का समर्पण किसी ऐसे प्रयोजन के लिए किया गया है जिसे मुस्लिम विधि द्वारा पवित्र, धार्मिक या खैराती माना गया है परन्तु जब कोई उत्तराधिकारी नहीं रह जाता है तो बदक की आय, शिक्षा, विकास, कल्याण और मुस्लिम विधि द्वारा मान्यता प्राप्त ऐसे अन्य प्रयोजनों के लिए खर्च की जायेगी |

वक्फ के प्रकार 

वक्फ कितने प्रकार के होते हैं? मुस्लिम विधि के अन्तर्गत वक्फ दो प्रकार का होता है-

  1. सार्वजनिक वक्फ
  2. निजी वक्फ

1. सार्वजनिक वक्फ

सार्वजनिक वक्फ वह वक्फ है जो आम जनता के लाभ के लिए सृजित किया गया हो. इसके विपरीत, वाकिफ द्वारा अपने परिवार के हित के लिये बनाये गये वक्फ को ‘निजी वक्फ’ कहते हैं.

वास्तव में ऐसे वक्फ का सृजन वाकिफ के परिवार तथा उसकी अजन्मी संतानों के हित के उद्देश्य से किया जाता है. मुस्लिम विधि की तकनीकी भाषा में इस प्रकार के वक्फ को वक्फ अलल-औलाद कहते हैं.

कहते हैं कि एक बार पैगम्बर मुहम्मद ने कहा था, ‘भिखारियों को दान देने की अपेक्षा. अपने परिवार को अभावग्रस्त होने से बचाने के लिए परिवार को दान देना अधिक पवित्र कार्य है. अपने परिवार को दिया हुआ सदका, सबसे अच्छा सदका है.

2. निजी वक्फ

निजी वक्फ को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  1. जो वक्फ वाकिफ के ही परिवार तथा उत्तराधिकारी के हित के लिये पूर्णतः तथा सदा के लिये हो, वह वक्फ मान्यीकरण अधिनियम, 1913 के पूर्व तथा पश्चात् दोनों में अमान्य माना जाता है.
  2. वह वक्फ जो वाकिफ के परिवार व उत्तराधिकारी के हित के लिये और साथ-साथ या तदुपरान्त खैराती उद्देश्यों के लिये होता है, ऐसा वक्फ भी अधिनियम के पूर्व एक वाद में शून्य घोषित किया गया. संबंधित वाद; अब्दुल फत्ता मोहम्मद बनाम रसमय घर चौधरी, [(1894) 22 इण्डियन अपील्स 76]

वक्फ अधिनियम के पूर्व निजी वक्फ

वक्फ अधिनियम के पूर्व निजी वक्फ तभी मान्य हो सकते थे, जबकि वाकिफ के परिवार वालों के हित के लिये तथा साथ-साथ खैराती उद्देश्यों के लिये वास्तविक पर्याप्त प्रावधान सहित होते थे. जो वक्फ मुख्य रूप से वाकिफ के परिवार की ही भलाई के लिये हों और खैराती उद्देश्य उसमें नाममात्र का हो तो ऐसे वक्फ अमान्य माने जायेंगे. इस प्रकार का वक्फ दो प्रकार से सृजित किया जा सकता था.

एक तो समर्पित की हुई कुल सम्पत्ति की आय के अति छोटे भाग को धार्मिक उद्देश्य था. अधिकांश को निजी परिवार के हित के लिये रखकर तथा दूसरे इस प्रकार से कि वक्फ पत्र में ऐसा प्रावधान किया जाय जिसके अनुसार परिवार का अभ्युदय तो मुख्य उद्देश्य हो तथा दिखावे के लिये कोई दूरवर्ती खैराती उद्देश्य का नाम भी कर दिया गया है.

मुसलमान वक्फ मान्यकिरण अधिनियम, 1913 के पूर्व ऐसा निजी वक्फ जिसमें खैरात के लिये दान दूरस्थ रहता था या दान अल्पराशि के कारण अथवा अनिश्चितता के कारण भ्रान्तिपूर्ण रहता मान्य नहीं था

अब्दुल फता मोहम्मद बनाम रसमयधर चौधरी, [30 (1894) 22  IA 76) के बाद में दो भाइयों ने एक वक्फ स्थापित किया, जिसमें वक्फ सम्पत्ति की आमदनी पहले व्यवस्थापकों के वंशजों के लाभ के लिये पीढ़ी दर पीढ़ी लायी जानी थी और खैरात के पक्ष में वक्फ सम्पत्ति की आय वंश का पूर्ण विनाश हो जाने के पश्चात् ही उपयोग में लाना था. प्रिवी काउन्सिल ने निर्णय दिया कि खैरात के लिये दान दिखावटी एवं भ्रामक हैं. संस्थापकों का एकमात्र उद्देश्य पीढ़ी दर पीढ़ी खानदानी व्यवस्था करना था. अतः ऐसा वक्फ शून्य है.

इस निर्णय का मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया, जिसके फलस्वरूप संसद के द्वारा मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम, 1913 पारित किया गया.

वक्फ मान्यकरण अधिनियम, 1913 के अन्तर्गत निजी वक्फ

इस अधिनियम में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि मुसलमान व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का वक्फ अपने परिवार के सदस्यों तथा वंशजों के हित के लिये कर सकता है, किन्तु शर्त यह है कि अन्त में सम्पत्ति की आय स्थायी धार्मिक, पुण्य सम्बन्धी खैराती हित में व्यय की जाय.

यह आवश्यक नहीं है कि परिवार के सदस्यों के हित के साथ-साथ ही दान की हुई सम्पत्ति की आय खैरात के लिये भी समर्पित की गयी हो.

इस अधिनियम की धारा 3 में यह प्रावधान कर दिया गया है कि हनफी सम्प्रदाय का मुसलमान वक्फ करते समय वक्फ में यह व्यवस्था कर सकता है कि वक्फ के लिये समर्पित सम्पत्ति की आय से उसके भरण-पोषण का खर्च अदा किया जाय. इस अधिनियम के पूर्व वह ऐसा नहीं कर सकता था.

वक्फ मान्यकरण अधिनियम, 1913 की धारा 4 के अनुसार, केवल इस कारण अब कोई भी वक्फ अमान्य नहीं माना जायेगा कि उसमें यह प्रावधान है कि वक्फ की सम्पत्ति की आय तब तक धार्मिक, पवित्र एवं खैराती उद्देश्य के लिये प्रयुक्त न हो जब तक उसके परिवार के बच्चों अथवा वंशजों का अन्त न हो जाय. परन्तु आवश्यक यह है कि अन्तिम लाभ स्थायी प्रकृति के धार्मिक, पूर्त या खैराती प्रयोजनों के लिये आरक्षित किया गया हो.

तमिलनाडु वक्फ बोर्ड बनाम ( L.D. पनरुती, J.T 2008 (1) 123) के बाद में वक्फ सम्पत्ति से होने वाली आय का अधिकांश भाग का परिवार में खर्च होने का प्रावधान किया गया था और पवित्र, खैराती और धार्मिक प्रयोजन के लिए उससे कम आय के खर्च का प्रावधान था। यह निर्णय हुआ कि वक्फ निजी वक्फ है |

वक्फ के आवश्यक तत्व

वक्फ के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-

1. किसी सम्पत्ति का स्थायी समर्पण

मान्य वक्फ की प्रथम अनिवार्यता यह है कि सम्पत्ति का स्थायी समर्पण होना चाहिये. इसके सम्बन्ध में निम्न बातें विचारणीय हैं-

(i). समर्पण का होना आवश्यक है

इसका अभिप्राय यह है कि मुस्लिम विधि द्वारा समझे जाने वाले धार्मिक, पवित्र या खैराती प्रयोजनों के लिये सम्पत्ति के फलोपभोग का एक सारवान समर्पण होना आवश्यक है. समर्पण के अन्तर्गत समर्पण की घोषणा उपलक्षित है. समर्पण की घोषणा हेतु शब्दों का कोई विशेष प्रारूप आवश्यक नहीं है. वह मौखिक भी हो सकता है तथा लिखित भी.

(ii). समर्पण का स्थायी होना आवश्यक है

किसी मान्य वक्फ हेतु समर्पण का स्थायी होना आवश्यक है. समर्पण किसी भी तरह से सीमित नहीं होना चाहिये, परन्तु मस्जिद को वक्फ के रूप में सृजित करने के लिये समर्पण की कोई विशेष प्रक्रिया निर्धारित नहीं की गई है. भारत में यह कानून नहीं लागू होता कि एक बार सम्पत्ति का मस्जिद के रूप में समर्पण हो जाने पर वह सदैव मस्जिद ही रहती है. प्रतिकूल कब्जे द्वारा मस्जिद का स्वत्व समाप्त हो सकता है.

संबंधित मामला; M. इस्माइल फारुकी बनाम भारत संघ (Air 1995 Sc 605)

(iii). समर्पण किसी सम्पत्ति का होना आवश्यक है

कोई भी सम्पत्ति वक्फ की विषय-वस्तु हो सकती है. इसका तात्पर्य यह है कि सिर्फ अचल सम्पत्ति का ही नहीं वरन् चल सम्पत्ति का भी वक्फ किया जा सकता है. उपयोग के साथ समाप्त हो जाने वाली चीजें वक्फ की मान्य विषय वस्तुयें नहीं हो सकतीं, यानी वस्तु को उचित एवं स्थाई प्रकृति का होना आवश्यक है.

2. वक्फ की किसी विषय वस्तु का वाकिफ की सम्पत्ति होना आवश्यक है

वाकिफ यानी समर्पणकर्ता का वक्फ के सृजन के समय समर्पित की जाने वाली सम्पति पर स्थायी नियंत्रण होना आवश्यक है अर्थात वाकिफ की सम्पत्ति का होना आवश्यक है. कोई व्यक्ति जो वस्तुतः सम्पत्ति का स्वामी है, मगर यह विश्वास करता है कि वह सिर्फ मुतवल्ली है, सम्पत्ति का मान्य वक्फ करने के लिये सक्षम होता है.

3. सशर्त एवं घटनापेक्षित वक्फ शून्य होता है

सशर्त एवं घटनापेक्षित वक्फ शून्य होता है. संबंधित वाद; गुजरात आरिफ बनाम गुजरात राज्य (AIR 1997 SC 104) के बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यह मत व्यक्त किया है कि वक्फ का सृजन यदि भविष्य की किसी घटना पर आधारित है तो वक्फ प्रारम्भतः शून्य होगा.

4. इस्लाम धर्म में निष्ठा रखने वाले व्यक्ति के द्वारा

वक्फ इस्लाम धर्म में निष्ठा व्यक्त करने वाले व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है. आवश्यक यह है कि यह स्वस्थचित का हो और भारतीय वयस्कता अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वयस्क हो.

अमीर अली के अनुसार, कोई गैर मुस्लिम भी वक्फ का सृजन करने के लिये सक्षम होता है, बशर्ते कि वह ऐसे प्रयोजन के लिये वक्फ करे जो कि मुस्लिम विधि एवं उस व्यक्ति की वैयक्तिक विधि के अनुसार विधिमान्य हो.

5. मान्य उद्देश्य के लिये

वक्फ इस प्रकार के प्रयोजन के लिये होना चाहिये जिसे मुस्लिम विधि धार्मिक, पवित्र या खैराती मानती हो. जहां किसी वक्फ के कुछ उद्देश्य वैध होते हैं तथा कुछ अवैध तो वैध उद्देश्यों के लिये वक्फ वैध होता है तथा अवैध उद्देश्यों के लिये समर्पित की हुई सम्पत्ति वाकिफ को वापस हो जायेगी. किन्तु यदि प्रत्येक उद्देश्य के लिये समर्पित सम्पत्ति परिभाषित नहीं है या अलग किये जाने योग्य नहीं है तो कुल सम्पत्ति मान्य उद्देश्यों में लगा दी जायेगी |

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