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संविदाओं का विखण्डन
विनिर्दिष्ट या विशिष्ट अनुतोष अधिनियम संविदाओं के विशिष्ट प्रदर्शन के उपचार के लिए प्रदान करता है. इसी तरह, संविदाओं का विखण्डन संविदाओं के विनिर्दिष्ट प्रदर्शन के लिए ठीक विपरीत उपाय है. अक्सर पक्षकार संविदा के विनिर्दिष्ट प्रदर्शन को प्राप्त करने के लिए तैयार होती हैं;
लेकिन कभी-कभी वे विशिष्ट प्रदर्शन के बजाय संविदा को रद्द करवाना चाहती हैं, जो एक राहत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई संविदा धोखाधड़ी, गलत बयानी, जबरदस्ती, अनुचित प्रभाव या गलती के तहत किया जाता है और जिसके परिणामस्वरूप किसी भी पक्ष को भारी क्षति होने की संभावना होती है, तो ऐसी क्षति से बचाने के लिए संविदा के पक्षकार को न्याय प्रदान करने के लिए संविदा के विघटन का राहत प्रदान किया जाता है.
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संविदा को रद्द करके, इसका मतलब संविदा को शुरू से ही निरस्त या शून्य बनाना है. यह संविदा के विशिष्ट प्रदर्शन के विपरीत है | संविदाओं का विखण्डन कब स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है?
संविदाओं का विखण्डन कब स्वीकार किया जा सकता है?
संविदा के विखण्डन के लिए कोई भी हित रखने वाला व्यक्ति दावा कर सकता है तथा विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 27 के तहत न्यायालय निम्नलिखित परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में विखण्डन की स्वीकृति अनुदत्त कर सकता है-
- जहां संविदा वादी द्वारा शून्यकरणीय या निरस्त करने योग्य है.
- जहां संविदा ऐसे कारणों से अवैध है जो बाह्य रूप से अस्पष्ट है और जिसके लिए प्रतिवादी वादी से अधिक दोषी हो |
संविदाओं का विखण्डन कब अस्वीकार किया जा सकता है?
न्यायालय निम्न आधारों पर संविदा का विखण्डन करने से इन्कार कर सकेगा-
- जहां वादी ने प्रकट या अप्रकट रूप में संविदा को अनुसमर्पित (Rectification) कर दिया हो.
- जहां संविदा निर्माण के बाद परिस्थितियों में ऐसा परिवर्तन हो गया हो (जो स्वयं प्रतिवादी के किसी कार्य के कारण नहीं हो) कि पक्षकारों को ऐसी स्थिति में प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता जो संविदा के समय थी.
- वहां तीसरे या अन्य व्यक्ति ने संविदा के अस्तित्व में रहते हुए सद्भावनापूर्वक एवं प्रतिफल देकर अधिकारों का अर्जन किया हो.
- जहां संविदा के किसी एक भाग का विखण्डन (Rescission) किया जाना हो और ऐसा भाग शेष संविदा से अलग नहीं किया जा सकता हो.
संविदा के भाग के विनिर्दिष्ट पालन के मामले में ‘त्यजन’ का दावा अभिवचन में विनिर्दिष्ट उल्लेख किये बिना कभी भी किया जा सकता है |
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विखण्डन और प्रतिसंहरण में अन्तर
- विखण्डन का आशय है जो संविदा अब भी परिवर्तनशील है उसकी समाप्ति करना तथा आरम्भ में ही उसे अकृत तथा शून्य बना देता है. इसके विपरीत किसी अभिलेख के निरसन में अनिवार्यतया यह अन्तर्निहित नहीं है यह अब भी प्रवर्तनशील है और स्पष्टतः यह इस रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि यह अवैध है.
- विखण्डन तभी लागू होने योग्य है जबकि संविदा शून्य होने योग्य है अथवा जहां इसकी अवैधानिकता या शून्यता इसके बाह्य रूप से प्रकट नहीं है. किन्तु निरसन शून्य तथा शून्य होने योग्य दोनों प्रकार की लिखतों में प्रयोज्य है तथा यह सारहीन बात है कि शून्यता प्रत्यक्ष है या नहीं.
- विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 35 के अन्तर्गत निरसन में जो अनुतोष दिया गया है वह धारा 35 के अन्तर्गत विखण्डन में प्राप्य अनुतोष की अपेक्षा कहीं अधिक विस्तृत है. पहले में न्यायालय लिखत को शून्य किये जाने योग्य विनिर्णीत करता है तथा साथ ही वह इसे हवाले करने तथा निरसन करने का आदेश दे सकता है जबकि बाद वाले में न्यायालय केवल विखण्डन कर सकता है.
- विखण्डन केवल संविदा तक सीमित है, जबकि निरसन अन्य लिखतों पर भी लागू है जैसे दान तथा उत्तराधिकार पत्र में.
- विखण्डन की भांति निरसन की यह आवश्यकता नहीं है कि यदि अभिलेख अशोधित छोड़ा गया है तो गम्भीर क्षति का उचित बोध हो |