कंपनी का निगमन क्या है?

कंपनी का निगमन क्या है?

कंपनी का निगमन

कंपनी के निगमन को कंपनी के विनिर्माण का द्वितीय चरण कहा जाता है. कंपनी का निगमन होते ही कंपनी अपना अस्तित्व प्राप्त कर लेती है. कंपनी के निगमन के पूर्व आवश्यकतायें अंशों के निर्मित करने तथा विवरण पत्र प्रस्तुत करने के पूर्व कंपनी के ज्ञापन पत्र के योगकर्ताओं को कम्पनियों के पंजीयक के यहाँ निम्न प्रलेख दाखिल करने होते हैं-

  1. संस्था का ज्ञापन-पत्र सदस्यों के विषय में यह समझा जायेगा कि उन्हें संस्था के ज्ञापन-पत्र तथा अन्तर्नियमों की सभी बातों की बाबत जानकारी है.
  2. संस्था के अन्तर्नियम केवल ऐसे मामलों को छोड़कर जहां कोई प्रथम सारणी की तालिका ‘अ’ को ही अपनी संस्था का अन्तनियम मान लेती है.
  3. उन व्यक्तियों के नाम की सूची जिन्होंने कंपनी के निदेशक होने की सहमति दे दी है तथा इसके साथ में ऐसे प्रत्येक व्यक्ति की लिखित सम्मति.
  4. किसी अधिवक्ता, अथवा वकील, निदेशक इत्यादि द्वारा इस बात की घोषणा कि अधिनियम की सभी आवश्यक बातों की पूर्ति हो गई है |

निगमन का प्रमाण-पत्र

निगमन का प्रमाण-पत्र (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 7) कंपनी द्वारा कंपनी रजिस्ट्रार के पास कंपनी के रजिस्ट्रेशन के लिये प्रलेख भेजे जाने पर रजिस्ट्रार सम्बन्धित कंपनी को इस आशय का प्रमाण-पत्र देगा कि उस कंपनी का निगमन हो गया है. इस प्रमाण-पत्र को “निगमन का प्रमाण-पत्र (Certificate of incorporation)” कहा जाता है तथा उस पर रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर तथा उसके कार्यालय की मुद्रा अंकित होना आवश्यक है. सीमित कंपनी की दशा में रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाण-पत्र में इस आशय का स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिये कि कंपनी एक लिमिटेड कम्पनी है.

कंपनी को उसके रजिस्ट्रेशन की तिथि से ही निगमित निकाय का स्तर प्राप्त हो जाता है तथा उसी दिन से वह एक अविच्छिन्न अस्तित्व वाली संस्था बन जाती है. निगमन के पश्चात् कंपनी को वैधानिक दायित्व प्राप्त हो जाता है जो उसके सदस्यों से पूर्णतः भिन्न होता है. कंपनी की सामान्य मुद्रा उसके स्वतन्त्र अस्तित्व की प्रतीक होती है तथा उसके सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा धारण किये गये अंशों तक ही सीमित होता है |

निगमन के प्रमाण-पत्र का प्रभाव

निगमन के प्रमाण-पत्र का प्रभाव निगमन का प्रमाण-पत्र इस बात का निश्चायक साक्ष्य होता है कि कंपनी अधिनियम की सभी अपेक्षाओं का अनुपालन किया जा चुका है और पंजीकरण के बारे में प्रत्येक औपचारिकता पूरी कर दी गई है, और कंपनी विधि निगमित की गई है. (धारा-35) रजिस्ट्रार द्वारा कंपनी के निगमन का प्रमाण नियमित कर दिये जाने पर तब प्रमाण पत्र की वैधता को किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है |

पूर्व निगमन संविदायें क्या है?

पूर्व निगमन संविदायें निगमन के पूर्व की संविदाओं से ऐसी संविदायें अभिप्रेत हैं जिसे कंपनी की ओर से निगमन के पूर्व किया गया है. कंपनी उन संविदाओं के लिये बाध्य नहीं है जो उसके लिये और उसकी ओर से उसके निगमन के पूर्व प्रवर्तकों द्वारा की गयी है. संविदा किये जाते समय कंपनी निगमित नहीं थी तथा कंपनी को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त नहीं था अतः कंपनी ऐसी संविदाओं के लिये दायी नहीं है और कंपनी भी ऐसी संविदाओं को प्रवर्तित कराने के लिये वाद नहीं ला सकती है.

ऐसी संविदाओं का कंपनी द्वारा अनुसमर्थन भी नहीं किया जा सकता है. लेकिन निगमन के बाद कंपनी अन्य पक्षकारों के साथ, संविदा करके निगमन के पूर्व की संविदाओं को मान्य कर सकती है. विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 15 (ज) के अनुसार कंपनी अपने निगमन के बाद निगमन के पूर्व की गयी संविदा को स्वीकार करने के लिये पूर्णतः सक्षम है और उसके द्वारा ऐसी संविदाओं का अनुसमर्थन किया जा सकता है |

Leave a Comment