जमानतीय अपराध
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(a) के अनुसार, जमानतीय अपराध (Bailable Offence) से अभिप्राय ऐसे अपराध से है-
- जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराध के रूप में दिखाया गया हो, या
- जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा जमानतीय अपराध बनाया गया हो, या
- जो अजमानतीय अपराध से भिन्न अन्य कोई अपराध हो.
CrPC की प्रथम अनुसूची में जमानतीय एवं अजमानतीय अपराधों का उल्लेख किया गया है. जो अपराध जमानतीय बताया गया है उसमें अभियुक्त को जमानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्तव्य है.
उदाहरण के लिए; किसी व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक साधारण चोट पहुँचाना, उसे सदोष रूप से अवरोधित अथवा परिरोधित करना, किसी स्त्री की लज्जा भंग करना, मानहानि करना आदि जमानतीय अपराध है.
सरल शब्दों में; जमानतीय अपराध (या जमानती अपराध) को आम भाषा में “जमानत योग्य अपराध” भी कहते हैं. जमानतीय अपराध वह अपराध है जिसमें अदालत द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपराध के विरुद्ध केस दाखिल करने पर उसे जमानत (बेल) दी जाती है.
जमानतीय अपराध क्या है? जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे न्यायिक प्रक्रिया में सुनवाई के लिए अदालत में पेश होना पड़ता है. इस समय अदालत समझौता या जमानत के आधार पर उस व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया से रिहा कर सकती है. जमानत के दौरान, व्यक्ति को निश्चित शर्तों के साथ रिहा कर दिया जाता है, जिन्हें पूरा करने के बाद उसे पुनः अदालत में पेश होना होता है.
जमानतीय अपराध शामिल कर सकते हैं, जैसे; चोरी, लूट, डकैती, हत्या, धार्मिक आतंकवाद, सामाजिक हिंसा, घोटाला, धोखाधड़ी, धनलाभ के लिए नकली दस्तावेज़ बनाना आदि जमानतीय अपराध हैं.
यह जरूरी है कि जमानतीय अपराधी अपनी जमानती शर्तों को पूरा करें, अन्यथा उन्हें फिर से गिरफ्तार किया जा सकता है और सख्त कानूनी कार्रवाई हो सकती है |
अजमानतीय अपराध
अजमानतीय अपराध क्या है? CrPC में ‘अजमानतीय अपराध’ की परिभाषा नहीं दी गई है, अतः हम यह कह सकते हैं कि ऐसा अपराध जो जमानतीय नहीं है, एवं जिसे प्रथम अनुसूची में अजमानतीय अपराध के रूप में अंकित किया गया है वै अजमानतीय अपराध (Nop-Bailable Offence) हैं.
सामान्यतया गम्भीर प्रकृति के अपराधों को अजमानतीय बनाया गया है. ऐसे अपराधों में जमानत स्वीकार करना या नहीं करना मजिस्ट्रेट के विवेक पर निर्भर करता है.
उदाहरण के लिए; चोरी, चोरी के लिए गृह-अतिचार, गृह-भेदन, आपराधिक न्यास भंग, आदि अजमानतीय अपराध हैं.
मोतीराम बनाम मध्य प्रदेश, (AIR 1978 SC 1594) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कृष्ण अय्यर ने कहा कि “जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है.” |
जमानतीय और अजमानतीय अपराध के बीच अंतर
- जमानतीय अपराध साधारण एवं सामान्य प्रकृति के होते हैं, जब कि अजमानतीय अपराध गम्भीर एवं संगीन प्रकृति के होते हैं.
- जमानतीय अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो संहिता की प्रथम अनुसूची में जमानतीय रूप से दर्शाया गया है या जो तत्समय विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है, जबकि जमानतीय अपराध के अलावा अन्य अपराध अजमानतीय अपराध कहलाते हैं.
- जमानतीय अपराध में अभियुक्त जमानत की माँग एक अधिकार के रूप में कर सकता है, जबकि अजमानतीय अपराध में जमानत को देना न्यायालय का विवेकाधिकार है तथा कुछ ही परिस्थितियों में जमानत दी जा सकती है |