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मेहर का अर्थ
मुस्लिम विधि के अनुसार, जब मुसलमान स्त्री का विवाह किसी मुसलमान पुरुष के साथ सम्पन्न होता है तो पति अपनी पत्नी को कुछ धनराशि देने का वचन देता है. धनराशि देने की शर्त निकाह के साथ ही घोषित कर दी जाती है और यदि निकाहनामा लिखित रूप में हुआ हो तो दस्तावेज में इस धनराशि का उल्लेख रहता है. इस धनराशि को मेहर कहते हैं |
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मेहर की परिभाषा
विभिन्न विधिशास्त्रियों के अनुसार, मेहर की परिभाषा निम्नलिखित हैं-
D. F. मुल्ला अनुसार, “मेहर वह धनराशि या अन्य सम्पत्ति है जिसे पत्नी अपने पति से विवाह के प्रतिकर के रूप में पाने की हकदार होती है”
हेदाया के अनुसार, “विवाह में मेहर के भुगतान की विधिक आवश्यकता केवल स्त्री के प्रति आदर के प्रतीक के रूप में हैं. विवाह की वैधता के लिये इसका उल्लेख करना अनिवार्य नहीं है”
मुस्लिम विधि के अनुसार, “मेहर विवाह का एक अनिवार्य अंग है और अब परिस्थिति यह है कि प्रत्येक मुस्लिम विवाह में मेहर में दी जाने वाली धनराशि या सम्पत्ति की बात विद्यमान रहती हैं. मेहर और विवाह में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि यदि किसी विवाह संविदा में मेहर की चर्चा न की गई हो तो भी कानून अनुमान कर लेता है कि इसमें कुछ धनराशि या सम्पत्ति मेहर के रूप में पति द्वारा पत्नी को दिये जाने का वचन दिया गया है और इस अनिश्चित मेहर का निर्धारण आवश्यकता पड़ने पर कुछ विशिष्ट सिद्धान्तों के अनुसार किया जाता है”
मुस्लिम विधि के एक प्रतिष्ठित लेखक श्री बेली के अनुसार, “मेहर पति पर पत्नी के सम्मान के प्रतीक के रूप में आरोपित दायित्व है”
मेहर के प्रकार
मेहर दो प्रकार का होता है-
- निश्चित मेहर, तथा
- अनिश्चित मेहर |
1. निश्चित मेहर
निश्चिद मेहर या (मेहर-ई-मुसया) को अलमेहरुल मुसम्मा कहते हैं. यदि विवाह संविदा में मेहर की धनराशि (या संपत्ति) का उल्लेख हो तो वह निश्चित मेहर होता है. पति मेहर के रूप में पत्नी के लिये कितनी भी धनराशि को व्यवस्था कर सकता है, चाहे वह उसकी शक्ति से परे हो या उसके भुगतान के बाद उनके वारिसों के लिये कुछ न बचे.
परन्तु इनकी विधि में वह किसी हालत में दस दिरहम (40 रुपये के से कम और गतिकी विधि के अनुसार तीन दिरहम में कम नियत नहीं कर सकता. ऐसे मुसलमान पतियों के लिये जो बहुत गरीब हों और पत्नी को दस दिरहम का मेहर न दे सकें, पैगम्बर का निर्देश है कि वे मेहर के एवज में अपनी पत्नी को कुरान की शिक्षा दें.
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निश्चित मेहर के दो प्रकार के होते हैं-
- तत्काल देय मेहर या (मुअज्जल) मेहर
- विलम्बित मेहर या (मुवञ्चल) मेहर
1. तत्काल देय मेहर या मुअज्जल मेहर
यह मेहर तुरन्त देय होता है. मेहर की यह धनराशि विवाह के समय नकद दी जाती है. विधिशास्त्रियों का मत है कि यह नकद मैहर समागम के पूर्व या समागम के उपरान्त किसी समय भी मांगा जा सकता है. पति को समागम का अधिकार मेहर दिये जाने के बाद उदित होता है.
2. विलंबित मेहर या मुबज्जल मेहर
यह मेहर विवाह विच्छेद के समय दिया जाता है अथवा किसी निश्चित घटना के होने की दशा में, यदि ऐसा करार है तो विवाह के समय यदि यह निश्चित नहीं किया गया है कि मेहर का कितना भाग “तत्काल देय” है. कितना” विलम्बित” तो शिवा विधि के अनुसार यह माना जायेगा कि सम्पूर्ण मेहर तत्काल देय है. सुत्री विधि के अन्तर्गत ऐसी स्थिति में आधा मेहर तत्काल देय होता है और आधा विलम्बित, जब तक कि पत्नी के पिता के परिवार के रस्म रिवाज इसके प्रतिकूल न हों.
2. अनिश्चित मेहर
इसे अनिर्धारित मेहर या उचित मेहर या रूढ़ियत मेहर या मेहर-ई-मिस्ल भी कहा जाता है. यदि मेहर की राशि निश्चित न हो तो पत्नी अनिर्धारित या उचित मेहर (मेहर-इ-मिस्ल) को अधिकारिणी होती हैं, चाहे विवाह की संविदा इस शर्त पर ही की गई हो कि पत्नी किसी मेहर का दावा नहीं करेगी। उचित मेहर की अवधारणा उसके पिता के खानदान की अन्य स्त्रियों, यथा पिता की बहनों के लिये निश्चित किये गये मेहर को ध्यान में रखते हुये जायेगा। शिया विधि के अन्तर्गत उचित मेहर 500 दिरहम से अधिक नहीं हो सकती। उचित मेहर पत्नी के समकक्ष का मेहर है। स्त्री के लिये कौन सो धनराशि उपयुक्त होगी, यह निश्चित करना न्यायालय के विवेक पर निर्भर हैं.
तत्काल देय मेहर और विलम्बित मेहर के बीच अंतर?
- इसका भुगतान विवाह के समय ही होता है, जबकि विलम्बित मेहर में विवाह विच्छेद के समय देय नगद किया जाता है.
- इसके भुगतान के साथ ही पति को पत्नी के साथ समागम का अधिकार प्राप्त होता है, जबकि विलम्बित मेहर में कोई सम्बन्ध पत्नी के साथ समागम के अधिकार से नहीं होता है.
- ऐसा मेहर स्त्री द्वारा समागम के पूर्व अथवा समागम के उपरान्त कभी भी मांगा जा सकता है, जबकि विलम्बित मेहर में देयता का प्रश्न तभी उठता है जब वैवाहिक सम्बन्ध मृत्यु अथवा तलाक द्वारा समाप्त हो जाते हैं. तथा स्त्री अकेली होती है एवं उसका सम्बन्ध पति से विच्छिन्न हो जाता है.
- विवाह के अस्तित्व का इस प्रकार के देयता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि विलम्बित मेहर में विवाह सम्बन्ध समापन ही इस प्रकार मेहर की के मेहर की देयता का जन्म होता है |
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क्या मेहर ऋण है?
मेहर की अनुबन्धित धनराशि, पति पर एक प्रकार का ऋण माना जाता है और पत्नी उसको उसी प्रकार वसूल कर सकती है जिस प्रकार कोई अन्य ऋण जब तक पति तत्काल देय मेहर की धनराशि पत्नी को न दे दे तब तक तो पत्नी अपने पति से सहवास से इन्कार कर सकती है और यदि तलाक के समय पति-पत्नी को विलम्बित मेहर न दे तो पत्नी पति की संपत्ति से कथित राशि वसूल सकती है.
पत्नी की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी भी इसे उसी तरह वसूल सकते हैं जिस प्रकार उसकी सम्पत्ति से कोई ऋण वसूल किया जा सकता है. विधवा के कब्जे की संपत्ति मेहर की अदायगी करने के बाद ही उत्तराधिकारी प्राप्त कर सकते हैं. यदि पत्नी के कब्जे में मृतक की सम्मति नहीं है और उत्तराधिकारियों के कब्जे में है तो प्रत्येक उत्तराधिकारी अपने हिस्से के अनुसार मेहर देने का उत्तरदायी होगा |
क्या मेहर पत्नी द्वारा छोड़ा जा सकता है?
पति विवाह के पश्चात् किसी भी समय मेहर में वृद्धि कर सकता है, उसी तरह पत्नी पूर्ण मेहर को छोड़ या अंशतः कम कर सकती है. यद्यपि यह छूट बिना प्रतिकर के होती है परन्तु छूट पत्नी की स्वतंत्र सहमति से होनी अनिवार्य है. यदि किसी पत्नी ने पति की मृत्यु के बाद मानसिक परेशानी में मेहर में छूट दिया है तो यह छूट स्वतन्त्र सहमतिपूर्वक नहीं मानी जायेगी और उस पर बाध्यकारी भी न होगी। एक अवयस्क पत्नी मेहर से छूट नहीं कर सकती है.
परन्तु यदि वह मुस्लिम विधि के अनुसार वयस्क हो जाती है तो वह मेहर में छूट कर सकती है चाहे वह भारतीय वयस्कता अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष की उम्र की न भी हो। मेहर तय करने में यह शर्त कि पत्नी मेहर में छूट बिना सम्बन्धियों की राय के नहीं कर सकती है, मान्य है |