आधिपत्य या कब्जा की परिभाषा एवं आधिपत्य के तत्व | आधिपत्य के सिद्धान्त

आधिपत्य या कब्जा की परिभाषा एवं आधिपत्य के तत्व | आधिपत्य के सिद्धान्त

आधिपत्य या कब्जा की परिभाषा

सामण्ड के अनुसार, “किसी भौतिक वस्तु के आधिपत्य अथवा कब्जा का तात्पर्य उस (वस्तु) के अनन्य उपयोग के अधिकार का निरन्तर प्रयोग है.”

उपर्युक्त परिभाषा में हम दो तत्व पाते हैं-

  1. अनन्य उपभोक्ता का अधिकार;
  2. अधिकार का वास्तविक प्रयोग, अर्थात् वस्तु का भौतिक नियन्त्रण.

दूसरे शब्दों में ‘आधिपत्य’ में दो तत्व मौजूद रहते हैं-

  1. भौतिक तत्व, अर्थात् वस्तु पर भौतिक नियंत्रण
  2. मानसिक तत्व, अर्थात् उस नियन्त्रण को कार्यान्वित करने का इरादा. प्रथम तत्व को Corpus Possessionis और द्वितीय को Animus possidendi कहा जाता है.

मेन के अनुसार, “किसी वस्तु पर भौतिक अधिकार उसको अपने पास रखने के अभिप्राय को कहते हैं.”

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मार्कवी के अनुसार, “किसी वस्तु पर वास्तविक भौतिक अधिकार अथवा भौतिक अधिकार की क्षमता को आधिपत्य कहते हैं.”

पैटन के अनुसार, “कब्जा एक तथ्य है जिससे विधि कतिपय परिणामों को जोड़ती है.”

कीटन के अनुसार, “कब्जा एक ऐसा तथ्य है जो निश्चित परिस्थितियों में उत्पन्न होता है.”

आधिपत्य के सिद्धान्त

1. कांट का सिद्धान्त

कांट (Kant’s) के अनुसार, आदमी स्वतन्त्र एवं अकेला पैदा हुआ है और इच्छा की स्वतन्त्रता ही मनुष्य की कस्तूरी है. आधिपत्य मनुष्य की इच्छा है. किसी वस्तु का आधिपत्य प्राप्त करने का मतलब है कि मनुष्य की इच्छा इसको प्राप्त करने की है. होंगेल (Hegel) के अनुसार आधिपत्य मनुष्य की स्वतन्त्र इच्छा का उद्देश्य है. अतः ऐसी स्वतन्त्र इच्छा का सम्मान प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है |

2. सैविग्नी का सिद्धान्त

सैविग्नी के अनुसार, आधिपत्य की रक्षा करना मनुष्य की रक्षा करना है. जिस प्रकार कोई भी कार्य जो हिंसात्मक होता है कानूनी नहीं होता, उसी तरह मनुष्य के आधिपत्य को धोखा देकर हस्तक्षेप करना उचित नहीं है.

3. हालैण्ड का सिद्धान्त

हालैण्ड महोदय कहते हैं कि कई एक अभिप्राय विधि को उभाड़ते हैं कि वह व्यक्ति के आधिपत्य की रक्षा करे. उसमें से मुख्य अभिप्राय प्रायः यही होता है कि शान्ति की स्थापना हो.

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4. इहरिंग का सिद्धान्त

इहरिंग के अनुसार, आधिपत्य स्वामित्व का द्योतक है. एक व्यक्ति जो स्वामित्व का उपयोग कर रहा हो उसके स्वामित्व की रक्षा करना आवश्यक है |

आधिपत्य के तत्व

सामण्ड के अनुसार आधिपत्य के दो तत्व होते हैं-

  1. मानसिक इच्छा, आधिपत्य के सन्दर्भ में इसका तात्पर्य यह होता है कि कब्जाधारी आधिपत्य की वस्तु पर अपना अधिकार बनाये रखने की इच्छा भी रखे केवल भौतिक सम्बन्ध ही आधिपत्य को पूर्ण नहीं बना सकता है. इसलिये धारणाशय की भी आवश्यकता होती है. पाउण्ड ने कहा कि यह एक पदार्थ पर भौतिक नियन्त्रण रखने वाले व्यक्ति की इच्छा है जो अपने प्रयोजन के लिये नियन्त्रण रखना चाहती है. धारणाशय का तात्पर्य है धारण करने वाले की इच्छा या संकल्प या अपने स्वयं के लिये धारण करने की इच्छा. आधिपत्य के मानसिक तत्व के विषय में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं-
  2. कब्जा पाने की मानसिक इच्छा के लिए यह जरूरी नहीं है कि यह वैधानिक या न्यायोचित हो. आधिपत्य के लिये केवल यही पर्याप्त है कि धारणकर्त्ता उस वस्तु को अपने आधिपत्य में रखना चाहता है. यदि चोर कोई सामान चुराकर लाता है तो उसे उस वस्तु पर आधिपत्य प्राप्त होगा.
  3. कब्जा करने वाले के लिये यह भी जरूरी है कि वह उस वस्तु पर केवल अपना ही अधिकार जताने की इच्छा रखें. हमारी भूमि पर दूसरे व्यक्ति को भी मार्गाधिकार (Right of way) प्राप्त हो सकता है, परन्तु उस वस्तु पर अधिकार हमारा ही रहेगा.

1. मानसिक इच्छा

  1. धारण करने वाले के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह वस्तु पर स्वामी के रूप में आधिपत्य धारण करने की इच्छा रखे. एक किरायेदार अपने मकान मालिक के घर पर आधिपत्य रखता है; यद्यपि वह उसका स्वामी नहीं होता.
  2. इच्छा के लिये यह आवश्यक नहीं है कि यह धारणकर्ता की ही ओर से प्रकट की जाय. किसी दूसरे व्यक्ति के माध्यम से भी वस्तु पर आधिपत्य की इच्छा रखी जा सकती है, से नौकर एजेन्ट तथा न्यासधारी, क्रमशः स्वामी, प्रधान तथा हिताधिकारी की ओर से आधिपत्य रखते हैं.
  3. इच्छा के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह विशिष्ट रूप में ही हो. यह सामान्य रूप में भी हो सकता है, जैसे कोई मछली पकड़ने वाला अपने जाल में आयी हुई सभी मछलियों पर सामान्य रूप से आधिपत्य रखता है. यह ज्ञात नहीं होता कि उसके जाल में कितनी मछलियों हैं.

उदाहरण के लिए

आर बनाम हडसन (1943) के मामले में अभियुक्तं को लिफाफा मिला जो अन्य किसी के नाम का था, उसने उसे कुछ दिन अपने पास रख. तथा बाद में खोला तो उसमें एक चैक मिला उसका उसने उपयोग कर लिया. न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जब तक लिफाफा खोला नहीं गया था तब तक अभियुक्त का उस पर कब्जा नहीं था क्योंकि उसमें आशय का अभाव था.

रेग बनाम रिली (1853 इस मामले में एक व्यक्ति अपनी भेड़ें हांक कर ले जा रहा था. उसी समय कुछ अन्य भेड़ें शामिल हो गई उसे यह तब पता चला जब उसने सभी भेड़ों के बेच दिया. न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि वह चोरी का अपराधी नहीं है क्योंकि मिली हुई भेड़ों पर उसका कब्जा नहीं था.

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2. भौतिक अधिकार

आधिपत्य के भौतिक तत्व पर प्राप्त अधिकार को भौतिक अधिकार कहते हैं. कॉमन लॉ के अन्तर्गत अभिरक्षा का प्रयोग कब्जा के लिये मानसिक तत्व बिना भौतिक नियन्त्रण के किया जाता है. रोमन विधि में भौतिक नियन्त्रण बिना मानसिक तत्व के माना जाता है जिसके लिये विधिक संकल्पना की आवश्यकता होती है और यह विधिक संकल्पना नागरिक विधि की है जो विधिक अधिकार और प्रतिकूल कब्जा द्वारा अर्जन का आधार प्रस्तुत करती है. यह दो रूपों में प्राप्त होता है- एक तो संसार के सभी व्यक्तियों के साथ धारणकर्ता का सम्बन्ध और दूसरा आधिपत्य धारणकर्ता का वस्तु से सम्बन्ध. यह सम्बन्ध निम्नलिखित अवस्थाओं में प्राप्त किया जा सकता है-

1. धारणकर्त्ता की भौतिक शक्ति

इसके माध्यम से भी धारणकर्त्ता अन्य व्यक्तियों को वस्तु से आवश्यकतानुसार पृथक् कर सकता है और वस्तु के उपभोग के लिए सुरक्षित रख सकता है. घर, दरवाजे में लगी चिटखनी तथा ताले इत्यादि भी इसी प्रकार की शक्ति प्रदान कर सकते हैं.

2. धारणकर्त्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति

कुछ परिस्थितियों में धारणकर्ता की उपस्थिति मात्र ही पर्याप्त होती है; जैसे-मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए व्यक्ति की उपस्थिति ही उसकी वस्तुओं को उसके आधिपत्य में बनाये रखती है.

3. मानसिक रूप से आधिपत्य के बनाये रखने की इच्छा की अभिव्यक्ति

जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु के प्रति अपने आधिपत्य की इच्छा प्रकट करता रहता है तो कुछ अवस्थाओं में बाद में उस वस्तु पर उस व्यक्ति का ही आधिपत्य माना जाता है.

4. अन्य वस्तुओं पर प्राप्त आधिपत्य के कारण संरक्षण

घर पर प्राप्त आधिपत्य से घर के अन्दर रखी हुई सभी वस्तुओं पर आधिपत्य प्राप्त हो जाता है.

उदाहरण के लिए

साउथ स्टेफार्ड शायर वाटर वर्क्स कम्पनी बनाम शर्मन (1826) इस वाद में कम्पनी ने प्रतिवादी को कम्पनी की भूमि पर बने जलाशय की सफाई के लिए नियोजित किया, सफाई करते समय प्रतिवादी को जलाशय में सोने की अंगूठियाँ मिलीं. न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि उन अंगूठियों पर प्रथम कब्जा कम्पनी का है न कि प्रतिवादी का. कम्पनी को उसकी जानकारी थी या न थी, इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

हिवर्ट बनाम मेक कियरनन (1948) इस वाद में एक व्यक्ति को गोल्फ के मैदान में कुछ गेंदे मिलीं मैदान में उसने अनधिकृत रूप से प्रवेश किया था. न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जिस समय गेंदे उस व्यक्ति को मिलीं उन पर कब्जा गोल्फ मैदान के मालिक का ही था. यह बात अलग है कि गेंदें कहाँ थीं तथा कितनी संख्या में थीं, उस मालिक को पता नहीं था |

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