प्राथमिक तथा द्वितीयक साक्ष्य किसे कहते हैं?

प्राथमिक तथा द्वितीयक साक्ष्य के बीच अंतर है?

प्राथमिक साक्ष्य

अधिनियम की धारा 62 के अनुसार, प्राथमिक साक्ष्य से न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए गये दस्तावेज स्वयं अभिप्रेत है. प्राथमिक साक्ष्य का तात्पर्य मूल (Original) दस्तावेज से होता है, जो न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता हैं. यदि दस्तावेज कई मूल प्रतियों में बनाया जाता है तो प्रत्येक प्राथमिक साक्ष्य होगा।

प्राथमिक साक्ष्य का अर्थ सर्वोत्तम (Best) या सर्वोच्च (Highest) साक्ष्य से है. निम्नलिखित चार चीजें प्राथमिक साक्ष्य की परिभाषा में आती हैं-

  1. जिस दस्तावेज का साक्ष्य दिया जाता है, वह स्वयं पेश किया जाये.
  2. जहाँ दस्तावेज कई मूल प्रतियों में बनाया गया है, वहाँ प्रत्येक प्रति प्राथमिक साक्ष्य है.
  3. जहां कोई दस्तावेज प्रतिलेख के रूप में बनाया गया हो और हर प्रतिलेख एक पक्षकार या कुछ पक्षकारों द्वारा निष्पादित किया गया है वहाँ हर प्रतिलेख पक्षकारों के विरुद्ध प्राथमिक साक्ष्य है.
  4. जहाँ दस्तावेजें एकात्मक प्रक्रिया द्वारा बनायी गयी हैं जैसे मुद्रण, शिला मुद्रण या फोटोचित्रण वहां हर एक शेष सबकी अन्तर्वस्तु का प्राथमिक साक्ष्य है.

जैसे 11 जून, 96 को प्रकाशित किसी दैनिक अखबार की एक प्रति शेष सभी प्रतियों का प्राथमिक साक्ष्य होगी, क्योंकि वे सभी एक साथ मुद्रित थीं, अर्थात एक मुद्रात्मक प्रक्रिया द्वारा बनायी गयी थीं. परन्तु ये प्रतियाँ उस रूप का प्राथमिक साक्ष्य नहीं होंगी, जिसे लिखकर सम्पादक ने कम्पोजीटर को कम्पोज करने के लिए दिया था.

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मलय कुमार गांगुली बनाम सुकुमार मुखर्जी के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वे दस्तावेज जो अन्यथा अग्राह्य हैं वह साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नहीं किया जा सकता |

द्वितीयक साक्ष्य

किसी भी दस्तावेज का अस्तित्व, दशा या अन्तर्वस्तु या तो प्राथमिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता है या उसके द्वितीयक साक्ष्य द्वारा. मूल दस्तावेज जब साक्ष्य में पेश किया जाता है तो वह प्राथमिक साक्ष्य होता है. मूल के स्थान पर जो साक्ष्य दिया जाता है उसे द्वितीयक साक्ष्य कहते हैं.

धारा 63 भारतीय साक्ष्य अधिनियम में निम्नलिखित पाँच प्रकार के द्वितीयक साक्ष्य होते हैं-

प्रमाणित प्रतियां

नियमानुसार, प्राप्त की गयी प्रमाणित प्रतियाँ मूल दस्तावेजों की द्वितीयक साक्ष्य होती हैं. धारा 76 में प्रमाणित प्रतियों की परिभाषा एवं व्याख्या दी गयी है.

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मूल दस्तावेज

मूल दस्तावेज से ऐसी यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा जो प्रक्रियायें स्वयं हो प्रति की शुद्धता सुनिश्चित करती हैं, बनायी गयी प्रतियाँ तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की गर्यो प्रतिलिपियाँ- जैसे टाइप मशीन में कार्बन काराज लगाकर बनाई गयी प्रतियाँ.

मूल प्रति से तैयार या तुलना की गयी प्रतियाँ

यदि मूल प्रति से कोई प्रति तैयार की गयी तो यान्त्रिक विधि से न होते हुए भी वह मूल दस्तावेज का द्वितीयक साक्ष्य होगी |

प्राथमिक तथा द्वितीयक साक्ष्य के बीच अंतर?

  1. प्राथमिक साक्ष्य ऐसा साक्ष्य है जिसके द्वारा मूल दस्तावेज को न्यायालय के निरीक्षण के लिये प्रस्तुत किया जाता है, जबकि द्वितीयक दस्तावेज ऐसा साक्ष्य है जो मूल दस्तावेज की प्रतिलिपि होता है और जिसे धारा 63 के अन्तर्गत उल्लिखित किसी एक विधि द्वारा निर्मित किया जाता है.
  2. सामान्यतः प्रत्येक तथ्य प्राथमिक साक्ष्य द्वारा ही साबित किया जाना चाहिये, जबकि द्वितीयक साक्ष्य किसी तथ्य को साबित करने हेतु अपवादित परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिये.
  3. प्राथमिक साक्ष्य प्रत्येक दशा में सर्वोत्तम साक्ष्य होता है, जबकि द्वितीयक साक्ष्य सर्वोत्तम न होकर गौण प्रकृति का है.
  4. प्राथमिक साक्ष्य का साक्षिक मूल्य सबसे अधिक होता है, जबकि द्वितीयक साक्ष्य का साक्षिक मूल्य सामान्यतया प्राथमिक साक्ष्य की अपेक्षा कम होता है.
  5. प्राथमिक साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु पूर्व सूचना का नियम लागू नहीं होता है, जबकि द्वितीयक साक्ष्य देने से पूर्व उन परिस्थितियों को साबित करना अनिवार्य है जिनके आधार पर द्वितीयक साक्ष्य देने का अधिकार प्राप्त होता है |

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