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माध्यस्थम्/मध्यस्थता तथा सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के कारण एवं मुख्य उद्देश्य क्या हैं? माध्यस्थम्/मध्यस्थता क्या है? | सुलह क्या है? | माध्यस्थम्/मध्यस्थता एवं सुलह में अंतर
माध्यस्थम्/मध्यस्थता अधिनियम, 1996 पारित होने के कारण
- संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग (UNCITRAL) ने अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् पर संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग आदेश विधि को स्वीकार कर लिया था जिस कारण भारत में भी ऐसी ही विधि की आवश्यकता थी.
- संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय विधि आयोग सुलह नियमों को स्वीकार कर लिया था इसलिए भारत में भी सुलह विधि सम्बन्धी नियमों की आवश्यकता थी.
- अन्तर्राष्ट्रीय माध्यस्थम् तथा सुलह सम्बन्धी प्रक्रिया को ध्यान में रखकर उचित विधि की आवश्यकता थी जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानक स्तर पर निष्पक्ष हो.
- राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय विवादों में विदेशी तथा अन्य मध्यस्थ को नियुक्त करने सम्बन्धी प्रावधानों की आवश्यकता थी.
- माध्यस्थम् अधिनियम, 1940 के उन प्रावधानों को समाप्त करना था जो कि अपनी उपयोगिता खो चुके थे.
माध्यस्थम् अधिनियम, 1940 में न्यायालयों का अत्यधिक नियंत्रण था जिस कारण से वह उपयोगी साबित नहीं हो पा रहा था. - ‘वैश्वीकरण’ एवं उदारीकरण की औद्योगिक तथा व्यापारिक नीति के पालन के कारण विदेशी निवेशकों को शीर्ष उपचार प्रदान करने के लिए मध्यस्थम विधा अति आवश्यक मानी गई जिससे न्यायालयीय हस्तक्षेप न्यूनतम स्तर पर हो.
- न्यायालयीय हस्तक्षेप किसी झगड़े का समाधान करने में बहुत समय तथा खर्च, एक पक्ष दूसरे से वैमनस्य एवं हार जाने पर दुश्मनी को जन्म देता है जब कि उत्तम मध्यस्थम विधा झगड़े के समापन पर सौहार्द बराबरी तथा भाईचारे को प्रशस्त करता है उपरोक्त कारणों से स्पष्ट था कि माध्यस्थम् विधि पर एक नये अधिनियम की आवश्यकता थी जिसे माध्यस्थम् तथा सुलह अधिनियम, 1996 ने पूर्ण किया.
माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के मुख्य उद्देश्य
माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 पारित होने के मुख्य उद्देश्य भी निम्नलिखित हैं जो कि उपरोक्त कारणों को दर्शाते हैं-
- भारत में विदेशी पंचाटों को मान्यता देना.
- देशी भारतीय विधि को अन्तर्राष्ट्रीय विधि में शामिल करना.
- सुलह को विधिक मान्यता देना.
श्याम चरण अग्रवाल बनाम भारत संघ, (2002) 6 SCC 201 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि माध्यस्थम् का उद्देश्य पक्षकारों के मध्य सभी विवादों का निबटारा कराना है तथा न्यायालय में वाद लाने से बचाना है.
नेशनल हाइड्रोइलैक्ट्रिक पावर कारपोरेशन लिमिटेड फरीदाबाद, हरियाणा बनाम मेसर्स ऐशियन टेक रानी कस्ट्रक्शन ज्वाइंट बेन्चर, कोचीन, केरल, AIR 2003 U’chal 1 at page 4 के मामले में न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि जहां माध्यस्थम् कार्यवाही पुराने अधिनियम (माध्यस्थम् अधिनियम, 1940) के अधीन शुरू की गई तथा पंचाट को नये अधिनियम (माध्यस्थम् एवं सुलह अधिनियम, 1996 ) के तहत पारित एवं हस्ताक्षरित किया गया, तब उस माध्यस्थम् करार में यह उल्लेखित है कि यदि कानूनी प्रावधानों में कोई परिवर्तन या बदलाव होता है वहां कार्यवाही नये प्रावधानों के अनुसार ही होगी, तो ऐसा पंचाट नये प्रावधानों के अनुसार ही पारित किया जायेगा |
मध्यस्थता क्या है?
मध्यस्थता, जिसे आमतौर पर “माध्यस्थम्” भी कहा जाता है, एक समस्या या विवाद के बीच में तीसरे पक्ष की भूमिका को सूचित करता है. इसका मतलब होता है कि मध्यस्थ व्यक्ति या संगठन दो पक्षों के बीच में आक्रमण या विवाद को सुलझाने की कोशिश करता है. मध्यस्थता का मुख्य उद्देश्य समझौते पर पहुँचना और विवाद को शांति से समाप्त करना होता है, ताकि दोनों पक्ष संतुष्ट हो सकें. मध्यस्थ की भूमिका में निष्कलंक और निष्पक्ष होने की मांग की जाती है ताकि वह समस्या को न्यायिक और निष्कलंक तरीके से सुलझा सके |
सुलह क्या है?
सुलह एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें विवाद के पक्षों के बीच समझौता या समझौता करने की कोशिश की जाती है. यह विवादों और मतभेदों को समाधान करने का माध्यम होता है जिसमें पक्षों के बीच आपसी सहमति प्राप्त करने की कोशिश की जाती है ताकि वे विवाद को खत्म कर सकें और एक समझौते पर पहुंच सकें. सुलह की प्रक्रिया में मध्यस्थ के रूप में एक तीसरा व्यक्ति या संगठन शामिल हो सकता है, जिसका मुख्य कार्य विवाद के पक्षों के बीच समझौता प्राप्त करने में मदद करना होता है. सुलह का उद्देश्य आपसी सहमति और शांति स्थापित करना होता है |
माध्यस्थता/माध्यस्थम् एवं सुलह में अंतर
- माध्यस्थता में विवादित पक्षों के बीच पहले से ही एक माध्यस्थ करार होता है, जबकि सुलह में कोई पहले से ही किसी करार की आवश्यकता नहीं होती है.
- माध्यस्थ का कार्य होता है कि वह विवाद को सुलझाने के लिए निर्णय देता है, और उसका निर्णय बाधित नहीं किया जा सकता है, जबकि सुलहकर्त्ता का मुख्य कार्य होता है विवादित पक्षों के बीच दोनों को समझाना और उन्हें सहमति दिलाना.
- माध्यस्थता कार्यवाही गोपनीय होती है, और पक्षकारों के बीच के तर्क और साक्षय की बजाय माध्यस्थ के द्वारा लिया जाता है, जबकि सुलह में पक्षकार सुलहकर्त्ता से यह अपेक्षा कर सकता है कि वह मामले में दी गई जानकारी दूसरे पक्ष को न बताए, जबकि माध्यस्थता कार्यवाही गोपनीय नहीं होती है |