Table of Contents
- 1 अधिवक्ताओं के अधिकार
- 2 1. पैरवी करने का अधिकार
- 3 2. पक्षकारों की ओर से राजीनामा आदि करने का अधिकार
- 4 3. न्यायालय में बैठने का अधिकार
- 5 4. निरीक्षण करने का अधिकार
- 6 5. प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार
- 7 6. विनिर्णय प्रस्तुत करने का अधिकार
- 8 7. ब्रीफ पेश करने का अधिकार
- 9 8. कमिश्नर नियुक्त होने का अधिकार
- 10 9. वृतिक संसूचनाओं का अधिकार
- 11 10. न्यायालय द्वारा प्रापक (रिसीवर) नियुक्त होने का अधिकार
- 12 11. पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार
- 13 12. शपथ आयुक्त के रूप में नियुक्त होने का अधिकार
- 14 13. नोटरी पब्लिक के रूप में नियुक्त होने का अधिकार
- 15 14. सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 3 के अन्तर्गत अधिवक्ता के अधिकार
- 16 15. अधिवक्ताओं पर सम्मन आदि की तामील
अधिवक्ताओं के अधिकार
अधिवक्ता के अधिकार क्या है? अधिवक्ता अपने पक्षकारों की पैरवी अच्छी तरह कर सकें तथा वे स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से न्यायालय के समक्ष अपनी बात रख सकें, इसके लिए अधिवक्ताओं को कई अधिकार प्रदान किये गये हैं-
1. पैरवी करने का अधिकार
अधिवक्ताओं का सर्वप्रथम अधिकार न्यायालयों में पैरवी से अभिप्राय किसी मामले में अपने पक्षकार का प्रतिनिधित्व करना है. अधिवक्ता ही अपने पक्षकार की बात न्यायालय के समक्ष रखता है. यह कहना गलत नहीं होगा कि अधिवक्ता मामले में पक्षकारों का अभिकर्त्ता अथवा प्रतिनिधि होता है. पैरवी करने का अधिकार केवल विहित योग्यता प्राप्त अधिवक्ताओं को ही प्राप्त होता है. ऐसा व्यक्ति जो कम से कम विधि स्नातक है तथा जिसने बार काउन्सिल से सनद (Charter) प्राप्त कर रखी है वही व्यक्ति न्यायालयों में पैरवी करने का हकदार होता है. ऐसा कोई भी व्यक्ति जो न तो विधि स्नातक है न ही जिसके पास सनद हैं, वह न्यायालय में पैरवी नहीं कर सकता है. अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 45 के अन्तर्गत विधि विरुद्ध विधि व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के लिए 6 माह के कारावास के दण्ड का प्रावधान किया गया है.
2. पक्षकारों की ओर से राजीनामा आदि करने का अधिकार
अधिवक्ताओं व पक्षकारों की ओर से किसी मामले में राजीनामा (Resign) आदि करने का अधिकार भी दिया गया है. कोई भी अधिवक्ता अपने पक्षकारों से निर्देश प्राप्त करके किसी मामले में राजीनामा पेश कर सकता है. उस राजीनामे का वही प्रभाव होता है जैसा पक्षकारों द्वारा राजीनामा किये जाने का होता है. सामान्यतया वकालतनामे में इस बात का भी उल्लेख कर दिया जाता है कि अधिवक्ताओं को अपने पक्षकार की ओर से राजीनामा करने का अधिकार होगा. इस प्रकार का प्राधिकार पक्षकार की ओर से अधिवक्ता को दिया जाता है.
3. न्यायालय में बैठने का अधिकार
अधिवक्ताओं को पैरवी के दौरान न्यायालय में समुचित स्थान पर बैठने का भी अधिकार है. कोई भी अधिवक्ता अपने मामले की सुनवाई की प्रतीक्षा के दौरान न्यायालय में की गई बैठक व्यवस्था में स्थान पाने का हकदार होता है. इस बात का उल्लेख इसलिये किया जा रहा है कि एक मामले में यह प्रश्न उठा था कि क्या किसी पक्षकार की अपेक्षा अधिवक्ता को न्यायालय में बैठने का पहले हक है? केरल उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि न्यायालयों में बैठने का पहला हक अधिवक्ता का है. कोई भी अन्य व्यक्ति तब तक स्थान पाने का हकदार नहीं होता जब तक अधिवक्ता खड़ा होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि अधिवक्ताओं को न्यायालय का अधिकारी माना गया है. उनका समाज में एक विशिष्ट स्थान होता है. अतः यह उचित है कि न्यायालय की बैठक व्यवस्था में अन्य व्यक्तियों को अपेक्षा अधिवक्ताओं को प्राथमिकता दी जावे.
4. निरीक्षण करने का अधिकार
अधिवक्ताओं को अपने पक्षकारों से संबंधित किसी पत्रावली, दस्तावेज आदि का निरीक्षण करने का अधिकार होता है. वे नियमानुसार शुल्क: जमा करा कर न्यायालय की अनुमति से पत्रावली, दस्तावेजों आदि का निरीक्षण कर सकते हैं. उल्लेखनीय है कि निरीक्षण के दौरान वे पत्रावलियों, दस्तावेजों आदि पर किसी प्रकार की लिखावट नहीं लिख सकते हैं और न ही उनमें किसी की काट छांट कर सकते हैं. उन्हें पत्रावलियों व दस्तावेजों को अक्षुण्ण रखते हुए निरीक्षण करना होता है.
5. प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार
अधिवक्ताओं को अपने पक्षकारों से संबंधित मामलों में किसी कार्यवाही दस्तावेज आदेशों, निर्णयों अथवा डिक्री आदि की प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं. वे निर्धारित शुल्क जमा कर नियमानुसार ऐसी प्रतिलिपियां प्राप्त कर सकते हैं. इसके लिए अधिकाओं को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन करना होता है. आवश्यक मामलों में विशेष शुल्क देकर शीघ्रता से प्रतिलिपि प्राप्त की जा सकती है.
6. विनिर्णय प्रस्तुत करने का अधिकार
अधिवक्ता अपने मामले में पैरवी के दौरान उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णयों को पेश कर सकता है. ऐसे पूर्व निर्णय, आदेश, निर्णय अथवा डिक्री पारित करते समय न्यायालयों द्वारा विचार में लिये जाते हैं. यद्यपि ऐसे विनिर्णय हमेशा बहस के दौरान ही प्रस्तुत कर दिये जाने चाहिये लेकिन यदि उस समय उपलब्ध नहीं हो तो न्यायालय की अनुमति के बाद में भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं.
7. ब्रीफ पेश करने का अधिकार
कई बार अधिवक्ता किसी कार्य के कारण से न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पाते हैं. ऐसी स्थिति में वे अपनी ओर से उपस्थिति देने हेतु किसी अन्य अधिवक्ता को ब्रीफ (Brief) कर सकते हैं. ऐसा ब्रीफ न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने पर उस अधिवक्ता की उपस्थिति क्षम्य कर दी जाती है.
8. कमिश्नर नियुक्त होने का अधिकार
अधिवक्ताओं को एक अधिकार यह भी दिया गया है कि वे किसी मामले में साक्ष्य लेने हेतु अथवा किसी स्थान, लेखा, फर्म आदि का निरीक्षण करने हेतु कमिश्नर के रूप में नियुक्त हो सकते हैं. ऐसे मामलों में न्यायालय द्वारा उनको उचित पारिश्रमिक भी दिलाया जाता है. अधिवक्ता, न्यायालय के कमिश्नर के रूप में नियुक्त हो सकते हैं. ऐसे मामलों में न्यायालय द्वारा उनको उचित पारिश्रमिक भी दिलाया जाता है. अधिवक्ता को न्यायालय के कमिश्नर को अपनी अधिकारिता में रह कर कार्य करना होता है और उसी के अनुरूप अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है.
9. वृतिक संसूचनाओं का अधिकार
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 में यह प्रावधान किया गया है कि यदि अधिवक्ताओं को पैरवी के दौरान अपने पक्षकारों से किसी भी प्रकार की सूचना, साक्ष्य आदि मिलती है तो अधिवक्ता को ऐसी सूचना अथवा साक्ष्य को प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जा सकता है. ऐसी सूचनाओं को गोपनीय सूचना माना गया है. यदि अधिवक्ताओं को इन्हें प्रकट करने के लिये बाध्य किया जाता है तो इससे पक्षकारों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है. इसलिये अधिवक्ताओं को यह महत्वपूर्ण अधिकार दिया गया है कि उन्हें ऐसी सूचनाओं को प्रकट करने के लिये विवश नहीं किया जा सकता है.
10. न्यायालय द्वारा प्रापक (रिसीवर) नियुक्त होने का अधिकार
कई विवादास्पद मामलों में वादग्रस्त सम्पत्ति की सुरक्षा हेतु सिविल प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत रिसीवर की नियुक्ति की जाती है. दण्ड प्रक्रिया संहिता में भी इस प्रकार की व्यवस्था की गई है. रिसीवर के रूप में अधिवक्ता को नियुक्त किया जा सकता है. यह न्यायालय की विवेकाधीन शक्ति है कि वह किस अधिवक्ता को रिसीवर के रूप में नियुक्त करे. ऐसे रिसीवर को न्यायालय के आदेश द्वारा समुचित पारिश्रमिक भी दिलाया जाता है.
11. पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार
अधिवक्ताओं को अपने पक्षकारों की ओर से पैरवी बाबत पारिश्रमिक पाने का अधिकार है. यद्यपि पक्षकारों का यह कर्तव्य है कि वे अधिवक्ताओं को अनुबंधित पारिश्रमिक का यथासमय संदाय करें लेकिन यदि कोई पक्षकार समय पर पारिश्रमिक का संदाय नहीं करता है अथवा संदाय करने से इंकार करता है तो अधिवक्ता ऐसे पारिश्रमिक को विधि के अनुसार वसूल कर सकता है.
कई बार ऐसा भी पाया जाता है कि जब तक एक अधिवक्ता के पारिश्रमिक का संदाय नहीं कर दिया जाता है तब तक दूसरा अधिवक्ता उस पक्षकार के मामले में पैरवी नहीं करता है. यह विधि व्यवसाय की आचार संहिता के अनुरूप है.
12. शपथ आयुक्त के रूप में नियुक्त होने का अधिकार
न्यायिक कार्यवाही के दौरान किये जाने वाले शपथ पत्रों को अभिप्रमाणित करने के लिये अधिवक्ता शपथ आयुक्त के रूप में नियुक्त होने का अधिकार भी रखते हैं. सामान्यतया ऐसी नियुक्ति सिविल एवं आपराधिक मामलों में जिला न्यायाधीश द्वारा और राजस्व मामलों में कलेक्टर द्वारा की जाती है. यह एक परम्परा है कि शपथ आयुक्त के पद पर सामान्यतया कनिष्ठ अधिवक्ताओं को नियुक्त किया जाता है.
13. नोटरी पब्लिक के रूप में नियुक्त होने का अधिकार
शपथ पत्र, दस्तावेज आदि अभिप्रमाणित करने के लिये सामान्यतया नोटरी पब्लिक की नियुक्ति की जाने का भी प्रावधान है. ऐसी नियुक्ति समुचित सरकार द्वारा प्रत्येक न्यायालय मुख्यालय पर की जाती है. अर्हता प्राप्त अधिवक्ताओं को नोटरी पब्लिक के पद पर नियुक्त होने का अधिकार है. वे ऐसी नियुक्ति के लिये विहित प्रारूप में नियमानुसार आवेदन कर सकते हैं.
14. सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 3 के अन्तर्गत अधिवक्ता के अधिकार
अधिवक्ता के अधिकार के संदर्भ में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 3 अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस आदेश में अधिवक्ताओं को पक्षकारों का अभिकर्ता अथवा प्रतिनिधि माना गया है. अधिवक्ता अपने पक्षकारों की ओर से न्यायालय में उपस्थिति दे सकते हैं. सुनवाई के दौरान किसी भी प्रकार का आवेदन पत्र, दस्तावेज, राजीनामा आदि प्रस्तुत कर सकते हैं. अधिवक्ता को वादी प्रतिवादी अथवा अभियुक्त के उपस्थित नहीं होने पर उनकी ओर से उपस्थिति माफ कराने का प्रार्थनापत्र भी प्रस्तुत करने का अधिकार है.
साथ ही अधिवक्ताओं को न्यायालय के निर्णयों, आदेशों एवं डिक्रियों के विरुद्ध अपील या पुनरावलोकन अथवा पुनरीक्षण करने का प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है.
किसी पक्षकार की मृत्यु हो जाने पर वे मृतक पक्षकारों की ओर से वैध प्रतिनिधियों को जोड़े जाने का प्रार्थनापत्र भी दे सकते हैं. इस प्रकार मामले की पैरवी के दौरान अधिवक्ता अपने पक्षकारों के निमित्त से वे सारे कार्य कर सकते हैं जो स्वयं पक्षकार द्वारा किये जा सकते हैं अथवा जो पक्षकारों के हित में है.
15. अधिवक्ताओं पर सम्मन आदि की तामील
यहाँ पर भी उल्लेखनीय है कि किसी मामले में विचारण के दौरान किसी कार्यवाही में किसी सम्मन आदि की तामील पक्षकार की ओर से उसके अधिवक्ता पर की जा सकती है. आदेश 3 के नियम 3 में इस प्रकार की व्यवस्था की गई है |