Table of Contents
- 1 मुस्लिम विवाह क्या है?
- 2 1. निकाहनामा
- 3 2. साक्षी (गवाह)
- 4 3. मेहर (विवाहिता का दान)
- 5 4. हलाल संबंध
- 6 5. शराइत
- 7 6. तलाक
- 8 मुस्लिम विवाह की परिभाषा
- 9 मुस्लिम विवाह के प्रकार
- 10 1. विधिमान्य निकाह या सही (Sahih)
- 11 विधिमान्य (सही) निकाह के प्रभाव या परिणाम
- 12 2. शून्य (वातिल) निकाह
- 13 वातिल (शून्य) विवाह के परिणाम
- 14 3. अनियमित (फासिद) विवाह
- 15 अनियमित (फासिद) विवाह के परिणाम
- 16 अनियमित (फासिद) तथा शून्य (वातिल) विवाह में अंतर
- 17 विधिमान्य एवं अनियमित (फासिद) विवाह के बीच अंतर
- 18 विधिमान्य एवं शून्य (वातिल) विवाह के बीच अंतर
मुस्लिम विवाह क्या है?
मुस्लिम धर्म के अनुसार, मुस्लिम विवाह को “निकाह” (Nikah) कहा जाता है, और यह कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक नियमों और विधियों के साथ होता है. मुस्लिम विवाह की मुख्य धार्मिक और कानूनी पहलू निम्नलिखित हैं-
1. निकाहनामा
निकाह की प्रक्रिया एक विशेष प्रपत्र, जिसे निकाहनामा (निकाह का समझौता) कहते हैं, में दर्ज की जाती है. यह प्रपत्र विवाह के शर्तों और शरीरक संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है.
2. साक्षी (गवाह)
निकाह के समय, कम से कम दो साक्षी (गवाह) होते हैं जो विवाह के समय मौजूद होते हैं और इसे साक्ष्य के रूप में पुष्टि करते हैं.
3. मेहर (विवाहिता का दान)
मेहर वह धनराशि होती है जो पति अपनी पत्नी को विवाह के समय देता है. इसका उद्देश्य पत्नी के लिए साक्षात्कार और सुरक्षा का प्रतीक होता है.
4. हलाल संबंध
हलाल क्या है? मुस्लिम विवाह में, सभी संबंध “हलाल” (धार्मिक और कानूनी रूप से स्वीकृत) होते हैं, जिसका मतलब है कि विवाह के बाद पति और पत्नी के बीच के सभी संबंध कानूनी होते हैं और उन्हें धार्मिक नियमों का पालन करना होता है.
5. शराइत
निकाह के समय विशेष शराइतें (शरीरक शर्तें) भी तय की जा सकती हैं, जैसे कि विवाह के बाद की जीवनशैली, बच्चों की पालना-पोषण, और अन्य सामाजिक विचारणा.
6. तलाक
इस्लामिक धर्म में तलाक (स्वतंत्रता से तलाक की अनुमति) की अनुमति होती है, लेकिन यह एक गंभीर प्रक्रिया होती है और धर्मिक और कानूनी नियमों का पालन करना होता है.
मुस्लिम विवाह का मुख्य उद्देश्य परिवार की बनावट और समाज में सुख-शांति को स्थापित करना होता है, जिसमें सद्गुण संबंध और विवाहिता और विवाहक के बीच का आपसी समर्पण महत्वपूर्ण होता है |
मुस्लिम विवाह की परिभाषा
मुस्लिम विवाह को इस्लामिक धर्म के अनुसार दो मुस्लिम व्यक्तियों के बीच का धार्मिक, सामाजिक, और कानूनी संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया कहा जा सकता है. इस प्रक्रिया में, दो व्यक्ति एक निकाहनामा (निकाह का समझौता) के माध्यम से विवाह शर्तों और धर्मिक नियमों के साथ एक साथ आते हैं और एक दूसरे के साथ आपसी समर्पण का आदर करते हैं.
मुस्लिम विवाह एक महत्वपूर्ण धार्मिक संस्कृति का हिस्सा है और इसमें इस्लामिक धर्म के मान्यताओं और नियमों का पालन किया जाता है, जिसका मतलब होता है कि विवाह के बाद के जीवन में इस्लामिक मानदंडों और नियमों का समर्पण किया जाता है |
मुस्लिम विवाह के प्रकार
मुस्लिम विधि के अनुसार, विवाह विधिमान्य (Valid) या
अनियमित (Irregular) या शून्य (Void) हो सकता है.
1. विधिमान्य निकाह या सही (Sahih)
ऐसा निकाह को प्रत्येक दृष्टि से मुस्लिम विधि द्वारा निर्धारित अनिवार्यताओं को पूरा करता है, वह विधिमान्य निकाह कहलाता है. सही (Sahih) निकाह के लिए यह आवश्यक है कि पक्षकार सभी प्रकार के प्रतिबन्धों से मुक्त होने चाहिए. प्रतिषेध स्थाई प्रकृति का है तो विवाह शून्य होगा और अगर अस्थाई प्रकृति का है तो विवाह अनियमित होगा.
विधिमान्य (सही) निकाह के प्रभाव या परिणाम
विधिमान्य निकाह से पत्नी के पक्ष में मेहर पाने का अधिकार उत्पन्न होता है साथ ही उसे अपने पति के घर में निवास एवं भरण-पोषण का अधिकार होता है. पत्नी का यह दायित्व होता है कि वह पति के प्रति वफादार एवं आज्ञापालक रहे तथा उसे अपने साथ संभोग करने दे तथा विवाह विच्छेद के बाद इद्दत का पालन करे. इस विवाह से आपस में एक दूसरे की विरासत पाने का अधिकार पैदा होता है. लेकिन विवाह से एक मुस्लिम पति का अपनी पत्नी की सम्पत्ति में कोई हित पैदा नहीं होता है |
2. शून्य (वातिल) निकाह
ऐसा निकाह जिसका कोई वैध परिणाम नहीं होता है, वातिल या शून्य विवाह कहा जाता है. वह कानून की दृष्टि से विवाह होता ही नहीं है. रक्त सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध या पाल्य सम्बन्धों से प्रतिषिद्ध विवाह शून्य विवाह होता है. ऐसे संगम से उत्पन्न संतानें अधर्मज होती हैं. इस प्रकार का विधिमान्यीकरण किसी सूरत से नहीं हो सकता है.
इसी प्रकार दूसरे की पत्नी के साथ विवाह या ऐसी स्त्री जिसे तलाक दिया जा चुका है लेकिन उसका इद्दत का समय समाप्त नहीं हुआ है, से किया गया विवाह भी शून्य होता है. शून्य विवाहों से पक्षकारों में आपस में कोई अधिकार या कर्तव्य पैदा नहीं होते और न ही एक दूसरे की मृत्यु होने पर विरासत के ही अधिकारी होते हैं.
वातिल (शून्य) विवाह के परिणाम
शून्य या वातिल निकाह कानून की दृष्टि में निकाह होता ही नहीं है. इससे पक्षकारों के मध्य कोई अधिकार या दायित्व पैदा ही नहीं होते तथा इस संगम से उत्पन्न संताने अधर्मज होती हैं |
3. अनियमित (फासिद) विवाह
अस्थाई प्रतिषेध के होते हुए जो निकाह किया जाता है, वह अनियमित कहा जाता है. इसके नियमतीकरण प्रतिषेध के समाप्त हो जाने पर हो जाता है. शिया विधि शाखा के अंतर्गत फासिद विवाह निकाह होता ही नहीं है. वहां तो निकाह शून्य वातिल या विधिमान्य (सही) ही होते हैं.
वह आधार जिसके कारण विवाह अनियमित होते हैं निम्न हैं-
- बिना गवाहों के विवाह का सम्पन्न होना;
- पांचवी पत्नी से विवाह (4 के जीवनकाल में);
- इद्दत का पालन कर रही स्त्री से विवाह;
- गैर मुस्लिम या किताबिया स्त्री के साथ विवाह;
- अवयस्कता या पागलपन से अनधिकृत संरक्षक की सहमति से सम्पन्न विवाह.
अनियमित (फासिद) विवाह के परिणाम
एक अनियमित निकाह संभोग से पहले या बाद में किसी भी पक्षकार द्वारा तोड़ा जा सकता है. जैसे मैंने तुम्हें छोड़ दिया है. संभोग के पूर्व फासिद निकाह का कोई विधिक औचित्य या परिणाम नहीं निकलता है |
अनियमित (फासिद) तथा शून्य (वातिल) विवाह में अंतर
- अगर प्रतिषेध अस्थाई तथा सापेक्ष है, तो विवाह अनियमित है, जबकि अगर प्रतिषेध स्थाई तथा अत्यंतिक है, तो विवाह शून्य होगा.
- जब प्रतिषेध अस्थाई है और समाप्त हो जाता है तब विवाह विधिमान्य हो जाता है, जबकि एक शून्य विवाह प्रारम्भ से ही शून्य होता है तथा इसका नियमतीकरण हो ही नहीं सकता.
- अगर अनियमित विवाह में संयोग हो चुका है तो इसके विवाह के विधिक परिणाम निकलते हैं, जबकि शून्य विवाह से किसी प्रकार के भी विधिक परिणाम नहीं निकलते नही पक्षकारों में कोई अधिकार या वायित्व ही पैदा होते हैं.
- अनियमित निकाहों की संतानें धर्मज होती हैं, जबकि शून्य निकाहों की संतानें अधर्मज होती हैं.
उपरोक्त भेद बिन्दु केवल सुत्री शाखा में पाये जाते हैं. शिया विधि शाखा में इस प्रकार के कोई भेद बिन्दु फासिद तथा वातिल निकाहों में नहीं होते |
विधिमान्य एवं अनियमित (फासिद) विवाह के बीच अंतर
- अनियमित विवाह बिना तलाक की घोषणा से विच्छेदित हो सकता है, जबकि विधिमान्य विवाह में ऐसा नहीं है.
- अनियमित विवाह के अन्तर्गत उसके दोनों पक्षकार उत्तराधिकार के अधिकारी सहवास के बाद भी नहीं होते हैं, जबकि विधिमान्य विवाह में उत्तराधिकार का अधिकार पैदा होता है |
विधिमान्य एवं शून्य (वातिल) विवाह के बीच अंतर
- विधिमान्य विवाह पूर्ण विधिक परिणाम देते हैं, परन्तु शून्य विवाह में एक भी विधिक परिणाम प्राप्त नहीं होता है.
- विधिमान्य विवाह पूर्णत: वैध होता है, जबकि शून्य विवाह पूर्णत: अवैध होता है |