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खैराती न्यास
खैराती न्यास को सार्वजनिक न्यास (Public Trust) या धर्मार्थ न्यास भी कहा जाता है. यह लोक लाभ अथवा जनता के अधिकांश वर्ग के लाभ के लिए होता है. अन्य शब्दों में यह समाज या समाज के एक वर्ग के लाभ के उद्देश्य के लिए होता है. खैराती न्यास (Charitable Trust) में उसके प्रयोजनार्थ घटती-बढ़ती संख्या में या अनिश्चित संख्या में हितग्राही होते हैं तथा न्यास का चरित्र स्थायी होता है तथा हितग्राहियों के संशोधन तथा निर्धारण शक्ति से परे होता है |
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खैराती न्यास का उद्देश्य
विधि के अन्तर्गत खैराती न्यास (Charitable Trust) के उद्देश्य के निम्नलिखित गुण होते हैं-
- विधिक दृष्टि में ऐसे न्यास द्वारा अनिश्चित तथा अनिर्धारित व्यक्तियों को लाभ पहुंचना आवश्यक है.
- इसका उद्देश्य जनसाधारण या उसके वर्ग के लाभ के लिए होना चाहिए न कि दाता या उसके परिवार के लिए.
- यह न्यास चिरस्थायी अथवा निश्चित अवधि का होता है.
न्यायालयों ने यह धारण किया है कि परोपकारिक प्रयोजनों की यह सूची पूर्ण (Exhaustive) नहीं है. खैराती उद्देश्यों का सबसे अच्छा वर्णन कमिश्नर आफ इनकम टैक्स बनाम पैम्सेल (1881 SC 531) के वाद में लाई मैकनाटन द्वारा दिये गये निर्णय में पाया जाता है, जिसमें उन्होंने खैरात को चार मुख्य भागों में विभाजित किया है-
1. दरिद्रता से छुटकारा
खैरात की इस परिभाषा के अन्तर्गत ‘दरिद्रता’ को सापेक्ष अर्थ में नहीं बल्कि निरपेक्ष अर्थ में लिया गया है. यह तथ्य कि लाभ उठाने वाले अन्धे अथवा अनाथ अथवा विधवायें हैं, अनुतोष के लिये न्यासों को खैराती बना देने के लिये काफी नहीं. परन्तु साधारणतया किसी विपरीत तर्क के अभाव में न्यायालय ऐसे न्यासों का अर्थ करने में यह पूर्वधारणा कर लेगा कि ऐसे शब्दों (जैसे ‘अन्धे’) के पहले, ‘निर्धन’ शब्द को भी रख दिया गया है.
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यदि धनी और निर्धन दोनों को कोई प्रासंगिक लाभ पहुँचे तो भी न्यास का उद्देश्य खैराती ही समझा जायेगा. बर्ज बनाम सोमरवाइल (1924 SC 496) के बाद में न्यू सारथ बेल्स के लाभ के लिये रिक्थदान, जो निर्धन सैनिकों तक ही सीमित था, एक मान्य खैराती न्यास की रचना करता था.
2. शिक्षा की उन्नति
स्कूलों, कालेजों तथा अन्य शिक्षा देने वाली संस्थाओं को दान इस शीर्षक के अन्तर्गत आते हैं. शिक्षा एक अत्यन्त व्यापक शब्द है और उसमें शिक्षा के महत्व रखने वाले अनेक प्रकार के कार्य सम्मिलित हैं. इस प्रकार नाटक तथा शतरंज के प्रोत्साहन के लिये दिये गये दान भी इसके अन्तर्गत आते हैं. परन्तु विज्ञान के अनुसन्धान मात्र के लिये दान, जब तक कि उसमें शिक्षा का कुछ तत्व न पाया जाय, खैरात नहीं माना जायगा |