बिना क्षति के हानि एवं बिना हानि के क्षति का सिद्धांत क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

बिना क्षति के हानि एवं बिना हानि के क्षति का सिद्धांत क्या है? दोनों में क्या अंतर है?

बिना क्षति के हानि

इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को कोई हानि किसी अपकृत्य के कारण हुई है तो वह क्षतिपूर्ति के लिए वाद लाने का अधिकारी है, भले ही उसे अपकृत्य से वास्तविक क्षति एक पैसे की भी न हुई हो. इस प्रकार के अपकृत्ये स्वत: अभियोज्य होते हैं और उनमें केवल हानि अर्थात विधिक अधिकार की अवहेलना होने पर ही वाद चलाने का अधिकार मिल जाता है. ऐसे मामलों में वास्तविक क्षति प्रमाणित करना आवश्यक नहीं होता है. इस प्रकार के स्वत: अभियोज्य अपकृत्यों में विधि अपने आप क्षति की परिकल्पना कर लेती है क्योंकि विधिक अधिकारों को अवहेलना में क्षति गौण रूप से विद्यमान मानी जाती हैं.

अतः इस तरह के मामलों में वास्तविक या विशिष्ट क्षति को प्रमाणित करना जरूरी नहीं है. वादी को केवल इतना प्रमाणित करना ही है कि उसके किसी विधिक अधिकार की अवहेलना हुई है. ऐसे अपकृत्यों में अनधिकार प्रवेश, मानहानि आदि के उदाहरण दिये जा सकते हैं.

ऐशबी बनाम ह्वाइट (1903) इस बाद के तथ्य इस प्रकार हैं-

प्रतिवादी ह्वाइट आयसबरी के शहर में संसदीय चुनाव 1701 में मतदान अधिकारी था. वादी उक्त नगर का निवासी था, जिसे मत देने का पूर्ण अधिकार था. वादी का कहना था कि वह मर्त देना चाहता था परन्तु प्रतिवादी ने विद्वेषपूर्वक मत डालने दिया. प्रत्याशियों को मत देना चाहता था वे बिना उसके मत के भी हो गये थे. बादी ने क्षतिपूर्ति के लिए बाद दायर किया (यद्यपि उसे वास्तविक क्षति इस मामले में नहीं हुई है) तथा प्रतिवादी ने अपने को निर्दोष बताया.

इस वाद में चीफ जस्टिस हाल्ट ने यह प्रतिपादित किया कि प्रत्येक विधिक अधिकार की अवहेलना में क्षति होती है, चाहे उस क्षति का परिणाम आर्थिक हानि हो या न हो. किसी भी अधिकार की केवल धन सम्बन्धी हानि नहीं होती वरन् अन्य प्रकार की हानि होती है जैसे मानहानि के मामले में मानहानि किये जाने वाले व्यक्ति को एक पैसे की हानि भी नहीं होती परन्तु फिर भी वह अभियोज्य है |

बिना हानि के क्षति

जिस प्रकार कुछ अपकृत्य क्षति न होने पर भी विधिक अधिकार की अवहेलना के कारण अभियोज्य होते हैं उसी प्रकार कुछ ऐसे अपकृत्य भी हैं जिनमें क्षति तो होती है परन्तु हानि (Injury) अथवा विधिक अधिकार की अवहेलना न होने के कारण वे अभियोज्य नहीं हैं.

इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि वादी के किसी विधिक अधिकार की अवहेलना नहीं हुई है तो उसे कितनी ही बड़ी क्षति क्यों न हुई हो तो वह वाद चलाने का अधिकारी नहीं है. संक्षेप में इस सिद्धान्त का अर्थ है कि कोई अनुचित कृत्य केवल आर्थिक क्षति के कारण ही अपकृत्य नहीं हो जाता है. ऐसे अनेक क्षतिकारी अनुचित कृत्य हैं जिन्हें कानून में कोई महत्व नहीं दिया जाता है. अपकृत्य के लिए विधिक क्षति होना आवश्यक है जो केवल विधिक अधिकारों के उल्लंघन पर ही उत्पन्न हो सकती है.

यह कथन इस सिद्धान्त पर आधारित है कि ‘ऐसे मामलों में हानि अनुचित कृत्यों के कारण नहीं होती है वरन् किसी व्यक्ति के अधिकार के प्रयोग के कारण होती है’. अपकृत्य विधि में सामान्य अधिकारों का प्रयोग भले ही यह क्षतिकारक हो, अनुचित नहीं माना जाता है.

इस प्रकार इस सिद्धान्त का अभिप्राय यही है कि एक व्यक्ति के स्वतन्त्र अधिकार जो उसे विधि द्वारा स्वीकृत हैं, के प्रयोग से उत्पन्न असुविधा को सहन करना चाहिए.

बिना विधिक अधिकार की अवहेलना से उत्पन्न क्षति को सामण्ड ने पांच प्रकारों में बाँटा हैं-

  1. जब क्षति किसी व्यक्ति के अपने अधिकार के प्रयोग से उत्पन्न होती है, जैसे- व्यापार में एक व्यक्ति को स्पर्द्धा के कारण हुई क्षति,
  2. प्रतिवादी के अपने सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार के प्रयोग के कारण हुई क्षति,
    अधिक हानि को रोकने हेतु किये गये कार्य द्वारा क्षति,
  3. बहुत ही कम या अनिश्चित अथवा प्रमाणित न हो सकने वाली क्षति जिसमें क्षतिपूर्ति की कार्यवाही नहीं होती है,
  4. सार्वजनिक क्षति के साथ ही प्राप्त हुई क्षति जिसके कारण भी सार्वजनिक अवरोध हो रहा हो.

ग्लॉसेस्टर बनाम ग्रामर स्कूल का विवाद (1410) इस वाद में वादी की पाठशाला के समीप प्रतिवादी ने एक पाठशाला खोली. प्रतिवादी को अपनी पाठशाला के बच्चों को दूसरी पाठशाला में प्रवेश लेने से रोकने हेतु अपनी पाठशाला का शिक्षण शुल्क कम करना पड़ा जिससे उसे आर्थिक क्षति हुई. वादी ने क्षतिपूर्ति के लिए प्रतिवादी के विरुद्ध वाद दायर किया.

जस्टिस हावर्ड ने यह निर्णय दिया कि वादी को वाद का अधिकार प्राप्त नहीं था. उन्होंने यह निर्धारित किया कि ‘क्षति बिना हानि (विधिक अधिकार की अवहेलना) के भी हो सकती है जैसे कि यदि मेरा एक कारखाना और मेरा एक पड़ोसी दूसरा कारखाना लगाता है जिससे मेरे कारखाने का लाभ कम हो जाता है तो मुझे उसके विरुद्ध वाद अधिकार नहीं है यद्यपि मुझे क्षति हुई है’ |

बिना क्षति के हानि एवं बिना हानि के क्षति के बीच अंतर

  1. बिना क्षति के हानि में व्यक्ति के विधिक अधिकार का उल्लंघन होता है, जबकि बिना हानि के क्षति के मामलों में बिना विधिक अधिकार उल्लंघन के क्षति होती है.
  2. बिना क्षति के हानि में अभियोज्य होते हैं, जबकि बिना हानि के क्षति में अभियोज्य नहीं होते हैं.
  3. बिना क्षति के हानि में केवल विधिक अधिकार की अवहेलना प्रमाणित करना ही पर्याप्त होता है, आर्थिक क्षति प्रमाणित करना आवश्यक नहीं है, जबकि बिना हानि के क्षति में बिना विधिक अधिकार की अवहेलना के केवल क्षति प्रमाणित करने का कोई महत्व नहीं होता है.
  4. बिना क्षति के हानि में विधिक दोष होता है, जिसके लिए विधिक उपाय भी उपलब्ध रहते हैं, जबकि बिना हानि के क्षति में नैतिक दोष होता है, जिसके लिए कोई विधिक उपाय उपलब्ध नहीं रहता है |

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