व्यापार चिन्ह पंजीकरण क्या है? | व्यापार चिन्ह के पंजीकरण की प्रक्रिया

व्यापार चिन्ह पंजीकरण क्या है? | व्यापार चिन्ह के पंजीकरण की प्रक्रिया

व्यापार चिन्ह पंजीकरण

व्यापार चिन्ह/ट्रेडमार्क पंजीकरण क्या है? व्यापार चिन्ह पंजीकरण (Trademark Registration) एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति या व्यापारी द्वारा उत्पादों या सेवाओं के लिए एक विशिष्ट चिन्ह (जो चिन्ह, शब्द, नाम, लेबल, लोगो, आकृति आदि के रूप में हो सकता है) को सुरक्षित करने की प्रक्रिया है. यह पंजीकरण व्यक्ति या कंपनी को उनके चयनित चिन्ह के लिए एक विशेष अधिकार प्रदान करता है, जिससे उन्हें अपने उत्पादों या सेवाओं को अन्य व्यापारियों से अलग रखने का अधिकार मिलता है.

जब कोई व्यवसाय या व्यक्ति ट्रेडमार्क पंजीकृत करता है, तो यह उन्हें उस अधिकार क्षेत्र में विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं के संबंध में उस चिह्न का उपयोग करने का विशेष अधिकार देता है जहां पंजीकरण प्राप्त किया गया है. इसका मतलब यह है कि अन्य लोग समान वस्तुओं या सेवाओं के लिए समान या भ्रमित करने वाले समान चिह्न का उपयोग नहीं कर सकते हैं, जिससे ब्रांड की विशिष्टता और प्रतिष्ठा को स्थापित करने और उसकी रक्षा करने में मदद मिलेगी |

व्यापार चिन्ह/ट्रेडमार्क के पंजीकरण की प्रक्रिया

ट्रेडमार्क पंजीकरण की प्रक्रिया? व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 18 से 26 तक में व्यापार चिन्ह के रजिस्ट्रीकरण/पंजीकरण की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है. पंजीकरण की प्रक्रिया निम्नानुसार है-

1. पंजीकरण के लिए आवेदन किया जाना

ऐसा व्यक्ति जो अपने द्वारा उपयोग किये गये या अपने द्वारा उपयोग किये जाने के लिए प्रस्तावित व्यापार-चिन्ह का स्वामी होने का दावा करता है और वह उसका पंजीकरण कराने का इच्छुक है; उसे अधिनियम की धारा 18 के अन्तर्गत विहित रीति में, लिखित में रजिस्ट्रार के यहां आवेदन करना होगा.

आवेदन पत्र के साथ निर्धारित शुल्क जमा कराना होगा तथा आवेदन ऐसे पंजीकरण कार्यालय में प्रस्तुत करना होगा, जिसकी क्षेत्रीय सीमा के अन्तर्गत प्रार्थी का भारत में व्यापार का मुख्य स्थान है.

संबंधित मामला; सिको केबल्स ऑफ इण्डिया बनाम हनौरी सिको कम्पनी लिमिटेड [(2002) 24 PTC 558 दिल्ली] के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि विहित शुल्क का निर्धारित समयावधि में संदाय (पेमेंट) किया जाना आवश्यक है.

आवेदन पत्र प्राप्त होने पर रजिस्ट्रार द्वारा उसे स्वीकार, अस्वीकार, संशोधनों, परिशोधनों, शर्तों अथवा परिसीमाओं के अध्यधीन स्वीकार किया जा सकेगा. जहां कोई आवेदन पत्र अस्वीकार किया जाता है अथवा सशर्त स्वीकार किया जाता है; वहां ऐसा करने के कारण लेखबद्ध करने होंगे.

2. स्वीकृति की वापसी

धारा 19 में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें व्यापार चिन्ह के पंजीकरण के लिए प्राप्त आवेदन पत्र को स्वीकार करने के पश्चात् पुनः अस्वीकार किया जा सकेगा; बशर्ते कि उसका पंजीकरण नहीं हुआ हो. ऐसी परिस्थितियां निम्नलिखित हैं-

  1. जहां आवेदन पत्र भूल से स्वीकार कर लिया गया हो; अथवा

जहां मामले की परिस्थितियां ऐसी हों कि उनमें-

  1. व्यापार चिन्ह का रजिस्ट्रीकरण किया जाना उचित नहीं हो; या
  2. शर्तों अथवा परिसीमाओं के अध्यधीन रहते हुए पंजीकरण किया जाना उचित हो; या
  3. अतिरिक्त शर्तों के अध्यधीन आवेदन पत्र स्वीकार किया जाना न्यायसंगत हो; या
  4. शर्तों अथवा परिसीमाओं से भिन्न किन्हीं बातों के अन्तर्गत आवेदन पत्र स्वीकार किया जाना हो.

ऐसी स्वीकृति की वापसी से पूर्व आवेदक को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जायेगा; तत्पश्चात् वह स्वीकृति वापस ले सकेगा और उसका वह प्रभाव होगा मानों वह स्वीकार ही नहीं किया गया हो.

3. आवेदन पत्र का विज्ञापन

जब व्यापार चिन्ह के पंजीकरण के आवेदन पत्र को स्वीकार कर लिया जाता है, चाहे वह पूर्ण रूप से अथवा शर्तों या परिसीमाओं के अध्यधीन रहते हुए स्वीकार किया गया हो; उसे अधिनियम की धारा 20 के अन्तर्गत विज्ञापित किया जायेगा. और जहां अपवादजनक परिस्थितियों में इष्टकर लगें; वहां आवेदन पत्र स्वीकार किये जाने से पूर्व भी विज्ञापित किया जा सकेगा.

4. पंजीकरण का विरोध

जब किसी व्यक्ति द्वारा व्यापार-चिन्ह के पंजीकरण के लिए आवेदन किया जाता है और धारा 20 के अन्तर्गत उसे विज्ञापित किया जाता है; तब ऐसे विज्ञापित किये जाने के पश्चात् अधिनियम की धारा 21 के अन्तर्गत-

  1. तीन माह की अवधि में उसका विरोध किया जा सकेगा;
  2. ऐसा विरोध लिखित में होगा तथा रजिस्ट्रार के समक्ष पेश किया जायेगा;
  3. आवेदक को ऐसे विरोध की सूचना दी जायेगी;
  4. आवेदक ऐसे विरोध के बारे में अपना प्रतिकथन कर सकेगा;
  5. ऐसे प्रतिकथन की एक प्रति आवेदन का विरोध करने वाले व्यक्ति को प्रदत्त की जायेगी;
  6. दोनों पक्षकारों को अपनी-अपनी साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जायेगा तथा
  7. दोनों पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए रजिस्ट्रार द्वारा अपना विनिश्चय दिया जायेगा.

संबंधित मामला; रेमण्ड लिमिटेड बनाम चाणक्य बोवरेज [(2002) 24 PTC 52 बम्बई] के मामले में यह कहा गया है कि धारा 21 के अन्तर्गत विरोध किये जाने पर उसके विरुद्ध आवेदक द्वारा अपना प्रतिकथन (Counter Statement) प्रस्तुत किया जा सकेगा; लेकिन ऐसा प्रतिकथन निर्धारित समयावधि में प्रस्तुत करना होगा, अन्यथा यह समझा जायेगा कि आवेदक द्वारा रजिस्ट्रीकरण के अपने आवेदन पत्र का परित्याग कर दिया गया है. आगे यह भी कहा गया है कि ऐसे मामलों में नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों का पालन किया जाना अपेक्षित है.

5. सुधार एवं संशोधन

व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 18 के अन्तर्गत किसी व्यापार चिन्ह के पंजीकरण के लिए प्राप्त आवेदन पत्र को स्वीकार किये जाने से पूर्व या उसके पश्चात् रजिस्ट्रार इस अधिनियम की धारा 22 के अन्तर्गत आवेदन पत्र में किसी सुधार अथवा संशोधन की अनुमति दे सकेगा.

6. पंजीकरण

अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत पंजीकरण के बारे में प्रावधान किया गया है. इसके अनुसार-

  1. जब पंजीकरण के लिए प्राप्त आवेदन पत्र को स्वीकार कर लिया जाता है; अथवा
  2. विज्ञापन के पश्चात् उसका विरोध नहीं किया जाता है; अथवा
  3. विरोध की सूचना का समय समाप्त हो जाता है; अथवा
  4. विरोध आवेदक के पक्ष में विनिश्चित किया जाता है;

तब रजिस्टार द्वारा कथित व्यापार चिन्ह का पंजीकरण आवेदन की तारीख से कर दिया जायेगा.

व्यापार चिन्ह का पंजीकरण कर लिये जाने पर रजिस्ट्रार द्वारा विहित प्रारूप में प्रमाण-पत्र (Certificate Of Registration) जारी किया जायेगा, जो पंजीकरण कार्यालय की मुद्रा (Seal) से मुद्रांकित होगा.

यदि पंजीकरण अथवा पंजीकरण प्रमाण-पत्र में कोई लिपिकीय भूल अथवा प्रत्यक्ष गलती रह जाती है तो रजिस्ट्रार द्वारा उसमें संशोधन किया जा सकेगा अर्थात् उस भूल अथवा गलती को सुधारा जा सकेगा.

यहां यह उल्लेखनीय है कि यदि आवेदक की चूक के कारण आवेदन की तिथि से 12 माह के भीतर पंजीकरण नहीं होता है तो यह माना जायेगा कि आवेदक द्वारा आवेदन पत्र का त्याग कर दिया गया है और आवेदक को इस आशय की सूचना दे दी जायेगी.

7. संयुक्त स्वामित्व व्यापार चिन्ह

व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 24 के अन्तर्गत दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्तियों के संयुक्त स्वामित्व वाले व्यापार चिन्ह का पंजीकरण किया जा सकेगा जो-

  1. ऐसे व्यापार चिन्ह का स्वतंत्र रूप से उपयोग करते हैं; या
  2. संयुक्त स्वामी के तौर पर उसके उपयोग किये जाने का प्रस्ताव करते हैं.

8. पंजीकरण की अवधि, नवीकरण, हटाया जाना या पुनर्स्थापित किया जाना

अधिनियम की धारा 25 में निम्नांकित के बारे में प्रावधान किया गया है-

1. पंजीकरण की अवधि

व्यापार चिन्ह के अन्तर्गत व्यापार चिन्हों का पंजीकरण 10 वर्षों के लिए किया जायेगा अर्थात् पंजीकरण की अवधि 10 वर्ष होगी.

2. नवीकरण

पंजीकरण की अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात् 10 वर्षों के लिए उसका नवीनीकरण (Renewal) किया जा सकेगा. ऐसे मामलों में पिछले रजिस्ट्रीकरण की अवधि की समाप्ति से पूर्व रजिस्ट्रार द्वारा रजिस्ट्रीकृत स्वामी को उक्त आशय की सूचना दी जायेगी. रजिस्ट्रीकृत स्वामी को विहित शुल्क के साथ नवीनीकरण हेतु आवेदन करना होगा.

3. प्रविष्टि हटाया जाना

रजिस्ट्रार द्वारा सूचित किये जाने पर भी यदि व्यापार चिन्ह के स्वामी द्वारा नवीनीकरण के लिए आवेदन नहीं किया जाता है अथवा शर्तों का पालन नहीं किया जाता है तो पंजीकरण पंजिका से व्यापार-चिन्ह के रजिस्ट्रीकरण की प्रविष्टि को हटाया जा सकेगा.

4. पुनर्स्थापित किया जाना

जब पंजीकरण पंजिका से किसी व्यापार-चिन्ह के पंजीकरण की प्रविष्टि को हटा दिया जाता है और उसे हटाये जाने के पश्चात् छः माह के भीतर तथा पिछले पंजीकरण की समाप्ति से एक वर्ष के भीतर विहित शुल्क के साथ आवेदक द्वारा पुनः आवेदन किया जाता है तो रजिस्ट्रार के संतुष्ट हो जाने पर पंजिका में व्यापार- चिन्ह का पंजीकरण पुनर्स्थापित कर दिया जायेगा |

Leave a Comment