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प्रतिलिप्यधिकार का अर्थ
प्रतिलिप्यधिकार को अंग्रेजी में कॉपीराइट भी कहा जाता है. प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1485 में किया गया था. प्रतिलिप्यधिकार शब्द की उत्पत्ति शब्दों का प्रतिलिपिक (Copier Of Words) पद से हुई है. जिसका अर्थ छपाई के लिए तैयार की गयी पाण्डुलिपि (Manuscript) या अन्य सामग्री से था.
प्रतिलिप्यधिकार अंग्रेजी कहावत “दाऊ शैल नाट स्टील” (Thou Shall Not Steal) पर आधारित है. इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति किसी लाभ प्राप्त करने की अनुमति देती है और न ही अपने लाभ के लिए उस वस्तु का उपयोग करने की अनुमति देती है जिसे किसी अन्य व्यक्ति ने अपनी बुद्धि, श्रम या कौशल और पूंजी से बनाया और निर्मित किया है. इस प्रकार यदि किसी व्यक्ति ने अपने श्रम या कौशल से कोई पुस्तक लिखी है तो उसके द्वारा लिखी गयी पुस्तक में उसे साम्पत्तिक अधिकार प्राप्त होता है. कृति के इसी साम्पत्तिक अधिकार को रचयिता का प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) कहा जाता है |
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प्रतिलिप्यधिकार की परिभाषा
आक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार, प्रतिलिप्यधिकार एक रचयिता, संगीतकार या उसके समनुदेशिती आदि को उनकी भौतिक कृति की प्रतियों के मुद्रण, प्रकाशन और विक्रय करने के लिए विधि द्वारा निश्चित वर्षों की अवधि तक दिया गया अनन्य अधिकार है.
ब्लैक्स लॉ डिक्शनरी के अनुसार, प्रतिलिप्यधिकार साहित्यिक सम्पदा का अधिकार है. जिसके अनुसार किसी साहित्यिक या कलात्मक उत्पाद के रचयिता या निर्माता को अमूर्त एवं अभौतिक अधिकार प्राप्त होता है जिसके अन्तर्गत वह उस उत्पाद (कृति) के बारे में एक विनिर्दिष्ट अवधि तक उसके मुद्रण एवं विक्रय का अनन्य अधिकार रखता है.
कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 14 के अनुसार, कॉपीराइट निम्नलिखित कृतियों या उसके किसी पर्याप्त भाग के सम्बन्ध में कुछ कार्यों में से किसी को करने या उसका किया जाना प्राधिकृत (Authorized) करने का अनन्य (Unique) अधिकार होता है जो साहित्यिक, नाट्य, संगीतात्मक, कलात्मक कृतियाँ, चलचित्र फिल्म (Movie Film) और ध्वन्यंकन (Recording) |
प्रतिलिप्यधिकार की प्रकृति
- यह विधिपूर्ण कृतियों में अस्तित्वशील अधिकार है.
- यह रचयिता के श्रम एवं कौशल द्वारा सृजित अधिकार है.
- यह संविधि द्वारा उद्भूत एक अधिकार है.
- यह नकारात्मक प्रकृति का एक अधिकार है.
- यह आर्थिक प्रकृति का एक अपराध है.
- यह बौद्धिक सम्पदा का एक वर्ग है.
- इसकी विषय-वस्तु विचारों की अभिव्यक्ति है विचार नहीं।
- यह नैतिक प्रकृति का एक अधिकार है |
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प्रतिलिप्यधिकार का उद्देश्य
- प्रतिलिप्यधिकार का प्रमुख उद्देश्य लेखकों, रचयिताओं, कलाकारों, संकलनकर्ताओं, डिजाइनरों फिल्म निर्माताओं, इत्यादि करने वाले व्यक्तियों के हितों को संरक्षित करता है.
- लेखकों एवं रचयिताओं को मूल कृतियों का सृजन करने के लिए प्रोत्साहित करना है.
- लेखकों एवं रचयिताओं को उनकी मूलकृति में उन्हें अनन्य अधिकार प्रदान करना है जिससे वे अपने मूलकृति से आर्थिक लाभ प्राप्त कर सके.
- प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) का मुख्य उद्देश्य रचयिता के श्रम, कौशल एवं पूंजी को संरक्षण प्रदान करना तथा उसे प्रोत्साहित करना है |
प्रतिलिप्यधिकार की विशेषतायें
- रचयिता के विशेष अधिकारों का संरक्षण करना।
- अतिलंघन की दशा में सिविल एवं दाण्डिक उपचार प्रदान करना।
- विभिन्न वर्गों की कृतियों के लिए कापीराइट की अवधि का निर्धारण करना।
- विधिक कार्यवाहियों के सम्बन्ध में निराधार धमकियों के विरुद्ध उपचार प्रदान करना।
- कृतियों के प्रथम स्वामी के निर्धारण करने में उपबन्ध करना।
- प्रतिलिप्यधिकार की अनुज्ञप्तियों के बारे तथा समुदेशन के बारे में उपबन्ध करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिलिप्यधिकार के बारे में उपबन्ध करना |
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प्रतिलिप्यधिकार की विषय-वस्तु
प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम के अन्तर्गत प्रतिलिप्यधिकार की विषय-वस्तु का उल्लेख धारा 13 के उपबन्धों के अधीन किया गया है जिसके अनुसार प्रतिलिप्यधिकार अधिकार की विषय-वस्तु निम्न हो सकती है; साहित्यिक कृति, नाटक कृति, संगीतिक कृति, सिनेमा फिल्में, ध्वनि रिकार्डिंग, कलात्मक कृति, कम्प्यूटर प्रोग्राम, वास्तुकला कृति और अन्य कोई भी कृति जिसमें प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत प्रतिलिप्यधिकार का संरक्षण प्राप्त है.
राजवीडियो विजन बनाम K. मोहनकृष्ण (AIR 1998 मद्रास 294) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि अधिनियम की धारा ’14घ’ (ii) निर्माता को किसी फिल्म की कॉपी को विक्रय करने, भाड़े पर देने अथवा विक्रय या भाड़े पर देने की प्रस्थापना करने का अधिकार प्रदान करती है, चाहे ऐसी कॉपी किसी पूर्व अवसर पर विक्रय की गई हो या भाड़े पर दी गई हो अथवा नहीं |
प्रतिलिप्यधिकार का समनुदेशन
प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) अधिनियम, 1957 की धारा 18 में प्रतिलिप्यधिकार के समनुदेशन या कार्यभार (Assignment Of Copyright) के बारे में प्रावधान किया गया है. इसके अनुसार किसी विद्यमान कृति में का स्वामी या किसी भावी कृति में प्रतिलिप्यधिकार का होने वाला स्वामी प्रतिलिप्यधिकार का या तो पूर्णतः या भागतः सम्पूर्ण अवधि या उसके किसी भाग के लिए किसी अन्य व्यक्ति को समनुदेशन कर सकता है.
अवतार सिंह एण्ड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड बनाम वेंकटरमण (AIR 2003, NOC 499 मद्रास) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि सिनेमाटोग्राफ एक कृति है और ऐसे फिल्म के समनुदेशन का करार विधिमान्य एवं प्रवर्तनीय है.
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इसी प्रकार ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ इण्डिया लिमिटेड बनाम शान्ति फिल्म्स कारपोरेशन (AIR 1997, कलकत्ता 63) के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि प्रतिलिप्यधिकार चल सम्पत्ति में लाभप्रद हित है, जिसका समनुदेशन द्वारा अन्तरण किया जा सकता है या जो समनुदेशन द्वारा अन्तरण योग्य है.
1. समनुदेशन के आवश्यक तत्व
धारा 19 में समनुदेशन के आवश्यक तत्वों का उल्लेख किया गया है. विधिमान्य समनुदेशन के लिए निम्नांकित बातें आवश्यक हैं-
- वह लिखित में हो;
- वह समनुदेशिती द्वारा हस्ताक्षरित हो; अथवा
- समनुदेशिती द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित हो।
2. अवधि
जहाँ समनुदेशन की अवधि निर्धारित नहीं की गई हो, वहाँ समनुदेशन की अवधि समनुदेशन की तारीख से पाँच वर्ष की होगी।
3. विवादों का विनिश्चय
प्रतिलिप्यधिकार के समनुदेशन के बारे में उत्पन्न विवादों के विनिश्चय के बारे में प्रावधान अधिनियम की धारा 19क में किया गया है. प्रतिलिप्यधिकार के समनुदेशन के सम्बन्ध में उत्पन्न विवादों का विनिश्चय अपीलीय बोर्ड द्वारा किया जायेगा। ऐसे विनिश्चय से पूर्व बोर्ड द्वारा सम्यक जाँच की जायेगी |