ट्रिप्स संधि का महत्व, प्रकार एवं भारत पर इसका प्रभाव

ट्रिप्स संधि का महत्व, प्रकार एवं भारत पर इसका प्रभाव

ट्रिप्स संधि क्या है?

बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण में ट्रिप्स संधि सबसे महत्वपूर्ण सन्धि है जो सन 1994 में अस्तित्व में आयी थी. ट्रिप्स बौद्धिक सम्पदा अधिकार पर विद्यमान अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमयों पर आधारित है. ट्रिप्स (TRIPS) का पूरा नाम है ट्रेड रिलेटेड आस्पेक्ट्स ऑफ इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी सिस्टम है. सामान्यतया यह विश्व के विकसित देशों में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के संरक्षण का जो स्तर है उस स्तर को विश्व व्यापार संगठन के देशों को लागू करने के लिए प्रावधान करता है.

इस संधि के द्वारा आविष्कार के अधिकार व समाज के अधिकारों के बीच अधिक से अधिक सन्तुलन बनाये रखने का प्रयास किया गया है. इसके अतिरिक्त संधि में इस बारे में भी प्रावधान किया गया है कि बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का संरक्षण इस प्रकार हो कि जिस देश में तकनीकी ज्ञान पहुँचे वहाँ तकनीकी विकास की गति में वृद्धि हो.

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यह संधि निम्नलिखित के बारे में प्रावधान करती है-

  1. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का संरक्षण पर्याप्त रूप से किस प्रकार हो?
  2. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों से संबंधित विवादों का निराकरण किस प्रकार हो?
  3. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का प्रवर्तन विभिन्न देशों द्वारा कैसे किया जाय?
  4. अन्तर्राष्ट्रीय बौद्धिक सम्पदा अधिकार और व्यापार प्रणाली के अन्तर्गत समझ के बुनियादी सिद्धान्तों को कैसे लागू किया जाये?
  5. नई व्यवस्था लागू होने के दौरान विशेष संक्रमणकालीन व्यवस्थायें क्या हों? |

ट्रिप्स संधि के प्रकार

ट्रिप्स संधि 7 प्रकार की बौद्धिक सम्पदाओं पर लागू होती है जो निम्नलिखित हैं-

  1. पेटेन्ट (Patent)
  2. व्यापार चिन्ह (Trade Mark)
  3. प्रतिलिप्यधिकार (Copyright)
  4. औद्योगिक डिजाइन (Industrial Design)
  5. एकीकृत सर्किट ले आउट डिजाइन (Integrated Circuit Layout Design)
  6. ट्रेड सीक्रेट (Trade Secret)
  7. भौगोलिक उपदर्शन (Geographical Indications) |

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    ट्रिप्स संधि का महत्व

    ट्रिप्स संधि जो बौद्धिक सम्पदा अधिकार के संरक्षण के बारे में एक महत्वपूर्ण सन्धि है इसका निम्नलिखित महत्व है-

    1. बौद्धिक संपदा अधिकार का संरक्षण करना।
    2. आविष्कार के अधिकार व समाज के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करना।
    3. इस सन्धि के द्वारा विकसित देशों की तुलना में कम विकसित देशों को अधिक महत्व दिया गया है.
    4. तकनीकी विकास की गति में वृद्धि में सहायक।
    5. वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वाणिज्य की आवश्यकताओं को संरक्षित एवं विनियमित करके ये ट्रिप्स संन्धि द्वारा सार्थक प्रयास किये गये।
    6. यह पेटेण्ट, व्यापार चिन्ह, प्रतिलिप्यधिकार, औद्योगिक डिजाइन एवम ट्रेड सीक्रेट आदि के संरक्षण के बारे में प्रावधान करता है.
    7. इस सन्धि को लागू होने के पश्चात् भारत में सेवा चिह्न व सामूहिक चिह्न के प्रति कानून सख्त हो गया है.
    8. ट्रिप्स सन्धि का सबसे बड़ा और विशेष महत्व यह है कि उन सभी अधिनियमों को जो बौद्धिक सम्पदा से संबंधित थे उनको एक विधिक परिधि में लाता है.
    9. यह सन्धि विश्व व्यापार संगठन के अन्दर विवादों को सुलझाने के लिये एक महत्वपूर्ण और प्रभावी व्यवस्था प्रदान करता है.
    10. इस सन्धि का एक महत्व यह भी है कि यह बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षक अर्थात जांचकर्ता या आविष्कारकर्ता को संरक्षण प्रदान करता है और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के दुरुपयोग, अनधिकृत प्रयोग या उल्लंघन के लिये सिविल तथा कुछ मामलों में दाण्डिक व्यवस्था का उपबन्ध करता है |

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    ट्रिप्स संधि और भारत पर इसका प्रभाव

    व्यापार सम्बद्ध बौद्धिक सम्पदा अधिकार उपबन्ध (TRIPS) भारतीय पेटेन्ट अधिनियम, 1970 के उपबन्धों से पूर्णतः भिन्न है. विश्व व्यपार संगठन (WTO) समझौते के तहत ट्रिप्स के नये कानून जो पहली जनवरी, 2005 से लागू हैं, वे कानून भारतीय पेटेंट कानूनों के विपरीत हैं.

    पहली जनवरी, 2005 से भारतीय पेटेन्ट ऐक्ट WTO के कानून के अनुरूप बन गया है. पहली जनवरी 2005 से भारत में दवाओं, खाद्य पदार्थों, रसायनों इत्यादि को पेटेन्ट दायरे में ले आया गया है. इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के कीटनाशक, फफूंदी नाशक इत्यादि भी पेटेन्ट की परिधि में आ गये हैं. ऐसे रसायन जिनका उपयोग दवाओं के निर्माण में किया जाता है, वे भी पेटेन्ट की परिधि में आ गये हैं.

    भारत में किसी आविष्कार को 5 से 7 वर्ष का पेटेन्ट अधिकार प्रदान किया गया है. इस अवधि के दौरान आविष्कार के प्रयोग और वितरण पर आविष्कारकर्ता को देश के अन्दर पूर्ण स्वामित्व होता है परन्तु देश के बाहर आविष्कार का प्रयोग होने की दशा में आविष्कार का कोई स्वत्वाधिकार नहीं होता.

    सरकार लोकहित में पेटेन्ट को समय से पूर्व वापस ले सकती है ऐसी व्यवस्था भारतीय पेटेन्ट अधिनियम में थी. पेटेन्ट की स्वीकृति के बाद लाइसेन्स की व्यवस्था है, जिसे अधिकार के लिए लाइसेन्स कहा जाता है और पेटेन्ट को लोकहित में रद्द किया जा सकता है, परन्तु ट्रिप्स समझौते में न तो अधिकार के लिये अनिवार्य लाइसेन्स और न ही पेटेन्ट को रद्द करने के बारे में उपबन्ध है.

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    ट्रिप्स सन्धि के द्वारा भारतीय पेटेन्ट की अवधि को भी 5 से 7 वर्ष की जगह बढ़ा कर 20 वर्ष कर दिया गया है. इससे हमारे दवा उद्योग भी चौपट होंगे और आम दवाएं इतनी मंहगी हो जाएंगी कि सामान्य व्यक्ति को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

    ट्रिप्स संधि का उद्देश्य प्रौद्योगिकी मशीनरी, रसायनों और बीजों आदि के क्षेत्रों में नये आविष्कारों पर पेटेन्ट संबंधी भुगतान को और अधिक करना है. इसका मतलब है कि यदि कोई देश ऐसी प्रौद्योगिकी। दवाओं, बीजों या मशीनरी का इस्तेमाल कर रहा है जिसे किसी दूसरे देश में खोजा गया हो या विकसित किया गया हो तो उस देश को 20 वर्षों तक की अवधि के पेटेन्ट अधिकार पाने के लिये उस देश को भुगतान करना होगा, जिस देश में यह प्रद्योगिकी, बीज आदि खोजे गये हैं.

    ट्रिप्स कानून के तहत माइक्रोसाफ्ट कंपनी द्वारा बनाये गये विंडोज साफ्टवेयर को दूसरा व्यक्ति बनाकर नहीं बेंच सकता। माइक्रोसाफ्ट का इस तकनीक पर एकाधिकार है और यह मनमाना मूल्य वसूल कर सकती है. इसी से माइक्रोसाफ्ट के मालिक बिल गेट्स विश्व के सबसे धनी व्यक्ति बने हैं. अतः अमीर देशों की अमीरी का पहला आधार ट्रिप्स समझौता है.

    यह कहना पर्याप्त है कि वर्तमान ट्रिप्स कानून का विकासशील देश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. यह ट्रिप्स संधि आविष्कार को प्रोत्साहन व बढ़ावा देने के स्थान पर अवरोध पैदा कर रहा है. हमारे देश में हमारी गरीबी एवं बढ़ती वैश्विक असमानता का मूल कारण भी यह सन्धि बन रहा है. ट्रिप्स सन्धि से दोहरा नुकसान मानवता को हो रहा है |

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