भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत संस्वीकृति क्या है?

संस्वीकृति की परिभाषा

संस्वीकृति (Confession) अपराध की स्वीकृति या जुर्म का इकबाल है इस शब्द को अधिनियम में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है संस्वीकृति से सम्बन्धित सभी उपबन्धों को स्वीकृति में ही दिया गया है. स्वीकृति की परिभाषा संस्वीकृति पर भी लागू होती है, यदि वह सिविल कार्यवाही में की जाती है तो वह स्वीकृति कहलाती है यदि वह अपराधी द्वारा अपराध के सम्बन्ध में की जाती है तो वह संस्वीकृति कहलाती है. अर्थात संस्वीकृति ऐसी स्वीकृति को कहते हैं जो किसी ऐसे व्यक्ति ने की हो जिस पर किसी अपराध का आरोप है और जो किसी विवाद्यक या सुसंगत तथ्य के बारे में अनुमान इंगित करती हो |

संस्वीकृति के आवश्यक तत्व

संस्वीकृति के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा किया जाना आवश्यक है-

  1. वह अभियुक्त के द्वारा की गई हो.
  2. उसने अपने अपराध को स्वीकार किया हो.
  3. वह मजिस्ट्रेट के समक्ष की गई हो.
  4. वह स्वैच्छिक रूप से की गई हो.

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पलविन्दर कौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि संस्वीकृति या तो अपराध के बारे में की जानी चाहिए या सार रूप में अपराध का गठन करने वाले तथ्यों के सम्बन्ध में अपने आप को निर्दोष बताने वाला कथन संस्वीकृति नहीं माना जा सकता है |

संस्वीकृति के प्रकार

संस्वीकृति दो प्रकार की होती है-

  1. न्यायिक संस्वीकृति (Judicial Confession)
  2. न्यायिकेतर संस्वीकृति (Extra-judicial Confession)

न्यायिक स्वीकृति मजिस्ट्रेट के समक्ष की जाती है, जबकि मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त अन्य किसी के समक्ष की जाने वाली संस्वीकृति न्यायिकेतर संस्वीकृति कहलाती है.

न्यायिक संस्वीकृति

न्यायिक संस्वीकृति उसको कहते हैं जो अभियुक्त द्वारा न्यायालय में या मजिस्ट्रेट के समक्ष की जाती है. जैसे यदि किसी अपराध का अभियुक्त धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध का करना स्वीकार करता है तो यह न्यायिक संस्वीकृति हुई। न्यायिक संस्वीकृति अभियुक्त के विरुद्ध एक मजबूत साक्ष्य होता है.

न्यायिकेतर संस्वीकृति

न्यायिकेतर संस्वीकृति उसे कहते हैं जो न्यायालय के बाहर किसी व्यक्ति से की जाती है. यह सीधे अपराध की स्वीकारोक्ति हो सकती है, पश्चाताप के रूप में हो सकती है या किसी भी प्रकार से हो सकती है. जैसे यदि हत्या करने के बाद पश्चाताप करते हुए अपराधी अपने मित्र को लिखता है कि उससे बड़ी भूल हो गयी और तब से दुखी है तो यह न्यायालय बाह्य संस्वीकृति हुई।

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न्यायालय द्वारा बाह्य संस्वीकृति तभी स्वीकार की जाती है जब न्यायालय को यह सन्तोष हो जाय कि वह सत्य है और स्वेच्छा से की गयी है। यह कमजोर साक्ष्य होता है |

संस्वीकृति कब विसंगत होती है?

धारा 24 के प्रावधानों के अनुसार यदि न्यायालय को पता चलता है कि-

  1. संस्वीकृति किसी प्रलोभन, धमकी या वादे के तहत कराई गई है.
  2. ऐसा प्रलोभन, धमकी या वादा किसी प्राधिकारवान व्यक्ति ने दिया है तो ऐसी संस्वीकृति दाण्डिक कार्यवाहियों में विसंगत होगी। इसके लिए आवश्यक है. कि धमको आरोप के बारे में होनी चाहिए.

संस्वीकृति यदि पुलिस अधिकारी को या किसी प्राइवेट व्यक्ति को उस समय दी गई है जबकि वह पुलिस अभिरक्षा में है तो भी संस्वीकृति ग्राह्य नहीं होगी |

संस्वीकृति कब सुसंगत होती है?

संस्वीकृति निम्नलिखित दशाओं में ग्राह्य होती है-

  1. जब वह किसी पुलिस अधिकारी को न दी गई हो तथा अभियुक्त पुलिस अभिरक्षा में भी न रहा हो या हो.
    जब संस्वीकृति मजिस्ट्रेट के समक्ष दी गई हो.
  2. यदि संस्वीकृति अभियुक्त पर धमकी, प्रलोभन या आश्वासन के प्रभाव के अन्त हो जाने पर दी गई हो |

संस्वीकृति का स्वैच्छिक मूल्य

अभियुक्त को संस्वीकृति स्वैच्छिक एवं सत्यता से की गयी होनी चाहिये तब वह सर्वोत्तम एवं प्रभावकारी साक्ष्य मानी जायेगी। इसका कारण यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने हित के विरुद्ध कथन नहीं कर सकता है. जब तक कि वह सत्य न हो संस्वीकृति के साक्ष्यिक महत्व देने से पहले न्यायालय को यह परख लेना चाहिये कि संस्वीकृति स्वैच्छिक एवं सत्य होना चाहिये तथा साक्ष्य अधिनियम की किसी धारा के अन्तर्गत असंगत तो नहीं है. यदि ऐसा है तो मात्र संस्वीकृति के आधार पर अभियुक्त को दण्ड देने में कोई बाधा नहीं है तथा अन्य सम्पोषक साक्ष्य की भी आवश्यकता नहीं है |

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