किसी कंपनी के निदेशकों की शक्तियां एवं कर्तव्य

किसी कंपनी के निदेशकों की शक्तियां एवं कर्तव्य

कंपनी के कारबार का संचालन एवं प्रबन्धन निदेशकों द्वारा ही किया जाता है. वस्तुतः कंपनी का सारा कामकाज निदेशकों के जिम्मे ही होता है. यही कारण है कि कंपनी अधिनियम के अन्तर्गत निदेशकों को विपुल शक्तियां प्रदान की गयी हैं. वास्तविकता तो यह है कि कम्पनी की शक्तियों का प्रयोग उसके निदेशकों द्वारा ही किया जाता है. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कंपनी एवं निदेशकों की शक्तियों का प्रयोग वस्तुतः निदेशक बोर्ड (Board of Directors) द्वारा किया जाता है, किसी निदेशक-विशेष द्वारा नहीं. निदेशक बोर्ड चाहे तो वह अपनी शक्तियां किसी निदेशक को प्रत्यायोजित (Delegate) कर सकता है |

1. निदेशक के शक्तियां

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 179 के अन्तर्गत निदेशक बोर्ड की शक्तियों का उल्लेख किया गया है. इसके अनुसार-

2. प्रबन्ध की शक्तियां

प्रबन्ध की शक्तियां धारा 179 (1) में यह कहा गया है कि कंपनी के निदेशक बोर्ड को वे सारी शक्तियां प्राप्त हैं जो कंपनी को हैं अर्थात् कंपनी की समस्त शक्तियों का प्रयोग निदेशक बोर्ड द्वारा ही किया जाता है. लेकिन निदेशक बोर्ड ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता है जो कंपनी अधिनियम, संगम ज्ञापन अथवा संगम-अनुच्छेदों के अन्तर्गत केवल अंशधारियों द्वारा ही किया जा सकता है. निदेशक बोर्ड को अपनी शक्तियों का प्रयोग कंपनी अधिनियम संगम-ज्ञापन एवं संगम अनुच्छेदों के अन्तर्गत रहते हुये ही करना होता है.

निदेशक बोर्ड को कंपनी के ‘प्रबन्ध’ की शक्तियां प्राप्त हैं. यह शक्तियां समस्त अंशधारियों द्वारा प्रदत्त को जाती हैं, बहुमत द्वारा नहीं. अतः अंशधारियों के साधारण बहुमत से निदेशक बोर्ड की प्रबन्ध को शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है |

3. अंश आवंटन की शक्तियां

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 39 एवं 40% के अन्तर्गत ‘अंशों के आवंटन’ की शक्तियां निदेशक बोर्ड को प्रदत्त की गयी हैं. इस सम्बन्ध में निदेशक बोर्ड का यह कर्तव्य है कि वह अंशों का आवंटन कंपनी के हित में करें, किसी व्यक्ति या वर्ग-विशेष के हित में नहीं |

4. प्रीमियम पर अंश निर्गमन की शक्तियां

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 52 के अन्तर्गत प्रीमियम पर अंश निर्गमित करने की शक्तियां भी निदेशक बोर्ड को प्रदत की गयी हैं। विहित शर्तों के पूरा हो जाने पर निदेशक बोर्ड द्वारा प्रीमियम पर अंश निर्गमित किये जा सकते हैं. प्रीमियम पर अंश निर्गमित किये जाने से अभिप्राय है. किसी अंश को उसके नामीय मूल्य से अधिक मूल्य पर निर्गमित किया जाना.

5. बट्टे पर अंश निर्गमन की शक्तियां

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 53 के अन्तर्गत कविपय शर्तों के पूरा हो जाने पर निदेशक बोर्ड द्वारा बट्टे (Discount ) पर अंश निर्गमित किये जा सकते हैं. बट्टे पर दिये गये अंशों से अभिप्राय ऐसे अंशों से है जो नामीय मूल्य से कम मूल्य पर दिये जाते हैं.

6. अंश-मूल्य की मांग करने की शक्तियां

कंपनी द्वारा अनेक बार अपने अशधारियों को यह सुविधा प्रदान की जाती है कि उनके द्वारा अंशों का कुछ मूल्य आवंटन के समय दे दिया जाये और शेष कंपनी द्वारा मांग किये जाने पर चुकता कर दिया जाये. कंपनी द्वारा ऐसे शेष मूल्य के भुगतान किये जाने को ‘अंश-मूल्य की मांग करना’ कहा जाता है. कंपनी के निदेशकों को ऐसे मूल्य की मांग करने की शक्तियां प्रदान की गयी हैं.

7. अंश जब्ती की शक्तियां

जब अंश मूल्य की मांग किये जाने पर भी अंशधारियों द्वारा मूल्य का संदाय नहीं किया जाता है तो ऐसे अंशधारियों के विरुद्ध कंपनी द्वारा समुचित कार्यवाही की जा सकती है और ऐसी कार्यवाही के अन्तर्गत अंशों को जब्त किया जा सकता है. जब्ती की यह शक्तियां भी निदेशक बोर्ड में निहित हैं. संगम-अनुच्छेदों में प्रायः ऐसी शक्ति का उल्लेख रहता है.

8. संविदा आदि करने की शक्तियां

प्राधिकृत किये जाने पर निदेशकों को अभिकर्ता के रूप में कंपनी के लिये, संविदा करने, ऋण लेने,परक्राम्य लिखत निष्पादित करने आदि की शक्तियां प्राप्त हैं.

9. निवेश की शक्तियां

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 186 के अन्तर्गत कंपनी की पूंजी का अन्य कम्पनियों में निवेश करने की शक्तियां निदेशकों को प्रदत्त की गयी हैं.

10. निदेशकों की नियुक्ति की शक्तियां

कतिपय विशेष परिस्थितियों में निदेशक बोर्ड को निदेशकों की नियुक्ति की शक्तियां प्रदान की गयी हैं. सामान्यतः रिक्तता की पूर्ति करने के लिये निदेशक बोर्ड द्वारा निदेशकों की नियुक्ति की जाती है. संगम अनुच्छेदों में ऐसी शक्तियों का उल्लेख रहता है.

11. वाद लाने का अधिकार

निदेशकों को कम्पनी की ओर से वाद लाने की शक्तियां प्राप्त हैं. यदि निदेशक वाद लाने में असफल रहते हैं तो बहुसंख्यक अंशधारकों द्वारा कम्पनी की ओर से वाद लाया जा सकता है. यदि निदेशक स्वयं कंपनी के विरुद्ध अपकृत्य का दोषी है तो वाद अंशधारियों द्वारा लाया जा सकेगा |

निदेशक के कर्तव्य

निदेशकों के कतिपय कर्तव्य भी हैं. साधारणतया यह कर्तव्य दो प्रकार के माने जाते सामान्य कर्तव्य एवं सांविधिक कर्तव्य. इन कर्तव्यों का अध्ययन निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है.

1. वैश्वासिक कर्तव्य

निदेशकों का कंपनी तथा अंशधारियों के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध होता है. अतः निदेशकों का यह कर्तव्य है कि वे इन वैश्वासिक सम्बन्धों को बनाये रखें.

2. कौशल एवं सतर्कता

निदेशकों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कौशल एवं सतर्कता से किये जाने की अपेक्षा की जाती है. उनका कर्तव्य है कि वे हर कार्य में युक्तियुक्त सावधानी बरतें, ऐसी सावधानी जैसी एक प्रज्ञावान व्यक्ति (Prudent Person) अपने ही मामले में बरतता है.

3. बैठकों में भाग लेना

निदेशकों का यह कर्तव्य है कि वे समय-समय पर कंपनी की बैठकों में भाग लेते रहें अर्थात् बैठकों में उपस्थित रहें. यद्यपि निदेशक कम्पनी की हर बैठक में भाग लेने के लिये आबद्ध नहीं है तथापि अपेक्षा यह की जाती है कि वे अधिक से अधिक बैठकों में भाग लें ताकि कंपनी की सारी गतिविधियों से वे अवगत रहे.

4. प्रत्यायोजन

सामान्यतः प्रत्येक निदेशक को अपना काम स्वयं करना चाहिये. यह अपना कार्य किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यायोजित नहीं कर सकता. लेकिन इस नियम के कुछ अपवाद हैं. निम्नांकित परिस्थितियों में निदेशकों द्वारा अपना कार्य प्रत्यायोजित (Delegate) किया जा सकता है-

यदि कंपनी के संगम ज्ञापन या संगम-अनुच्छेदों द्वारा प्रत्यायोजन अनुज्ञात किया गया हो; तथा कार्यों का प्रत्यायोजन कंपनी के कारबार के सामान्य अनुक्रम में आवश्यक हो.

5. वैयक्तिक हित

निदेशकों के कंपनी के साथ वैश्वासिक सम्बन्ध होते हैं, अतः उनका यह कर्तव्य है कि वे कंपनी के प्रतिकूल अपना कोई हित नहीं रखे. दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि कंपनी एवं निदेशक के हितों में कोई टकराव न हो |

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