Table of Contents
- 1 राष्ट्रीयता की परिभाषा
- 2 राष्ट्रीयता के वास्तविक एवं प्रभावी बंधन का सिद्धान्त
- 3 राष्ट्रीयता का महत्व
- 4 राष्ट्रीयता प्राप्त करने के तरीके
- 5 1. जन्म से
- 6 2. देशीकरण से
- 7 राष्ट्रीयता का खोना
- 8 1. मुक्ति द्वारा
- 9 2. अपहरण द्वारा
- 10 3. दीर्घकाल तक बाहरी निवास द्वारा
- 11 4. परित्याग द्वारा
- 12 5. प्रतिस्थापन द्वारा
राष्ट्रीयता की परिभाषा
स्टार्क के अनुसार, “राष्ट्रीयता की परिभाषा ऐसे व्यक्तियों की सामूहिकता की सदस्यता की स्थिति से दी जा सकती है जिसके कृत्य, निर्णय और नीति ऐसे राज्य की वैध अवधारणा के माध्यम से संरक्षित हैं जो कि उन व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है.”
फेन्विक के अनुसार, “राष्ट्रीयता एक ऐसा बंधन है जो व्यक्ति को राज्य के साथ सम्बद्ध करके उसे राज्य विशेष का सदस्य बनाता है तथा उसे राज्य के संरक्षण का अधिकार दिलाता है तथा यह उसका उत्तरदायित्व होता है कि वह राज्य द्वारा निर्मित कानूनों का पालन करे।”
केल्सन के अनुसार, नागरिकता व राष्ट्रीयता एक व्यक्ति की स्थिति है, जो कि वैध रूप में किसी राज्य का सदस्य है और उसे आलङ्कारिक रूप से उस समुदाय का सदस्य कहा जा सकता है.
हाइड के अनुसार, राष्ट्रीयता एक व्यक्ति और राज्य के उस सम्बन्ध का द्योतन करती है. जो इस प्रकार है कि राज्य बहुत से आधारों पर समझ लेता है कि व्यक्ति की निष्ठा उसके प्रति है |
राष्ट्रीयता के वास्तविक एवं प्रभावी बंधन का सिद्धान्त
राष्ट्रीयता के वास्तविक एवं प्रभावी बन्धन के सिद्धान्त का प्रतिपादन नाटेबाम वाद (Nottebohm Case, I.C.J. Rep. 1955) में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा किया गया था. इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दो राष्ट्रों की राष्ट्रीयता प्राप्त होती है तो दोनों की राष्ट्रीयता के संघर्ष की दशा में उस देश की राष्ट्रीयता ही अधिक मान्य होगी जिसके साथ उसका सारवान् रूप से वास्तविक तथा प्रभावी सम्बंध रहा है अथवा जब देशीकरण के आधार पर राष्ट्रीयता प्राप्त की जाती है तो यह देखना चाहिए कि देशीकरण के समय तथा उसके पश्चात सम्बंधित व्यक्ति के वास्तविक तथा प्रभावशाली सम्बंध किस देश के साथ थे तथा उसे प्रदान की गई राष्ट्रीयता क्या वास्तव में प्रभावशाली थी |
राष्ट्रीयता का महत्व
- राजनयिक प्रतिनिधियों के संरक्षण के अधिकार राष्ट्रीयता के ही परिणामस्वरूप हैं.
- यदि कोई राज्य अपने राष्ट्रीयता वाले किसी व्यक्ति को ऐसे हानिकारक कार्य करने से नहीं रोकता है, जिसका प्रभाव दूसरे राज्य पर पड़ता है तो वह राज्य उस व्यक्ति के कार्यों के लिये दूसरे राज्य के प्रति उत्तरदायी होगा.
- सामान्यतः राज्य अपने राष्ट्रीयता वाले व्यक्तियों को वापस लेने से इन्कार नहीं करते.
- राष्ट्रीयता से तात्पर्य स्वामिभक्ति से भी होता है। अतः राष्ट्रीयता का एक गुण यह भी होता है कि व्यक्ति अपने राष्ट्रीयता वाले देश में सैनिक सेवा के लिए बाध्य होता है.
- राष्ट्रीयता का एक यह भी प्रभाव होता है कि कोई राज्य अपने राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति का प्रत्यर्पण करने से इन्कार करने का अधिकारी होता है.
- बहुत से राज्यों के व्यवहार के अनुसार युद्ध के समय शत्रुरूपता (Enemy Character) राष्ट्रीयता के आधार पर निर्धारित होती है.
- बाह्य प्रादेशिकता सिद्धान्त के अनुसार राज्य अपने राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति के ऊपर आपराधिक तथा अन्य मामलों में क्षेत्राधिकार रखते हैं |
राष्ट्रीयता प्राप्त करने के तरीके
अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार राष्ट्रीयता प्राप्त करने के निम्नलिखित ढङ्ग हैं-
1. जन्म से
व्यक्ति जिस राष्ट्र में जन्म लेता है वह वहां की राष्ट्रीयता प्राप्त करता है या जन्म के समय जो उसके माता-पिता की राष्ट्रीयता होती है वह उसे भी प्राप्त हो जाती है.
2. देशीकरण से
देशीकरण द्वारा भी राष्ट्रीयता प्राप्त की जा सकती है. जब किसी राष्ट्र में रहने वाला विदेशी उस देश को नागरिकता प्राप्त कर लेता है. तो उसे देशीकरण कहते हैं.
नाटेबाम वाद [Notebohm Case, I.C.J. Rep. (1955)] में न्याय के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय ने निर्णय दिया था कि किसी व्यक्ति को राष्ट्रीयता प्रदान करने के विषय में राज्यों का उत्तरदायित्व नहीं है यदि उस व्यक्ति का कोई सम्बन्ध देशीकरण वाले राष्ट्र से नहीं है.
न्यायालय ने वास्तविक एवं प्रभावी राष्ट्रीयता के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया. यदि किसी व्यक्ति को दो राष्ट्रों की राष्ट्रीयता प्राप्त हो जाती है तो दोनों की राष्ट्रीयता के संघर्ष की दशा में उस देश की राष्ट्रीयता ही अधिक मान्य होगी जिसके साथ उसका सारवान् रूप से वास्तविक तथा प्रभावी सम्बन्ध रहा है |
राष्ट्रीयता का खोना
अन्तरर्राष्ट्रीय विधि में राष्ट्रीयता को खोने के निम्नलिखित नियम है-
1. मुक्ति द्वारा
कुछ राष्ट्रों में इस प्रकार की विधि है कि वे अपने नागरिकों को राष्ट्रीयता से मुक्त करने की आज्ञा प्रदान करते हैं. इस प्रकार की मुक्ति के लिये प्रार्थना आवश्यक है. यदि प्रार्थना स्वीकार हो जाती है तो प्रार्थी उस देश की राष्ट्रीयता से मुक्त हो जाता है.
2. अपहरण द्वारा
बहुधा राज्यों के अन्तर्गत विधि में इस प्रकार का प्रावधान होता है कि उस राष्ट्र का नागरिक उस राष्ट्र की आज्ञा के बिना दूसरे राष्ट्र में नौकरी कर लेता है तो उसकी राष्ट्रीयता का अपहरण हो जाता है.
3. दीर्घकाल तक बाहरी निवास द्वारा
राष्ट्रों की नागरिक विधि में बहुधा इस प्रकार का भी प्रावधान होता है कि यदि कोई व्यक्ति इस देश के बाहर बहुत समय तक रहता है तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है.
4. परित्याग द्वारा
परित्याग द्वारा भी व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता से मुक्त हो जाता है. ऐसी आवश्यकता तब पड़ती है जब एक व्यक्ति एक से अधिक राष्ट्रों का नागरिक होता है. ऐसी दशा में उसे चुनना पड़ता है कि वह किस देश का नागरिक रहेगा; अतः उसे एक देश की नागरिकता का परित्याग करना पड़ता है.
5. प्रतिस्थापन द्वारा
कुछ राष्ट्रों में प्रतिस्थापन द्वारा भी नागरिकता समाप्त हो जाती है. प्रतिस्थापन के अनुसार एक राष्ट्र की राष्ट्रीयता के स्थान पर उस व्यक्ति को दूसरे राष्ट्र की राष्ट्रीयता प्राप्त हो जाती है |