विबंधन का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार?

विबंधन क्या है?

इस्टापेल अंग्रेजी भाषा के शब्द फ्रेन्च शब्द इस्टाप से पाया गया है जिसका अर्थ है “रोक देना” अर्थात किसी व्यक्ति के पहले के कार्य या स्वीकृति उसे यथार्थ तथ्य या सत्य कथन करने से रोक देते हैं.

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 में विबंधन के नियम के बारे में कहा गया है कि “जब कि एक व्यक्ति ने अपनी घोषणा, कार्य या लोप (Omissioh) द्वारा अन्य व्यक्तियों को विश्वास कराया है या कर लेने दिया है कि कोई बात सत्य है और ऐसे विश्वास पर कार्य कराया या करने दिया है तब न तो उसे और न उसके प्रतिनिधि को अपने और ऐसे व्यक्ति के या उसके प्रतिनिधि के बीच किसी बाद या कार्यवाही में उस बात की सत्यता का प्रत्याख्यान (Deny) करने दिया जायेगा”।

जैसे- यदि क साशय और मिथ्या रूप से ख को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है कि अमुक भूमि क की है और इस प्रकार ख को उसे क्रय करने और उसका मूल्य चुकाने के लिए उत्प्रेरित करता है तो बाद में यदि वह भूमि क की हो जाती है. वह इस आधार पर कि विक्रय के समय उस पर उसका हक नहीं था. विक्रय निरस्त करने की इच्छा करता है तो उसे अपने हक का अभाव साबित करने नहीं दिया जायेगा |

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विबंधन के आवश्यक तत्व?

विबंधन लागू होने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं-

  1. किसी भी रूप में शब्दों, कार्य या लोप द्वारा कोई व्यपदेशन होना चाहिये.
  2. व्यपदेशन किसी तथ्य के सम्बन्ध में होना चाहिए न कि भविष्य के किसी कार्य या प्रतिज्ञा के बारे में.
  3. व्यपदेशन करने वाले का आशय यह रहा हो कि उसके द्वारा किये गये। व्यपदेशन पर विश्वास किया जाय.
  4. यह जरूरी नहीं है कि व्यपदेशन करने के पीछे कंपटपूर्ण आशय रहा हो। यदि भ्रम में भी व्यपदेशन किया गया है तो वह विबन्धन हो सकता है.
  5. कोई व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जिसने उस व्यपदेशन पर विश्वास किया हो.
  6. विश्वास करने वाले व्यक्ति ने अपनी स्थिति में किसी प्रकार का परिवर्तन कर लिया हो.
  7. जो पक्ष विबंधन के नियम की सहायता चाहता है उसे सत्यता का ज्ञान न रहा हो.

विबंधन के प्रकार (Types of Estoppel)

1. अभिलेख द्वारा विबंधन

किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी विषय पर दिया गया निर्णय विबन्ध का काम करता है और जिस बाद में निर्णय दिया गया है उसके पक्षकार उसी विषय को दोबारा न्यायालय में ले जाने या विवादग्रस्त बनाने से रोक दिये जाते हैं.

अभिलेख के विषयों द्वारा विबंधन उन सभी विषयों पर लागू होता है. जो निर्णय के समय अस्तित्व में थे तथा पक्षकारों को उन्हें न्यायालय के सामने लाने का अवसर था। अभिलेख विबन्ध को साक्ष्य अधिनियम में नहीं अपनाया गया है.

2. विलेख द्वारा विबंधन

यदि किसी विशेष तथ्य का स्पष्ट कथन किसी मुद्रांकित दस्तावेज के परिवर्णन में किया गया है और उस परिवर्णन के सन्दर्भ में कोई संविदा की जाती है तो यह निर्विवाद सत्य है कि उस दस्तावेज के पक्षकारों के बीच तथा उस पर आधारित किसी कार्यवाही में, उसके पक्षकार उस परिवर्णन से इन्कार नहीं कर सकते। भारत में विलेख द्वारा विबन्धन नहीं लागू होता.

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निम्न बातें इसके सम्बन्ध में महत्वपूर्ण हैं-

  1. यह पक्षकारों और संसर्गियों के बीच विलेख की कार्यवाहियों में लागू होते हैं.
  2. कोई भी विबन्ध जो किसी बाध्यता के लिये आशय नहीं रखता है वह नहीं लागू होगा.
  3. यदि विलेख कपट या अवैधता के कारण दूषित हो तो कोई भी विबन्ध नहीं लागू होगा.

3. आचरण द्वारा विबंधन

आचरण विबन्ध पक्षकारों के कार्य, व्यपदेशन या आचरण द्वारा उत्पन्न होता है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 आचरण विबन्ध को ही मान्यता देता है. यह विबन्ध उस स्थिति में लागू होता है जब कोई व्यक्ति अपने शब्दों या आचरण द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को किसी बात पर विश्वास कराता है. और दूसरा व्यक्ति विश्वास करके अपनी स्थिति में परिवर्तन कर लेता है.

कार्य द्वारा विबंधन वहाँ होता है, जहाँ कोई व्यक्ति अपने कार्यों से दूसरे को किसी तथ्य के अस्तित्व की सत्यता पर विश्वास दिला देता है |

क्या मौन से विबंधन हो सकता है?

मात्र चुप रहना ही व्यपदेशन नहीं है किन्तु जहाँ बोलना कर्तव्य है वहाँ जानबूझ कर चुप रहा जाता है. यह व्यपदेशन के तुल्य समझा जाता है और वहाँ विबंधन उत्पन्न होता है. दूसरे शब्दों में जब ऐसी परिस्थिति है कि यदि चुप रहा जाय तो विपक्षी पर जालसाजी होगी। तो वहाँ विबंधन हो सकता है |

विबंधन के अपवाद?

1. जब सत्यता दोनों पक्षकारों को मालूम हो

जब सत्यता दोनों पक्षकारों को मालूम होती है तो विबंधन का सिद्धान्त लागू नहीं होता है. मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास में अभिनिर्धारित किया गया कि विबंधन का नियम वहाँ लागू नहीं होता है जहाँ पर किसी व्यक्ति ने किसी तथ्य के बारे में निरूपण किया है. जिसकी सत्यता दोनों पक्षकारों को मालूम है.

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2. विधि के प्रश्न पर

धारा 115 तब लागू होती है, जबकि तथ्य का प्रश्न प्रश्नागत हो विधि के प्रश्न पर विबंधन का सिद्धान्त लागू नहीं होता है. विबंधन अधिनियम के विरुद्ध नहीं हो सकता है.

3. संप्रभु कार्यों के विरुद्ध

सरकार के खिलाफ संप्रभु कार्यों, तथा शासकीय कार्यों के सन्दर्भ में कोई विबंधन नहीं हो सकता है.

4. अवयस्क

अवयस्क पर विबंधन का सिद्धान्त लागू नहीं होता है, क्योंकि विबंधन का व्यपदेशन आवश्यक है, जोकि संविदा करने में सक्षम व्यक्ति द्वारा ही किया जा सकता है. अर्थात अवयस्क द्वारा विबंधन नहीं हो सकता है |

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