Table of Contents
पेटेंट का उल्लंघन
प्रायः प्रत्येक पेटेंटी यह चाहता है कि उसके आविष्कार पर उसका एकाधिकार रहे तथा कोई भी व्यक्ति उसका उल्लंघन नहीं करें. पेटेंट अधिनियम के अन्तर्गत भी पेटेंटी के पेटेंट (Patent) की रक्षा की गई है. पेटेंट पेटेंटी को भारत में आविष्कार को बनाने, वितरण करने अथवा उसका विक्रय आदि करने का अधिकार प्रदान करता है. पेटेंटी अपने अधिकारों का समनुदेशन भी कर सकता है और अनुज्ञप्ति (License) भी अनुदत्त कर सकता है. यह सब पेटेंटी के अनन्य अधिकार हैं.
जब किसी व्यक्ति द्वारा पेटेंटी के अनन्य अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो उसे पेटेंट का उल्लंघन/अतिलंघन (Infringement Of Patent) कहा जाता है.
सामान्यतया निम्नांकित कार्यों को पेटेंट का उल्लंघन माना गया है-
- आविष्कार की मिलती-जुलती नकल करना;
- यांत्रिक समतुल्यता;
- आविष्कार में तुच्छ रूप भेद;
- आविष्कार के सारभूत लक्षणों को ग्रहण करना; आदि
पेटेंट के उल्लंघन में सामान्यतया पेटेंटी के आविष्कार के सारवान् लक्षणों को ग्रहण किया जाता है; आविष्कार की मिलती-जुलती नकल या सारहीन रूप भेद किया जाता है. यांत्रिक समतुल्यों द्वारा पेटेंट का उल्लंघन तब माना जाता है जब अनुकल्पों (Substitutes) का उपयोग करते हुए ऐसे परिणाम प्राप्त किये जाते हैं जो पेटेंटी द्वारा समान प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त किये गये हैं.
अर्थान्वयन का प्रश्न
उल्लंघन का अवधारण अर्थान्वयन (व्याख्या) का प्रश्न है. अर्थान्वयन का कोई एक सामान्य नियम प्रतिपादित नहीं है. उल्लंघन का निर्धारण प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर किया जाता है. उल्लंघन एक तथ्य का प्रश्न है जिसका अवधारण प्रत्येक पेटेंटी के दावे पर विचार करते हुए किया जाता है.
दावे के सारवान खण्ड को सुनिश्चित करने के पश्चात् उल्लंघनकारी वस्तु पर विचार किया जाता है.
रिचर्डसन बनाम कैस्टरे (IPC 256) के मामले में पेटेंटी द्वारा प्रतिवादी के विरुद्ध यह कहते हुए उल्लंघन का वाद संस्थित किया गया था कि उसके द्वारा पेटेंटी के विनिर्देश में वर्णित प्रक्रिया का उपयोग किया गया है. न्यायालय ने इसे उल्लंघन नहीं माना, क्योंकि-
- प्रक्रिया ऐसी नहीं थी जिसके बारे में वादी ने आविष्कार करने का दावा किया हो;
- विनिर्देश के वास्तविक अर्थान्वयन के अनुसार पेटेंट एक समुच्चय विशेष के लिए था; तथा
- प्रतिवादी द्वारा ऐसे समुच्चय का उपयोग नहीं किया गया था.
वह कार्य जो उल्लंघन नहीं है?
धारा 107A क्या है? पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 107A में ऐसे कार्यों का उल्लेख किया गया है जो पेटेंट अधिकारों के उल्लंघन की परिधि में नहीं आते है. ऐसे कार्य निम्नलिखित हैं-
पेटेंटकृत आविष्कार के निर्माण, उपयोग, विक्रय या आयात करने का ऐसा कोई कार्य जो भारत में तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अपेक्षित सूचना की प्रस्तुति एवं विकास से सम्बन्धित है या ऐसा निर्माण, उपयोग, विक्रय या आयात भारत से भिन्न देश में विनियमित होता है.
पेटेंटकृत उत्पादों का आयात किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे व्यक्ति से किया गया है जो उत्पाद का उत्पादन या विक्रय का वितरण करने के लिए विधि के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत है |
पेटेंट के उल्लंघन की स्थिति में उपलब्ध उपचार
पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 108 में पेटेन्ट के उल्लंघन की दशा में उपचारों का उल्लेख किया गया है-
1. व्यादेश
पेटेंट के उल्लंघन के मामलों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपचार ‘व्यादेश’ अभिप्राप्त करने का है. व्यादेश के द्वारा किसी व्यक्ति को कोई कार्य करने से निवारित किया जाता है अथवा रोका जाता है या कोई कार्य विशेष करने का समादेश दिया जाता है.
2. क्षतिपूर्ति
पेटेंट के उल्लंघन के मामलों में पीड़ित पक्षकार क्षतिपूर्ति (Damages) का क्लेम कर सकता है. क्षतिपूर्ति प्रतिवादी के कार्यों द्वारा कारित नुकसानी या क्षति के आधार पर प्रदान की जाती है. इसका मुख्य उद्देश्य वादी को प्रतिकर दिलाना होता है, प्रतिवादी को दण्डित करना नहीं.
3. लाभ-लेखा
लाभ-लेखा, लाभ का वह भाग होता है जो अतिलंघनकारी द्वारा पेटेंटी के आविष्कार के उपयोग से हुआ माना जाता है. पेटेंटी के आविष्कार का उपयोग करते हुए जितना लाभ अतिलंघनकारी द्वारा अर्जित किया जाता है, लाभ-लेखा का उपचार उसी लाभ को प्रत्यावर्तित करते हुए प्रदान किया जाता है.
4. माल का अभिग्रहण समपहरण या विनष्ट किया जाना न्यायालय द्वारा
उल्लंघनकारी के माल उपकरण जिनका उल्लंघनकारी माल बनाने में सर्वाधिक उपयोग है के अभिग्रहण, समपहरण या उसे विनष्ट करने का उपचार प्रदान कर सकता है |