Table of Contents
- 1 न्यासधारी के कर्त्तव्य तथा उत्तरदायित्व
- 2 1. न्यासधारी को न्यास का निष्पादन करना
- 3 2. न्यासधारी को न्यास की गयी सम्पत्ति की हालत से अपने को सूचित रखना उचित है
- 4 3. न्यासधारी को न्यास की गई सम्पत्ति के अधिकार की रक्षा करना है
- 5 4. न्यासधारी हिताधिकारी से प्रतिकूल अधिकार स्थापित नहीं करेगा
- 6 5. न्यासधारी से सावधानी जरूरी
- 7 6. नष्ट होने योग्य सम्पत्ति का परिवर्तन
- 8 7. न्यासधारियों को निष्पक्ष होना आवश्यक है
- 9 8. फिजूलखर्ची रोकना
- 10 9. लेखा तथा जानकारी रखना
न्यासधारी के कर्त्तव्य तथा उत्तरदायित्व
न्यासधारी के कर्त्तव्य एवं उत्तरदायित्व क्या हैं? भारतीय न्यास अधिनियम की धारा 11 से 29 तक न्यासधारी के कर्त्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों का उल्लेख किया गया है जो कि निम्नलिखित हैं-
1. न्यासधारी को न्यास का निष्पादन करना
न्यासधारी न्यास के उद्देश्य की पूर्ति और न्यास को जन्म देते समय न्यासकर्ता द्वारा दिये गये आदेशों का पालन करने के लिये बाध्य है. सिवाय जिस रूप में वे संविदा के लिये समर्थ समस्त हितग्राहियों के द्वारा रूपभेदित कर दिये गये हैं. परन्तु निम्नलिखित दो अवस्थाओं में ऐसा करना आवश्यक नहीं है-
- न्यासधारी हितग्राहियों की अनुमति से, यदि वे सब के सब संविदा करने को सक्षम हों, न्यास के प्रबन्ध में परिवर्तन कर सकता है; और
- ऐसे निदेशों के पालन से बच सकता है जो व्यवहार न करने योग्य, अवैध अथवा हितग्राहियों के लिये प्रत्यक्ष रूप से हानिकर हों.
2. न्यासधारी को न्यास की गयी सम्पत्ति की हालत से अपने को सूचित रखना उचित है
न्यासधारी के लिये यह आवश्यक है कि वह जल्द से जल्द न्यास की गयी सम्पत्ति की प्रकृति तथा परिस्थिति की जानकारी प्राप्त करे. जहाँ आवश्यक हो अपने पक्ष में न्यास की गयी सम्पत्ति का अन्तरण प्राप्त करे और न्यास के दस्तावेजों के उपबन्धों के अधीन अपर्याप्त तथा जोखिमपूर्ण प्रतिभूति पर विनिहित धन को लौटा ले.
3. न्यासधारी को न्यास की गई सम्पत्ति के अधिकार की रक्षा करना है
न्यासधारी ऐसे सब वादों का धारण तथा प्रतिवाद करने और न्यास के दस्तावेज के उपबन्धों के अधीन ऐसी अन्य कार्यवाही करने के लिये बाध्य है. जो न्यास की गई सम्पत्ति की प्रकृति, राशि अथवा मूल्य को ध्यान में रखते न्यास की गई सम्पत्ति की परिरक्षा और उसके स्वत्व से निश्चयपूर्वक कथन अथवा संरक्षण के लिए आवश्यक हो.
यदि सम्पत्ति अचल है तथा बिना पंजीकरण के दी गई है तो उसका रजिस्ट्रेशन कराये.
4. न्यासधारी हिताधिकारी से प्रतिकूल अधिकार स्थापित नहीं करेगा
न्यासधारी के लिये यह आवश्यक है कि अपने या किसी अन्य के लिये हितग्राही के हित के प्रतिकूल न्यस्त सम्पत्ति के सम्बन्ध में कोई स्वत्व स्थापित न करे और उसमें सहायक न हो. यह एक मान्य नियम है कि कोई न्यासधारी अपने हितग्राही के स्वत्व पर आपत्ति करने के लिये समर्थ नहीं होता. वह ईमानदारी से यह विश्वास करते हुए भी कि न्यास की गई सम्पत्ति अधिकार रूप में किसी तीसरे व्यक्ति की है, उसके विरुद्ध किसी आधार पर भी कार्य नहीं कर सकता है.
5. न्यासधारी से सावधानी जरूरी
न्यासधारी न्यास की गयी सम्पत्ति से उतनी ही सावधानी के साथ व्यवहार करने के लिये बाध्य है जितनी कि एक सामान्य विचारशील मनुष्य, यदि ऐसी सम्पत्ति उसकी अपनी हो, बरतेगा और किसी प्रतिकूल संविदा के न होने पर इस प्रकार व्यवहार करने वाला न्यासधारी न्यास की गई सम्पत्ति की हानि, नाश अथवा ह्रास के लिए उत्तरदायी न होगा.
6. नष्ट होने योग्य सम्पत्ति का परिवर्तन
जहां उत्तरोत्तर कई व्यक्तियों के लाभ के लिये कोई न्यास किया जाय और न्यास की गई सम्पत्ति नष्टशील अथवा भावी (Future) अथवा उत्तरभोगी हित (Reversionary Interest) हो, वहां जब तक कि न्यास के प्रलेख से किसी विपरीत आशय का अनुमान न लगाया जा सकता हो, न्यासधारी सम्पत्ति को स्थायी तथा तत्काल लाभप्रद प्रकृति की सम्पत्ति में परिवर्तित करने के लिये उत्तरदायी होता है.
स्नेल हो बनाम डार्टमाउथ (1802) के मामले में निश्चित किया गया कि नाशशील तथा जोखिमपूर्ण प्रतिभूतियों का शेष-सम्पदाधिकारी के हित में और उत्तरभोगी हितों का आजीवन आभोगी के लाभ के लिए परिवर्तन उचित है.
7. न्यासधारियों को निष्पक्ष होना आवश्यक है
जब हितग्राही एक से अधिक हों, तो न्यासधारी निष्पक्ष होने के लिये बाध्य है और उसके लिये यह आवश्यक है कि वह न्यास का निष्पादन एक के लाभ के लिये दूसरे को हानि पहुँचाकर न करे. न्यासधारी न्यास के निष्पादन में निष्पक्ष होने के लिये बाध्य है और उसके लिये यह आवश्यक है कि वह दूसरे हितग्राही को हानि पहुँचाकर किसी हितग्राही को लाभ न पहुँचाये.
8. फिजूलखर्ची रोकना
जहां न्यास एक के बाद एक कई व्यक्तियों के लाभ के लिये किया जाय और उनमें से एक व्यक्ति सम्पत्ति पर काबिज हो तो कोई कार्य, जो उसके लिये विनाशका अथवा स्थायी रूप में हानिकर हो, करे या करने की धमकी दे, न्यासधारों ऐसे कार्य को रोकने का उपाय करने के लिये बाध्य है. आजीवन आभोगी के अनुचित कार्यों से सम्पति की रक्षा करना न्यासधारी का कर्तव्य है.
9. लेखा तथा जानकारी रखना
न्यासधारी ‘क’ व्यास की गयी सम्पति को स्पष्ट तथा ठीक लेखा रखने और ‘ख’ सभी उचित समयों पर हिताधिकारी के अनुरोध पर उसे न्यास की गयी सम्पत्ति की राशि और अवस्था के सम्बन्ध में पूरी और सही-सही सूचना देने के लिये बाध्य है |