Table of Contents
शमनीय अपराध
शमनीय अपराध क्या है? शमन करना समझौते का पक्षकारों के बीच एक मामला होता है. किन्तु अपराधों का शमन करना यह सूचित करता है कि पक्षकारों के बीच झगड़ा परस्पर सहमति से तय हो गया है या उसका समायोजन हो गया है.
इसका मतलब है कि मामले में एक ऐसी अवस्था आ पहुँची है जबकि एक व्यक्ति, जिसके विरुद्ध अपराध किया गया था, कुछ प्रतिफल (Consideration) या पारितोषण (Gratification) प्राप्त कर इस बात के लिए तैयार हो गया है कि अभियुक्त का अभियोजन न किया जाय. उन अपराधों में, जिनमें समझौता किया जा सकता है. कुछ ऐसे हैं जो स्वयं व्यथित पक्षकार द्वारा किये जा सकते हैं और दूसरे वे हैं जिनमें न्यायालय की अनुमति से समझौता किया जा सकता है.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 320 के प्रथम सारणी के तृतीय स्तम्भ में व्यथित पक्षकार द्वारा अपराध का समन किया जा सकेगा तथा इसी धारा की द्वितीय सारणी के तृतीय स्तम्भ में न्यायालय की अनुमति से अपराधों का शमन किया जा सकता है. जब कोई अपराध इस धारा के अधीन शमनीय हो तब ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण का अथवा ऐसे अपराध को करने के प्रयत्न का (जब ऐसा प्रयत्न स्वयं अपराध हो) शमन उसी प्रकार से किया जा सकेगा.
जब वह व्यक्ति जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के लिए अन्यथा सक्षम होता, 18 वर्ष से कम आयु का हो या जड़ या पागल हो, तब कोई व्यक्ति जो उसकी ओर से संविदा करने के लिये सक्षम हो, ऐसे अपराध का शमन न्यायालय की अनुमति से कर सकेगा. यदि अपराध का समन करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, तो ऐसे व्यक्ति का विधिक प्रतिनिधि न्यायालय की सम्मति से अपराध का शमन कर सकेगा.
जब अभियुक्त विचारण के लिये सुपुर्द (Handed Over) कर दिया जाय या जब वह दोषसिद्ध कर दिया जाये और अपील लम्बित हो, तब अपराध के लिये कोई शमन, यथास्थिति, उस न्यायालय की इजाजत के बिना, जिसे वह सुपुर्द किया गया हो, या जिसके समक्ष अपील सुनी जानी हो, अनुज्ञात (Allow) न किया जायगा.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 401 के पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों के प्रयोग में कार्य करते हुए उच्च न्यायालय या सेशान न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध का शमन करने की अनुमति दे सकेगा जिसका शमन करने के लिये वह व्यक्ति इस धारा के अधीन सक्षम हो. यदि अभियुक्त किसी पूर्व दोषसिद्ध के कारण किसी अपराध के लिये जुर्माना दण्ड से भिन्न किस्म के दण्ड से दण्डनीय हो, तो ऐसे अपराध का शमन न किया जायगा. अपराध को इस धारा के अधीन शमन का प्रभाव उस अभियुक्त को दोषमुक्ति होगा, जिसे अपराध का शमन किया गया है. किसी अपराध का शमन इस धारा के उपबन्धों के अनुसार ही किया जायगा, अन्यथा नहीं |
प्रशमन का कानूनी प्रभाव
अपराध के समन का कानूनी प्रभाव उस अभियुक्त को दोषमुक्त है जिससे अपराध का समन किया गया. यदि एक बार अपराध का प्रशमन किया जा चुका है तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता. प्रशमनीय मामलों में समझौता न्यायालय को उस मामले का विचारण करने से बहिष्कृत कर देता है |
वापसी और प्रशमन के बीच अंतर
- वापसी चाहे वह शमन मामले में धारा 257 के अन्तर्गत हो या वारण्ट मामले में धारा 214 के अन्तर्गत हो, जिसे राज्य द्वारा चुनौती दी गयी है, एकपक्षीय कार्य या एक पक्ष का कार्य होता है, किन्तु प्रशमन (Composition) द्विपक्षीय कार्य होता है, अथवा यह दोनों पक्षकारों का कार्य होता है.
- वापसी न्यायालय की अनुमति से होती है. सिवाय एडवोकेट जनरल द्वारा वापसी छोड़कर यदि मामले का विचारण हाईकोर्ट द्वारा मूल रूप में किया है, किन्तु अपराध का शमन ऐसी अनुमति से हो सकेगा.
- वापसी केवल शमन-मामले का निर्देश करती है जहाँ तक कि यह अनुमति देने योग्य है, किन्तु अधिकांस प्रशमनीय मामले वारण्ट मामले होते हैं.
- वापसी और प्रशमन दोनों का प्रभाव अभियुक्त को दोषमुक्ति होता है, किन्तु आरोप विरचित होने के पहले धारा 494 के अन्तर्गत वापसी का परिणाम उन्मोचन होता है और दोषसिद्धि नहीं होता है.
- वापसी की इजाजत के शिकायतकर्ता को दी जा सकती है, किन्तु अपराध के शमन करने का अधिकार अनिवार्य रूप से केवल शिकायतकर्त्ता में ही निहित नहीं होता है.
- मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को मामला वापस लेने की आज्ञा दे भी सकता है और नहीं भी दे सकता है, किन्तु यदि अपराध प्रशमनीय है तो न्यायालय प्रथम या समझौता को कार्यान्वित करने के लिये बाध्य है.
- प्रशमनीय मामले में प्रशमन उस समय पूरा हो जाता है, जबकि यह निर्मित होता है और इसका परिणाम अभियुक्त को दोषमुक्ति होती है. वापसी उस समय तक पूरी नहीं होती है जब तक कि न्यायालय की आज्ञा नहीं मिल जाती है.
- शिकायत की वापसी पर अभियुक्त प्रतिकर प्राप्त कर सकता है, किन्तु मामले में सुलह कर लेने पर किसी प्रकार का प्रतिकर नहीं दिया जाता है |