Table of Contents
- 1 स्वीकृति की परिभाषा
- 2 स्वीकृति के आवश्यक तत्व
- 3 स्वीकृति कौन कर सकता है?
- 4 1. कार्यवाही के पक्षकार
- 5 2. अभिकर्त्ता द्वारा
- 6 3. प्रतिनिधिक रूप से दिया गया बयान
- 7 4. कोई साम्पत्तिक या धन सम्बन्धी हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा
- 8 5. उस व्यक्ति द्वारा जिनसे कि पक्षकार ने हित प्राप्त किया है
- 9 6. उस व्यक्ति द्वारा जिसकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी चाहिए
- 10 7. वाद के पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा
- 11 स्वीकृति कौन साबित कर सकता है?
- 12 1. मृत्युकालिक कथन या जो कथन धारा 32 के अन्तर्गत सुसंगत हो
- 13 2. मन या शरीर की दशा
- 14 3. स्वीकृति के रूप में नहीं किन्तु अन्यथा सुसंगत कथन
- 15 मौन स्वीकृति क्या है?
स्वीकृति की परिभाषा
स्टीफन के अनुसार, किसी पक्ष या उसकी ओर से किसी अन्य द्वारा किया गया लिखित या मौखिक कथन जो विवाद्यक या सुसंगत तथ्य के सम्बन्ध में किसी धारण को इंगित करता है, उसे स्वीकृति कहते हैं.
साक्ष्य अधिनियम की धारा 17 में स्वीकृति की परिभाषा दी गई है तथा धारा 18, 19, 20, 21, 22 तथा 23 में बताया गया है कि किस-किस का कथन स्वीकृति के अन्तर्गत आता है.
धारा 17 के अनुसार, स्वीकृति वह मौखिक या दस्तावेजी (या इलेक्ट्रानिक रूप में अन्तर्विष्ट) कथन है जो किसी विवाद्यक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करता है. स्वीकृति स्पष्ट तथा अन्तिम होनी चाहिये, उसमें कोई शक या अनिश्चितता वाली बात नहीं होनी चाहिये। उसके कथन का एक-एक अंश ध्यान में लेना चाहिये |
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स्वीकृति के आवश्यक तत्व
स्वीकृति के चार आवश्यक तत्व हैं-
- कथन ऐसा होना चाहिए जो विवाद्यक या सुसंगत तथ्य के बारे में अनुमान इंगित करे.
- कथन उन व्यक्तियों द्वारा किया गया होना चाहिए जिनका उल्लेख धारा 18, 19 तथा 20 में किया गया हो.
- कथन उन परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, जिनका उल्लेख उपर्युक्त धाराओं में किया गया हो.
- कथन मौखिक या दस्तावेजी हो सकता है |
स्वीकृति कौन कर सकता है?
1. कार्यवाही के पक्षकार
कार्यवाही के किसी भी पक्षकार द्वारा स्वीकृति की जा सकती है तथा उसके विरुद्ध साक्ष्य हो सकती है. यह दीवानी या आपराधिक दोनों मामलों में समान रूप से लागू होता है.
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मात्र सह अभियुक्त की संस्वीकृति के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है.
2. अभिकर्त्ता द्वारा
अभिकर्ता की स्वीकृतियाँ धारा 18 के तहत उसके मालिक के खिलाफ स्वीकृति के रूप में मान्य होती हैं, परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि दोनों के बीच एजेन्सी स्थापित रही हो तथा स्वीकृति इसी दौरान की गई हो। इसके अन्तर्गत अभिवक्ताओं (Advocate) तथा सलाहकारों की स्वीकृति को भी मान्य स्वीकृति माना गया है.
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3. प्रतिनिधिक रूप से दिया गया बयान
पक्षकारों द्वारा दिये गये बयान जो कि उन्होंने प्रतिनिधिक हैसियत से दिये हो, जैसे न्यासधारी (Trustee), निष्पादक (Executor) आदि। केवल उस समय तक का बयान, जब तक कि वे प्रतिनिधि की हैसियत से हैं, ग्राह्य होता है.
4. कोई साम्पत्तिक या धन सम्बन्धी हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा
ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो कार्यवाही की विषय-वस्तु में कोई साम्पत्तिक या धन सम्बन्धी हित रखता हो, यदि कथन उस समय किया गया हो, जबकि वे कार्यवाही के विषय-वस्तु से हित सम्बद्ध रहे हों, का कथन स्वीकृति के रूप में ग्राह्य है.
5. उस व्यक्ति द्वारा जिनसे कि पक्षकार ने हित प्राप्त किया है
यदि वाद के किसी पक्षकार ने विवादास्पद विषय-वस्तु पर किसी अन्य व्यक्ति से हित या हक प्राप्त किया है तो उस अन्य व्यक्ति द्वारा किया कथन, यदि कथन उस समय किया गया था, जब वाद की विषय-वस्तु में उसका हित निहित था, का कथन स्वीकृति में ग्राह्य होगा।
6. उस व्यक्ति द्वारा जिसकी स्थिति वाद के पक्षकारों के विरुद्ध साबित की जानी चाहिए
जब दो पक्षकार आपस में मुकदमेबाजी कर रहे हों तो उनमें से किसी के द्वारा उस बाद के पूर्व दिये गये बयान को परीक्षण में, स्वीकृति के तुल्य माना जा सकता है.
7. वाद के पक्षकार द्वारा अभिव्यक्त रूप से निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा
धारा 20 के अनुसार, यदि कोई पक्षकार किसी व्यक्ति को किसी विवादग्रस्त विषय के सम्बन्ध में राय लेने के लिये तीसरे व्यक्ति को निर्दिष्ट करता है तो तीसरे व्यक्ति का कथन पक्षकार के लिए स्वीकृति के तुल्य होगा.
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जैसे; यदि प्रश्न यह हो कि क्या क द्वारा ख को बेचा हुआ घोड़ा अच्छा है और ख से क कहता है जाकर ग से पूछ लो, ग इस बारे में सब कुछ जानता है तो ग का कथन स्वीकृति होगा |
स्वीकृति कौन साबित कर सकता है?
धारा 21 अनुसार, एक सामान्य नियम निर्धारित करती है कि स्वीकृतियाँ सुसंगत और उस व्यक्ति के विरुद्ध साबित की जा सकती हैं, जो उन्हें करता है या उनके प्रतिनिधियों के विरुद्ध यदि कोई स्वीकृति किसी दस्तावेज में की गई है तो इसके बावजूद स सूक्ष्मताओं के वह उसके करने वाले के विरुद्ध साबित होगी न कि किसी पर व्यक्ति के विरुद्ध.
कोई स्वीकृति उस व्यक्ति के पक्ष में साबित नहीं की जायेगी जिसने उसे किया था. उसका कारण यह है कि यदि किसी व्यक्ति को उसके अपने पिछले बयानों का जो उसके अपने मामले के अनुकूल है साबित करने की मंजूरी दे दी तो उस व्यक्ति को इससे आसान बात कोई नहीं होगी जो पहला ऐसा बयान देकर अपने मामले को मजबूत बना सकता है. परन्तु फिर भी निम्नलिखित अपवाद हैं, जिनमें ऐसा किया जाता है.
धारा 21 में सामान्य नियम के तीन अपवाद हैं जो निम्न हैं-
1. मृत्युकालिक कथन या जो कथन धारा 32 के अन्तर्गत सुसंगत हो
यदि स्वीकृति का कचन ऐसी परिस्थितियों में किया गया हो कि कथन करने वाले की मृत्यु के बाद वह कथन धारा 32 के अन्तर्गत अन्य व्यक्तियों के बीच सुसंगत होता.
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2. मन या शरीर की दशा
यदि स्वीकृति मन की या शरीर को सुसंगति या विवाद्य किसी दशा के अस्तित्व का ऐसा कथन है जो उस समय या उसके लगभग किया गया था जब मन की या शरीर की ऐसी दशा विद्यमान थी और ऐसे आचरण के साथ है जो उसकी असत्यता को असंभव कर देता है तो ऐसी स्वीकृति को करने वाले के पक्ष में साबित किया जा सकता है.
3. स्वीकृति के रूप में नहीं किन्तु अन्यथा सुसंगत कथन
कोई व्यक्ति अपना कथन साबित कर सकता है जब वह धारा 6 से 55 तक किसी भी धारा के अन्तर्गत सुसंगत तथ्य हो। जैसे; रेस-जेस्टे का भाग हो या ऐसा कथन जो किसी खास आचरण के साथ-साथ रहता है |
मौन स्वीकृति क्या है?
मौखिक कथन के अन्तर्गत इशारों द्वारा प्रकट किया गया कथन और मौन भी आता है. और मौन से भी किसी तथ्य की स्वीकृति हो सकती है. यदि किसी आपराधिक मामले में अधियुक्त से अपराध के बारे में पूछा जाता है और वह मौन रहता है तो कुछ परिस्थितियों में उसका मौन स्वीकृति हो सकता है. उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की उपस्थिति में उसके हित को प्रभावित करने वाला कोई ऐसा कथन किया जाता है जिसके सही न होने पर वह व्यक्ति अवश्य आपत्ति करता, पर वह मौन रह जाता है तो यहाँ मौन से स्वीकृति हो सकती है |