सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध किसे कहते हैं? दोनों में क्या अंतर है?

सदोष अवरोध एवं सदोष परिरोध किसे कहते हैं? दोनों में क्या अंतर है?

सदोष अवरोध की परिभाषा

सदोष अवरोध क्या है? भारतीय दंड संहिता की धारा 339 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को स्वेच्छा से ऐसी बाधा डालता है जिससे वह उस दिशा में जाने से वंचित हो जाता है, जिसमें जाने का यह अधिकार रखता है तो ऐसा कार्य सदोष अवरोध कहलाता है.

उदाहरण के लिए, ‘क’ एक मार्ग में, जिससे होकर जाने का ‘य’ का अधिकार है, सद्भावपूर्वक यह विश्वास न रखते हुये कि उसको मार्ग रोकने का अधिकार है, बाधा डालता है. ‘य’ जाने से तद्द्वारा रोक दिया जाता है. ‘क’ ‘य’ का सदोष अवरोध करता है.

सदोष अवरोध के लिए दंड

भारतीय दंड संहिता की धारा 341 के अनुसार, जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का ‘सदोष अवरोध’ करेगा, उसे सादा कारावास से दण्डित किया जा सकता है, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकती है, या जुर्माने से, जो पांच सो रुपये तक का हो सकता है, या दोनों से दण्डित किया जायेगा. यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है और मॅजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है |

सदोष अवरोध के अपवाद

भूमि के या जल के ऐसे प्राइवेट मार्ग में बाधा डालना जिसके सम्बन्ध में किसी व्यक्ति को सद्भानावपूर्वक विश्वास है कि वहाँ बाधा डालने का उसे विधिपूर्ण अधिकार है, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अपराध नहीं है |

सदोष अवरोध के आवश्यक तत्व

  1. एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छा से अवरोध करना,
  2. अवरोध किसी भी दिशा में जाने से रोकने का होना, जिसमें उसे जाने का अधिकार है.

किसी बस वाले ने रास्ते में बस खड़ी कर दी ताकि अन्य बस आगे न जा सके उसको सदोष अवरोध का दोषी माना गया.

विजय कुमारी मागी बनाम श्रीमती S.M. राव, 1996 CLJ 1371 SC में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सदोष अवरोध के अपराध के लिए यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति को किसी दिशा में जाने से निवारित किया गया है उस व्यक्ति का उस दिशा में जाने का अधिकार होना चाहिए. परिवादी शिक्षिका को होस्टल में निवास की अनुज्ञप्ति को समाप्त किए जाने के पश्चात अनुज्ञप्तिधारी के रूप में होस्टल के कमरे में उसके रहने का कोई अधिकार नहीं रह जाता. अतः स्कूल के प्राधिकारियों के द्वारा उन्हें होस्टल के कमरे में प्रवेश करने से रोका जाना सदोष अवरोध नहीं है |

सदोष परिरोध की परिभाषा

सदोष परिरोध क्या है? भारतीय दंड संहिता की धारा 340 के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से बाहर जाने से वंचित कर दिया जाता है तब वह सदोष परिरोध कहलाता है.

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को मकान में बन्द करके ताला लगा दिया जाता है तो वह सदोष परिरोध होगा. यदि खुले मकान के दरवाजे पर बन्दूकधारी बिठा दिया जाता है और मकान के अन्दर वाले व्यक्तियों को यह धमकी दी जाती है कि यदि वे मकान के बाहर आयेंगे तो उन्हें गोली मार दी जायेगी. यह भी सदोष परिरोध कहलायेगा.

इस प्रकार जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है कि उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का सदोष परिरोध करता है. दूसरे शब्दों में इस अपराध में सदोष अवरोध का होना आवश्यक है पर अवरोध ऐसा होना चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति निश्चित सीमा से परे जाने से निवारित हो जाए. उस परिसीमा के भीतर घूमने-फिरने की सम्पूर्ण और बिना रोक-टोक स्वतंत्रता हो सकती है, पर उस परिसीमा के बाहर किसी भी दिशा में नहीं.

महत्वपूर्ण बात केवल यही है कि निश्चित सीमा के भीतर अवरोध सम्पूर्ण होना चाहिए, अर्थात सभी दिशाओं में होना चाहिए, केवल कुछ दिशाओं में नहीं, और तभी सदोष परिरोध का अपराध कारित होगा. दूसरे शब्दों में सदोष परिरोध का अपराध इस प्रकार का सदोष अवरोध है जहां अवरोध सम्पूर्ण है और पीड़ित व्यक्ति को एक निश्चित परिसीमा से परे किसी भी ओर जाने की अनुमति नहीं है |

सदोष परिरोध के लिए दंड

भारतीय दंड संहिता की धारा 342 के तहत, जो कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का ‘सदोष परिरोध’ करेगा, उसे दोनों में से किसी भी भाँति के कारावास से दण्डित किया जा सकता है, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकती है, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपये तक हो सकता है, या दोनों से दण्डित किया जायेगा. यह एक जमानती, संज्ञेय अपराध है और न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है |

सदोष परिरोध के आवश्यक तत्व

  1. किसी को सदोष अवरुद्ध करना,
  2. अवरोध ऐसा होना जिसके कारण व्यक्ति निश्चित परिसीमा के बाहर न जा सके. सदोष परिरोध में भौतिक या मनोवैज्ञानिक किसी भी तरह का अवरोध पैदा किया जा सकता है. एक व्यक्ति जो कमरे में बैठा है उसे यह धमकी दी जाती है कि यदि वह कमरे से बाहर निकलेगा तो उसे गोली मार दी जायेगी. इस परिस्थिति में कमरे का दरवाजा खुला है. यह भौतिक अवरोध नहीं है किन्तु मात्र धमकी है, फिर भी सदोष परिरोध होगा.

गोपाल नायडू (1922) 46 मद्रास 605 के बाद में दो पुलिस अधिकारियों ने एक व्यक्ति को बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर लिया जो शराब के नशे में लोक शान्ति भंग कर रहा था. गिरफ्तार करने के बाद उन पुलिस अधिकारियों ने उसे पुलिस स्टेशन में बन्द कर दिया, यद्यपि उनमें से एक उसका नाम व पता जानता था.

यह तथ्य स्पष्ट नहीं था कि वह व्यक्ति किस सीमा तक दूसरों की सम्पत्ति तथा उनके शरीर के लिये खतरनाक था. जिस अपराध के लिये उसे गिरफ्तार किया गया था वह एक असंज्ञेय अपराध था. यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि चूँकि वह पुलिस अधिकारियों द्वारा असंज्ञेय अपराध के लिये बिना वारण्ट के गिरफ्तार किया गया था अतः उनका कार्य सदोष परिरोध के तुल्य था.

एक प्रकरण में ‘अ’ अपनी कार में इलाहाबाद से कानपुर जा रहा था. रास्ते में व उससे मिला और निवेदन किया कि वह उसे फतेहपुर तक, जो एक मध्यवर्ती कस्बा है, पहुँचा दे. ‘अ’, ‘ब’ को फतेहपुर पहुंचाने के लिये सहमत हो गया किन्तु फतेहपुर पहुँचने पर ‘ब’ द्वारा बारबार निवेदन किये जाने पर भी ‘अ’ ने उसे कार से उतारा नहीं अपनी इच्छा के विरुद्ध वह कानपुर पहुँच गया. यहां ‘अ’ सदोष परिरोध का दोषी है |

सदोष अवरोध तथा सदोष परिरोध के बीच अंतर?

  1. सदोष अवरोध किसी व्यक्ति को उस दिशा में जाने से रोकना है. जिस दिशा में उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है, जबकि सदोष परिरोध किसी व्यक्ति को निश्चित सीमा से जाने से रोकना है जिस दिशा में वह जाना चाहता है तथा उस दिशा में उसे जाने का अधिकार है.
  2. सदोष अवरोध का क्षेत्र संकुचित है, जबकि सदोष परिरोध का क्षेत्र व्यापक है.
  3. सदोष अवरोध में एक निश्चित दिशा में जाने से रोकने के सिवाय अन्य दिशा में जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है, जबकि सदोष परिरोध में सीमा निश्चित होती है. जिसके बाहर जाने से अवरुद्ध किया जाता है.
  4. सदोष अवरोध में निश्चित परिसीमा आवश्यक नहीं है, जबकि सदोष परिरोध में निश्चित परिसीमा आवश्यक है.
  5. सदोष अवरोध एक साधारण अपराध है एवं हल्के दण्ड की व्यवस्था करता है, जबकि सदोष परिरोध एक गम्भीर, अपराध की व्यवस्था करता है तथा गम्भीर दण्ड निर्धारित करता है.
  6. यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आंशिक अवरोध है, जबकि सदोष परिरोध किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्ण अवरोध है |

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