मिथ्या व्यपदेशन का अर्थ, परिभाषा एवं आवश्यक शर्ते

मिथ्या व्यपदेशन का अर्थ, परिभाषा एवं आवश्यक शर्ते

मिथ्या व्यपदेशन

मिथ्या व्यपदेशन को दुर्व्यपदेशन भी कहते हैं. भूल एक भ्रमपूर्ण धारणा है कि कोई परिस्थिति वास्तव में जो कुछ है उससे भिन्न है. जहाँ यह भ्रमपूर्ण धारणा अपनी ही भ्रांति का परिणाम हो वह भूल कहलाती हैं परन्तु जहाँ वह दूसरों के द्वारा किये निरूपण का परिणाम हो, वहाँ वह दुर्व्यपदेशन कही जाती है.

जहाँ भ्रांति मिथ्या निरूपण से उत्पन्न हुई हो और वे लोग जिन्होंने ऐसा निरूपण किया, ईमानदारी से उसकी सत्यता में विश्वास करते रहे हों, तो यह कहा जाता है कि निर्दोष दुर्व्यपदेशन के द्वारा करार उत्प्रेरित किया गया; किन्तु जहाँ वे उनका मिथ्या होना जानते थे और इस बात की बिना परवाह किये कि वे सच हैं या झूठ, दुःसाहस के साथ उन्होंने मिथ्या निरूपण किया, यह कहा जाता है कि करार कपटपूर्ण दुर्व्यपदेशन द्वारा उत्प्रेरित किया गया.

मिथ्या व्यपदेशन के आवश्यक शर्ते

मिथ्या व्यपदेशन या दुर्व्यपदेशन को निम्नलिखित शर्तों की पूर्ति करना आवश्यक हैं-

  1. उसका किसी अस्तित्व रखने वाले भौतिक तथ्य से सम्बन्ध आवश्यक है.
  2. उसका किसी सारवान् तथ्य से सम्बन्ध आवश्यक है.
  3. उसका ऐसे आधारों का तथ्य संघटित करना आवश्यक है, जिनके द्वारा उस व्यक्ति को, जिससे निरूपण किया गया, व्यवहार करने के लिये उत्प्रेरित करना आशक्ति हो.
  4. उसका ऐसे व्यक्ति को ऐसा व्यवहार करने के लिये उत्प्रेरित करने में अंशदान आवश्यक है.

भारतीय संविदा अधिनियम में मिथ्या व्यपदेशन

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 18 मिथ्या व्यपदेशन या दुर्व्यपदेशन से सम्बन्धित है जिसके अनुसार दुर्व्यपदेशन में समाविष्ट है-

  1. उस वस्तु का, जो सत्य नहीं है, ऐसी रीति से स्पष्ट निश्चयपूर्वक कथन, जो कथनvकरने वाले व्यक्ति की जानकारी द्वारा समर्थित न हो, यद्यपि यह स्वयं उसकी सत्यता में विश्वास करता हो.
  2. कर्त्तव्य का कोई भंग, जो धोखा देने के आशय के बिना कर्त्तव्य भंग करने वाले व्यक्ति को, अथवा उसके अधीन अध्यर्थना करने वाले किसी व्यक्ति को, किसी दूसरे व्यक्ति की अथवा उसके अधीन अध्यर्थना करने वाले किसी व्यक्ति को, उसकी क्षति के लिये, गुमराह करने के द्वारा कोई लाभ पहुँचा दे.
  3. करार की विषय वस्तु के सार के सम्बन्ध में किसी करार के किसी पक्ष द्वारा, चाहे जितने अबोध रूप में भूल करा देना.

मिथ्या व्यपदेशन के विरुद्ध उपचार

1. जहाँ संविदा शून्यकरणीय हो

जहाँ संविदा मिथ्या व्यपदेशन के कारण शून्यकरणीय हो वहां पक्षकार को संविदा विखण्डन करने तथा अपनी शर्तों पर पूरा कराने का अवसर प्राप्त होता है.

2. जहाँ संविदा शून्य हो

जहाँ संविदा मिथ्या व्यपदेशन के कारण शून्य होती है वहाँ तो संविदा प्रारम्भ से ही शून्य होती हैं तथा किसी प्रकार का दायित्व या अधिकार पैदा ही नहीं होता है |

कपट और मिथ्या व्यपदेशन के बीच अंतर

  1. कपट में प्रवंचना कारित करने का आशय रहता है, जबकि मिथ्या व्यपदेशन में ऐसा कोई आशय नहीं रहता.
  2. कपट से प्रेरित संविदा को भंग किया जा सकता है एवं पीड़ित पक्षकार क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का हकदार होता है, जबकि मिथ्या व्यपदेशन या दुर्व्यपदेशन से प्रेरित संविदाओं को केवल भंग किया जा सकता है, क्षतिपूर्ति प्राप्त नहीं की जा सकती.
  3. कपट के मामलों में वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध कपट का आरोप लगाया गया हैं, अपने बचाव में यह कह कर उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकता कि पीड़ित व्यक्ति के पास सत्यता का पता लगाने के साधन मौजूद थे, जबकि मिथ्या व्यपदेशन के मामलों में यह प्रतिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है |

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