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विशेषाधिकार संसूचनायें
इसे विशेषाधिकार प्राप्त संचार या विशेषाधिकार युक्त संसूचना भी कहते हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 121 से 132 तक का सम्बन्ध विशेषाधिकृत संसूचनाओं से है. साक्षी जब न्यायालय में साक्ष्य देने के लिए उपस्थित होता है तो वह सभी सुसंगत प्रश्नों का तथा ऐसे प्रश्नों का जो उसकी विश्वसनीयता पर आक्षेप (Objection) करने के लिए पूछे गये हैं, उत्तर देने के लिए बाध्य है. पर लोकनीति का ध्यान रखते हुए ऐसा प्रावधान किया गया है कि साक्षी को कुछ विशेष प्रकार की संसूचनाओं को प्रकट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. इन्हीं को विशेषाधिकार संसूचनायें (Privileged Communications) कहते हैं |
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किन व्यक्तियों को विशेषाधिकार संसूचनायें प्राप्त हैं?
ये विशेषाधिकार निम्नलिखित व्यक्तियों को प्राप्त हैं-
1. न्यायाधीश तथा मजिस्ट्रेट
कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट (Judge and Magistrate) अपने ऊपर की अदालत के विशेष आदेश के बिना किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जो उसके आचरण से सम्बन्ध रखता हो, जो सरकारी कर्तव्य पालन के दौरान किया गया हो या कोई वस्तु जो उसके ज्ञान में उस समय आई हो, जबकि उसने सरकारी कर्मचारी की हैसियत से कार्य किया था.
परन्तु यह छूट उन बातों पर नहीं मिलती है जो उसकी उपस्थिति में उस समय घटित हुई हो, जब वह ऐसा कार्य कर रहा था.
2. विवाह के दौरान की संसूचनायें
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के अधीन किसी व्यक्ति को-
- (a) विवाह के दौरान किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दी गयी संसूचना जिससे वह विवाहित है प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जायेगा.
- (b) किसी संसूचना को प्रकट करने के निम्न अवस्थाओं के सिवाय प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जायेगा. जबकि
- वह व्यक्ति जिसने संसूचना दी थी या उसके प्रतिनिधि.
- वाद विवाहित व्यक्तियों के बीच हो.
- कार्यवाहियां ऐसी हों जिसमें एक व्यक्ति को विवाह के दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध किये गये किसी अपराध के लिये अभियोजित किया जाता है.
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3. राज्य के कार्यकलाप के बारे में साक्ष्य
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 अभिनिर्धारित करती है कि बिना विभागाध्यक्ष (Head of the department) की अनुमति के कोई भी व्यक्ति अप्रकाशित शासकीय अभिलेखों की जो राज्य के मामले के विषय में हैं, साक्ष्य नहीं दे सकता है.
4. शासकीय संसूचनायें
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 124 शासकीय संसूचनाओं (Official Communications) को विशेषाधिकृत बनाती है और उसमें कहा गया है कि कोई भी लोक ऑफीसर उसे शासकीय विश्वास में दी हुई संसूचनाओं को प्रकट करने के लिए विवश नहीं किया जायेगा, जबकि वह समझता है कि उस प्रकटन से लोकहित की हानि होगी.
5. अपराधों के बारे में जानकारी
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 125 के अनुसार किसी मजिस्ट्रेट या पुलिस ऑफीसर को यह प्रकट करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता कि किसी अपराध के किए जाने के बारे में उसे कोई जानकारी कहां से मिली और किसी भी राजस्व ऑफीसर को यह कहने के लिए विवश नहीं किया जा सकता कि उसे लोक राजस्व के विरुद्ध किसी अपराध के किये जाने के बारे में कोई जानकारी कहां से मिली.
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6. व्यावसायिक संसूचनायें
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126, 127, 128 तथा 129 व्यावसायिक संसूचना (Professional Communication) से संबन्धित हैं. इसके अनुसार कोई भी वैरिस्टर, अटार्नी, प्लीडर, वकील या उसका क्लर्क तथा विधि सलाहकार बिना अपने मुवक्किल को सहमति के-
- किसी संसूचना को जो उन्हें रखने के समय मुवक्किल द्वारा दी गई है, प्रकट नहीं कर सकता है;
- किसी दस्तावेज की अन्तर्वस्तुएं और उसकी शर्तों को जो नियोजनकाल में दी गई हैं, प्रकट नहीं कर सकता है;
- कोई राय जो उसने अपने मुवक्किल को दी हैं उसे प्रकट नहीं कर सकता है. पर यदि किसी अवैध कार्य के करने के बारे में कोई वकील के पास राय लेने गया है या यदि नियोजन के बाद मुवक्किल ने कोई अपराध या कपट किया हो तो यह विशेषाधिकार उन पर नहीं लागू होगा.
पर यदि ‘क’ एक वकील के पास जाता है और कहता है कि “मैंने कूटरचना (Forgery) की है आप मेरी प्रतिरक्षा करें” तो वकील को कभी भी इस बात की आज्ञा नहीं दी जायेगी कि वह उस कथन को प्रकट करे.
7. हकविलेखों के बारे में
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 130 के अनुसार कोई गवाह जो वाद का पक्षकार नहीं है उसको, अपने हकविलेख (Title deeds) या वह दस्तावेज, जिसके बल पर गिरवी या बन्धकी के रूप में सम्पत्ति धारण किये है या ऐसा कोई दस्तावेज जिसको पेश करने पर वह अपराध का दोषी होता है, पेश करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है |