अपीलीय न्यायालय की शक्तियां

Powers of Appellate Court

अपीलीय न्यायालय की शक्तियां

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 386 अपीलीय न्यायालय की शक्तियों का वर्णन करती है, जिसके अनुसार ऐसे अभिलेखों के परिशीलन (Persuing) और यदि अपीलार्थी या उसका प्लीटर हाजिर हों तो उसे तथा लोक अभियोजक (Public Prosecutor) हाजिर हो तो उसे और धारा 377 या धारा 378 के अन्तर्गत अपील की दशा में यदि अभियुक्त हाजिर हो तो उसे सुनने के पश्चात् अपीलीय न्यायालय उस दशा में जिसमें उसका विचार यह हो कि हस्तक्षेप करने का पर्याप्त आधार नहीं है अपील को खारिज कर सकता है, अथवा

1. दोषमुक्ति के आदेश से अपील

दोषमुक्ति के आदेश से अपील में ऐसे आदेश को उलट सकता है और निर्देश दे सकता है कि अतिरिक्त जांच की जाय अथवा अभियुक्त, यथास्थिति पुनः विचारित किया जाये अथवा उसे दोषी ठहरा सकता है और उसे विधि के अनुसार दण्डादेश दे सकता है.

2. दोषसिद्धि से अपील

निष्कर्ष एवं दण्डादेश को उलट सकता है. और अभियुक्त को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकता है या ऐसे अपीलीय न्यायालय के अधीनस्थ सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा उसके पुन: विचारित किये जाने या विचारणार्थं सुपुर्द किये जाने का आदेश दे सकता है, अथवा

  • दण्डादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है, अथवा
  • निष्कर्ष में परिवर्तन करके या किये बिना दण्ड के स्वरूप या परिणाम अथवा में अथवा स्वरूप एवं परिणाम में परिवर्तन कर सकता है किन्तु इस प्रकार नहीं कि उससे दण्ड में वृद्धि हो जाये.

3. दण्डादेश को वृद्धि के लिए अपील

  • निष्कर्ष एवं दण्डादेश को उलट सकता है एवं अभियुक्त को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकता है या ऐसे अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा उसका पुनर्विचारण करने का आदेश दे सकता है, या
  • दण्डादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है, या निष्कर्ष में परिवर्तन किये बिना, दण्ड के स्वरूप या परिणाम में अथवा स्वरूप एवं परिमाण में परिवर्तन कर सकता है जिससे उसमें वृद्धि या कमी हो जाये,

4. किसी अन्य आदेश से अपील में ऐसे आदेश को परिवर्तित कर सकता है या उलट सकता है.

5. कोई संशोधन या कोई परिणामिक (Consequential) या अनुषंगिक (Incidential) आदेश जो न्याय संगत या उचित हो, कर सकता है. परन्तु दण्ड में तब तक वृद्धि नहीं की जायेगी जब तक कि अभियुक्त को ऐसी वृद्धि के विरुद्ध कारण दर्शित करने का अवसर न मिल चुका हो,

परन्तु यह और कि अपीलीय न्यायालय उस अपराध के लिए जिसे उसकी राय में अभियुक्त ने किया है उससे अधिक दण्ड नहीं देगा जो अपीलाधीन आदेश या दण्डादेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिए दिया जा सकता था.

राम शंकर सिंह बनाम स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल (AIR 1962 SC 1239) के बाद में यह निर्धारित किया गया है कि उच्च न्यायालय दोष-सिद्धि और दण्डादेश या दोषमुक्ति के आदेश के विरुद्ध अपीलों में पुनः विचारण या साक्ष्य पर पुनर्विचार करते हुए दोषसिद्धि एवं दण्डादेश के संधारण का आदेश देने के लिए सक्षम है |

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