क्षतिपूर्ति के विभिन्न प्रकार क्या है? | क्षतिपूर्ति कैसे निर्धारित की जाती है?

क्षतिपूर्ति के विभिन्न प्रकार क्या है? | क्षतिपूर्ति कैसे निर्धारित की जाती है?

क्षतिपूर्ति का अर्थ

किसी अपकृत्य द्वारा पहुंची हुई क्षति को पूरा करने के लिए क्षतिग्रस्त व्यक्ति को क्षतिकर्ता से दिलाई गई धनराशि क्षतिपूर्ति कही जाती है. क्षतिपूर्ति का उद्देश्य क्षतिग्रस्त व्यक्ति को आर्थिक संतोष देने के साथ-साथ क्षतिकर्ता को दण्ड देना भी है ताकि वह भविष्य में ऐसी त्रुटि न करे |

क्षतिपूर्ति के प्रकार

1. वास्तविक क्षतिपूर्ति

वास्तविक क्षतिपूर्ति वह है जो वादी को वास्तविक क्षति के मुआवजे के रूप में प्रदान की जाती है न कि विधिक अधिकार के अस्तित्व के लिए इसे साधारण क्षतिपूर्ति भी कहा जा सकता है. इस क्षतिपूर्ति के अन्तर्गत न्यायालय वादी को वह धनराशि दिलवाता है जो वादी की वास्तविक क्षति की पूर्ति के लिए न्यायिक दृष्टि से आवश्यक है.

2. अवमानात्मक क्षतिपूर्ति

इस प्रकार की क्षतिपूर्ति वहां प्रदान की जाती है जहां न्यायालय यह समझता है कि क्षति अत्यन्त मामूली है और उसके लिए मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये था.

3. प्रतीकात्मक क्षतिपूर्ति

इस प्रकार की क्षतिपूर्ति वादी को क्षति मुआवजे के लिए न दिलाकर वादी के विधिक अधिकार के अस्तित्व को स्थापित करने के लिए दिलाई जाती है अर्थात् यह क्षति उन मामलों में दिलाई जाती है जिनमें वादी को यद्यपि क्षति नहीं पहुँची है परन्तु उसके विधिक अधिकार का उल्लंघन किया गया हैं.

4. उदाहरणात्मक या मुआवजा सम्बन्धी

मुआवजा सम्बन्धी क्षतिपूर्ति वादी को हुई क्षति के अनुपात में दी जा सकती है, जबकि उदाहरणार्थ क्षतिपूर्ति प्रतिवादी के गलत व्यवहार के प्रति क्रोध व्यक्त करते हुए उसे अन्य लोगों के लिए एक उदाहरण छोड़ने की दृष्टि से बड़ी धनराशि के रूप में वादी को दिलायी जाती है. इस प्रकार की क्षतिपूर्ति का उद्देश्य प्रतिवादी को दण्डित करना रहता है. अतः इसे प्रतिकरात्मक अथवा दण्डात्मक क्षतिपूर्ति भी कहते हैं.

5. प्रत्याशित क्षतिपूर्ति

यह क्षतिपूर्ति उन मामलों में दिलायी जाती है जबकि प्रतिवादी के अपकृत्य से वादी को क्षति तो पहुँचती है परन्तु निर्णय के समय तक उसका निर्धारण निश्चित न होकर सम्भावित रहता है.

कभी-कभी अपकृत्य निरन्तर चलने वाला अथवा दोहराया जाने वाला होता है तो वाद-कारण निरन्तर बना रहता है और ऐसे मामलों में निरन्तर क्षतिपूर्ति दिलायी जाती है, यथा-मिथ्या बन्दीकरण अथवा अनधिकार प्रवेश के मामले में. कभी-कभी क्षतिपूर्ति को सामान्य एवं विशिष्ट क्षतिपूर्ति के रूप में भी वर्गीकृत किया जाता है.

6. सामान्य क्षतिपूर्ति

जहां न्यायालय वादी के विधिक अधिकार के उल्लंघन से हो क्षतिपूर्ति का अनुमान लगा लेता है, ऐसे मामलों में वादी को वास्तविक प्रति प्रमाणित नहीं करनी पड़ती है.

7. विशिष्ट क्षतिपूर्ति

जब वादी अपनी निश्चित वास्तविक क्षति को प्रमाणित कर देता है तब विशिष्ट क्षतिपूर्ति दिलाई जाती है. इस प्रकार की क्षतिपूर्ति के लिये वाद-पत्र में क्षति की विशिष्टता का उल्लेख होना चाहिये |

क्षतिपूर्ति का निर्धारण

सामान्यत: क्षतिपूर्ति की राशि न्यायालय अपने विवेक एवं मुकदमे की परिस्थितियों के आधार पर तय करता है. यह दायित्व वादी का है कि वह अपनी क्षति को न्यायालय के समक्ष सर्वोत्तम ढंग से प्रमाणित करे. मुकदमे में सामान्य क्षतिपूर्तियाँ विशिष्ट रूप से प्रमाणित नहीं करनी पड़तीं. विशिष्ट क्षतिपूर्ति के मामले में न्यायालय यह देखता है कि वादी को कितनी क्षतिपूर्ति दिलाई जाय जिससे उसे पहुंची क्षति की पूर्ति हो सके.

गणपति भट्ट बनाम मैसूर राज्य (AIR 1960 मैसूर 220) के मामले में यह कहा गया था कि वादी व्यक्तिगत क्षतियों के लिये क्षतिपूर्ति के दावे में कष्ट, परेशानी, कठिनाइयों तथा स्वास्थ्य को पहुँची हानि के लिए क्षतिपूर्ति ले सकता है. यदि घटना के परिणामस्वरूप उसके कार्य करने की सामर्थ्य कम हो जाती है अथवा जीवन आशा में कमी आ जाती है तो वह उसके लिये भी मुआवजा प्राप्त कर सकता है.

शफीक बनाम प्रमोद कुमार भाटिया (AIR 1997 MP 143) के वाद में दुर्घटना के कारण वादी का पैर 50% स्थायी रूप से बेकार हो गया था; इस कारण वह जगह-जगह घूमकर कपड़ा बेचने में असमर्थ हो गया था जिस कारण न्यायालय ने 84,000 रुपये प्रतिकर प्रदीन कराया |

दोहरी कार्यवाही का नियम

सामान्य नियम यह है कि एक ही कारण से उत्पन्न होने वाली सभी क्षतिपूर्ति एक ही बार में प्राप्त की जानी चाहिये.

परन्तु इस नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं-

  1. जब एक ही कार्य दो भिन्न-भिन्न अधिकारों का उल्लंघन करता है.
  2. जब प्रतिवादी ने एक ही अधिकार के उल्लंघन में भिन्न-भिन्न कृत्य किये हैं.
  3. जब कार्य का कारण गतिमान हो |

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