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एक कुशल एवं सफल अधिवक्ता के गुण
एक अधिवक्ता में क्या विशेषतायें होनी चाहिये? विधि व्यवसाय उतना आसान नहीं है जितना इसे समझा जाता है. यह अत्यन्त जोखिम भरा कार्य है. इस व्यवसाय में सफलता के लिये अधिवक्ता का सभी दृष्टि से कुशल एवं निपुण होना आवश्यक है. सामान्यतया एक सफल अधिवक्ता के लिये निम्नांकित बातें अपेक्षित हैं-
1. ईमानदारी
अधिक का सर्वप्रथम गुण उसका अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार होता है. इतिहास इस बात का साक्षी है कि विधि व्यवसाय में वही व्यक्ति उत्कर्ष पर पहुंचा है जो ईमानदारी का उपासक रहा है. ईमानदारी केवल व्यवसाय के प्रति हो नहीं अपितु न्यायालयों और पक्षकारों के प्रति भी होना आवश्यक है. जहाँ कहीं व्यक्ति ईमानदारों के पथ से विचलित होने लगता है वहीं उसके व्यवसाय का पतन प्रारम्भ हो जाता है. अतः ईमानदारी (Honesty) के लिये यह आवश्यक है कि अधिवक्ता किसी भी परिस्थिति में अपने मार्ग से विचलित न हो.
2. साहस
सफलता का दूसरा बिन्दु साहस (Courage) हैं. साहस से अभिप्राय अपने पक्ष को निडरता एवं निर्भीकता से प्रस्तुत करता है. साथ ही सम और विषम परिस्थितियों में धैर्य रखना भी है. हम यह जानते हैं कि कई मामलों में अधिवक्ताओं को सफलता भी मिलती है और कई मामलों में असफलता भी जब कभी भी किसी मामले में असफलता मिले तो अधिवक्ता को धैर्य नहीं खोना चाहिये. साहस से प्रतिकूल निर्णयों के विरुद्ध अपील की तैयारी करनी चाहिये. साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि अधिवक्ताओं में न्यायालयों के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अदम्य साहस भी होना चाहिये. उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह न्यायालय के समक्ष किसी भी बात को रखने में संकोच नहीं करे. साहसी अधिवक्ता ही विधि व्यवसाय में सफलता की सीढ़ियाँ तय कर सकता है.
3. परिश्रम
विधि व्यवसाय की सफलता का तीसरा महत्वपूर्ण बिन्दु परिश्रम अर्थात उद्यम (Industrious) है. ऐसा कहा जाता है कि जो अधिवक्ता जितना अधिक परिश्रम करता है उसे उतनी ही अधिक सफलता मिलती है. विधि व्यवसाय में अधिवक्ताओं को वाद तथा परिवाद तैयार करने से लेकर निर्णय तक अनेक स्तरों से गुजरना होता है. हर स्तर पर अधिवक्ता के ज्ञान को परीक्षा होती है. इस परीक्षा में वह तभी सफलता पा सकता है जब यह अत्यधिक परिश्रम करे.
यहाँ यह भी कहना उचित होगा कि न्यायालयों में उपस्थित होने से पूर्व अधिवक्ता को अपने मामले की पूर्ण तैयारी कर लेनी चाहिये. उसे स्थगन में कभी विश्वास नहीं करना चाहिये. सामान्यतया स्थगन वहीं अधिवक्ता चाहता है जो परिश्रम करने से कतराता है. कुल मिलाकर परिश्रम ही सफलता की कुंजी है. यह अधिवक्ता के लिये एक आदर्श सूत्र है. एक अच्छा अधिवक्ता वह माना जाता है जिसकी वाणी में चातुर्य हो अर्थात जिसमें समय के अनुकूल बोलने की क्षमता हो, वह नपे तुले शब्दों का प्रयोग करता हो साथ ही जिसका विनोदी स्वभाव हो.
यह कहना गलत नहीं होगा कि कई बार विधि व्यवसाय बड़ा नीरस (Monotonous) सा लगता है. व्यक्ति इस व्यवसाय से कई बार कब भी जाता है. ऐसी स्थिति में अधिवक्ता के लिये यह आवश्यक है कि वह समय-समय पर विनोद-मनोविनोद करता रहे ताकि वह न्यायालयों का मन जीत सके. विनोदी स्वभाव कई बार न्यायालय का वातावरण खुशनुमा करने में भी सहायक हो जाता है. न्यायालय में कदुभाषा से बचना भी आवश्यक है. जो व्यक्ति विनोदी स्वभाव का है, वह कटुभाषा का प्रयोग नहीं करेगा.
4. सरल एवं सौम्य स्वभाव
अधिवक्ता को अपने स्वभाव में हमेशा सौम्यता का परिचय देना चाहिये. अधिवक्ता का स्वभाव जितना शांत एवं सौम्य होगा न्यायालय उससे उतना ही प्रभावित होगा. न्यायालय में उसका आचरण न्यायोचित हो, वह अपनी बात की बड़ी सरलता से और सहज भाव से कहे. अधिवक्ता को कभी भी क्रोध अथवा प्रमाद (Carelessness) नहीं करना चाहिये. जहाँ कहीं अधिवक्ता क्रोध अथवा प्रमाद कर बैठता है वहाँ वह अपने मामलों में कमजोर पड़ जाता है.
B मलिक ने अपनी पुस्तक आर्ट ऑफ लायर में लिखा है कि अधिवक्ता को न्यायालय से विवाद करने अथवा तुच्छ बातों पर झगड़ने या क्रोध करने में कोई लाभ नहीं होता. अतः अधिवक्ता को सदैव सौम्य एवं सरल स्वभाव का होना चाहिये.
5. विधिक ज्ञान एवं सोच
सफलता के लिये अधिवक्ता का विधिक ज्ञान ठोस एवं सुदृढ़ होना आवश्यक है. इसके लिये अधिवक्ता की न केवल मामले के तथ्यों की पकड़ होना अपेक्षित है अपितु उसे कानूनी पहलुओं का ज्ञान होना भी आवश्यक है. यदि अधिवक्ता को कानून का पूर्ण ज्ञान नहीं है तो वह अपने व्यवसाय में कभी सफल नहीं हो सकता.
6. मानव स्वभाव का ज्ञान
अधिवक्ता के लिये यह भी आवश्यक है कि उसे मानव स्वभाव का पूर्णज्ञान हो. यह इसलिये आवश्यक है. क्योंकि अधिवक्ता का कई व्यक्तियों से सम्पर्क एवं सामना होता है. पक्षकारों से, न्यायिक अधिकारियों से, सहयोगी अधिवक्ताओं से, साक्षियों से, कर्मचारियों से, अधिकारियों से एवं जनसाधारण से. इन व्यक्तियों के सम्पर्क में आने तथा उनसे अपना साध्य पूरा करने के लिये यह आवश्यक है कि उनसे उनके स्वभाव के अनुसार व्यवहार किया जावे. यदि किसी व्यक्ति के स्वभाव के प्रतिकूल व्यवहार किया जाता है, तो वह व्यक्ति कभी अधिवक्ता की मदद नहीं करता.
7. अभिव्यक्ति की कला
अधिवक्ता में किसी बात को अभिव्यक्त करने की चतुरता होना बहुत आवश्यक है. इसे हम अभिव्यक्ति की कला भी कह सकते हैं. किसी बात को जितनी सुंदर भाषा में और प्रभावी रूप से कहा जायेगा वह उतनी ही सार्थक सिद्ध होगी. इसके लिये आवश्यक है कि अधिवक्ता का भाषा पर अधिकार हो, उसकी अभिव्यक्ति का तरीका कलात्मक हो. कई बार न्यायालय का मन जीतने के लिये अभिव्यक्ति अत्यंत उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध हो जाती है.
B मलिक ने अपनी कृति आर्ट ऑफ लायर में यह भी उल्लेख किया है कि जिस अधिवक्ता का भाषा पर अधिकार व नियंत्रण होता है, वह व्यक्ति उतना ही सम्मान का पात्र समझा जाता है |