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साक्ष्य का अर्थ
अंग्रेजी भाषा का ‘Evidence’ शब्द लैटिन के ‘Evidere’ से निकला है, जिसका तात्पर्य “स्पष्टतया पता लगाना, निश्चित करना या साबित करना” होता है. प्रमुख विधिशास्त्रियों ने साक्ष्य को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है |
साक्ष्य की परिभाषा
सामण्ड के अनुसार, कोई भी तथ्य जिसमें प्रमाणकारी बल हो, साक्ष्य कहलाता है.
बेन्थम (Bentham) के अनुसार, ऐसा तथ्य जिससे मस्तिष्क के सामने उपस्थित होने पर किसी दूसरे तथ्य के अस्तित्व या अनस्तित्व का पता लगे, साक्ष्य कहलाता है.
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स्टीफन (Stephen) के अनुसार, साक्ष्य विधि (Law Of Evidence) का उचित रूप से अर्थ लगाना, न्यायालयों में प्राप्त व्यावहारिक अनुभव को विवादग्रस्त तथ्य के प्रश्नों के विषय में, सत्य में जाँच करने की समस्या को लागू करने के सिवाय कुछ नहीं है.
टेलर (Tailor) के अनुसार, विधि के अनुसार साक्ष्य के अन्तर्गत बहस को छोड़कर सभी प्रकार के विधिक साधन सम्मिलित हैं जो निर्णीत तथ्य की सत्यता को साबित या नासाबित करते हैं.
ब्लैकस्टोन (Blackstone) के अनुसार, साक्ष्य का तात्पर्य विवाद्यक तथ्यों की सत्यता को वादी या प्रतिवादी के पक्ष में स्पष्ट करना है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 के अनुसार साक्ष्य शब्द से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं-
- वे सभी कथन, जिनके जाँचाधीन तथ्य के विषय के सम्बन्ध में न्यायालय अपने सामने साक्षियों द्वारा किये जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है, ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं.
- न्यायालय के निरीक्षण के लिये पेश की गयी सभी दस्तावेजें, ऐसी दस्तावेजें जिनमें इलेक्ट्रानिक अभिलेख शामिल हैं दस्तावेजी साक्ष्य कहलाती हैं.
उपरोक्त परिभाषा के अनुसार साक्षी न्यायालय में हाजिर होकर स्वयं जो कुछ कहता है. तथा ऐसे दस्तावेज जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अनुसार, इलेक्ट्रानिक अभिलेख भी शामिल हैं, जो न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किये जाते हैं साक्ष्य कहलाते हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में साक्ष्य शब्द को सीमित अर्थों में प्रयोग किया गया है क्योंकि यह निम्नलिखित बातों को समाविष्ट नहीं करती है-
- वास्तविक साक्ष्य, जैसे-खून के कपड़े आदि.
- पक्षकारों द्वारा की गई स्वीकृतियाँ.
- न्यायालय द्वारा किया गया स्थानीय परीक्षण.
- शिनाख्त (Identification) की कार्यवाही आदि.
साक्ष्य का अर्थ ऐसी किसी बात से है जिसके द्वारा किसी अभिकथित तथ्य की बात (Matter of fact) को साबित या नासाबित किया जाता है. साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 साक्ष्य को परिभाषा न देकर यह बताती है कि साक्ष्य के अन्तर्गत क्या शामिल है. अधिनियम यह मानकर चलता है कि साक्ष्य वह साधन है, जिसमें न्यायालय के सामने किसी तथ्य को साबित करने की कोशिश की जाती है |
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साक्ष्य के प्रकार
साक्ष्य मुख्यतया निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
- प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence)
- परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)
- वास्तविक साक्ष्य (Real Evidence)
- अनुश्रुत साक्ष्य (Hearsay Evidence)
- प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence)
- द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence)
- मौखिक साक्ष्य (Oral Evidence)
- दस्तावेजी साक्ष्य (Documentary Evidence)
- हितबद्ध साक्ष्य (Interested Evidence)
1. प्रत्यक्ष साक्ष्य
प्रत्यक्ष साक्ष्य वह है जिसकी अनुभूति साक्षी ने स्वयं अपनी इन्द्रियों द्वारा की हो. किसी मामले से सम्बन्धित घटना को आँखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य ‘प्रत्यक्ष साक्ष्य’ कहलाता है. अर्थात् ऐसे साक्ष्य जो सीधे विवादात्मक तथ्य को साबित करते हैं, प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाते हैं.
प्रत्यक्षदर्शी साक्षी का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य होता है. ऐसे साक्ष्य को मात्र विनिर्दिष्ट रीति में प्रतिक्रिया नहीं किये जाने के आधार पर अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता.
किसी साक्षी द्वारा मामले से सम्बन्धित प्रमुख तथ्यों के विषय में दिया गया बयान प्रत्यक्ष साक्ष्य होता है. मामले से सम्बन्धित घटना को आंखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाता है. इसे निश्चायक साक्ष्य (Positive Evidence) भी कहते है.
उदाहरण के लिए, किसी विस्फोट के तथ्य को इस तथ्य से सिद्ध किया जाता है कि किसी व्यक्ति ने उसके धमाके को सुना हो. विस्फोट का यह प्रत्यक्ष साक्ष्य है. इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति ने धमाके को देखा होता तो यह भी विस्फोट का प्रत्यक्ष साक्ष्य होता.
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2. परिस्थितिजन्य साक्ष्य
ऐसे साक्ष्य जो सीधे विवादात्मक तथ्य को साबित नहीं करते हैं, बल्कि परिस्थितियों द्वारा यह प्रकट करते हैं कि विवाद्यक तथ्य सहीं है तो उन्हें परिस्थितिजन्य साक्ष्य कहां जाता है. ऐसे साक्ष्य का आधार अनुभव होता है और इनके द्वारा ज्ञात तथा प्रमाणित तथ्यों और प्रमाणित किये जाने वाले तथ्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य वह साक्ष्य है जो किसी विवाद्यक तथ्य को दूसरे तथ्यों से साबित करके सिद्ध किया जाता है. किसी तथ्य के अस्तित्व या अनस्तित्व का परिस्थितियों के आधार पर निश्चय करना परिस्थितिजन्य साक्ष्य कहा जाता है.
जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तो ऐसी अवस्था में कुछ परिस्थितियों का सहारा जिया जाता है. ये परिस्थितियाँ घटना के इर्द-गिर्द घूमने वाले तथ्य या सबूत होती हैं जिनका अवलोकन करने से यह पता चलता है कि कोई घटना वास्तव में घटी है. इसी को ‘परिस्थितिजन्य साक्ष्य’ कहते हैं.
उदाहरण के लिए, अभियुक्त का आशय, उसकी धमकियाँ, उसके प्रयत्न एवं तैयारियाँ, उसके द्वारा साक्ष्यों का गढ़ा जाना या नष्ट किया जाना, उसके मिथ्या कथन, उसका भाग जाना, उसके पास चोरी की सम्पत्ति का पाया जाता, उसका पद एवं हैसियत, उसका चरित्र.
3. वास्तविक साक्ष्य
वास्तविक साक्ष्य वह साक्ष्य है, जो न्यायालय को प्रत्यक्ष रूप से सम्बोधित किया जाये. इसके द्वारा भौतिक पदार्थों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. यह न्यायालय के निर्णय और विश्वास के लिये प्रत्यक्ष रूप से पेश किये जाते हैं. उदाहरण के लिए, हत्या के प्रयोग में लाया गया चाकू, पिस्तौल या खून से सने हुए कपड़े आदि, ऐसे साक्ष्य को वस्तु साक्ष्य भी कहते हैं.
4. अनुश्रुत साक्ष्य
साक्षी द्वारा किसी दूसरे की सूचना के आधार पर दिया जाने वाला साक्ष्य ‘अनुश्रुत साक्ष्य’ कहलाता है. ऐसे साक्ष्य को कुछ मामलों के अलावा असंगत (Irrelevant) माना गया है.
5. प्राथमिक साक्ष्य
प्राथमिक साक्ष्य वह मूल दस्तावेज होता है, जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. यह सर्वोत्तम साक्ष्य कहलाता है.
भारतीय साक्ष्य विधि के अनुसार, जिस साक्षी ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये गये तथ्यों, मूल दस्तावेजों या मूल बातों का स्वयं की ज्ञानेन्द्रियों द्वारा बोध किया हो, उसके द्वारा दी गई साक्ष्य को ‘प्राथमिक साक्ष्य’ कहते हैं.
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6. द्वितीयक साक्ष्य
अच्छे साक्ष्य या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में पेश किया जाने वाला साक्ष्य ‘द्वितीयक साक्ष्य’ कहलाता है. यह निम्नतर कोटि का साक्ष्य होता है तथा विशेष परिस्थितियों में ही न्यायालय ऐसे साक्ष्य को प्रस्तुत करने की अनुमति देता है.
7. मौखिक साक्ष्य
मौखिक साक्ष्य से अभिप्राय उस साक्ष्य से है जिसे गवाह ने स्वयं न्यायालय के समक्ष स्वयं उपस्थित होकर मुख से कह कर व्यक्त किया हो. उसमें वे बयान भी शामिल होते हैं जिन्हें न्यायालय अपने समक्ष जाँचाधीन तथ्य के मामले के बारे में साक्षियों द्वारा कहे जाने की आज्ञा देता है या अपेक्षा करता है, ऐसे साक्ष्य का प्रत्यक्ष होना आवश्यक होता है.
8. दस्तावेजी साक्ष्य
जब कोई साक्ष्य दस्तावेज के माध्यम से या रूप से प्रस्तुत किया जाता है तो वह ‘दस्तावेजी साक्ष्य’ कहलाता है. ऐसे साक्ष्य को दो प्रकार से प्रमाणित किया जा सकता है-
- प्राथमिक साक्ष्य द्वारा, या
- द्वितीयक साक्ष्य द्वारा.
9. हितबद्ध साक्ष्य
हितबद्ध साक्ष्य से अभिप्राय ऐसे साक्ष्य से है जो मामले में हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा दी जाती है. लेकिन पीड़ित व्यक्ति के नातेदार होने मात्र के आधार पर किसी साक्षी के साक्ष्य को निरस्त (Discard) नहीं किया जा सकता है |