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कपट का अर्थ
कपट का मतलब होता है “किसी के इरादे में छल या धोखा देना”. इसका अर्थ होता है कि “कोई व्यक्ति या पक्ष किसी अन्य व्यक्ति या पक्ष के साथ किसी समझौते या अनुबंध के तहत छल करता है”.
कपट के मामले में, यह साबित करना महत्वपूर्ण हो सकता है कि किसी व्यक्ति या पक्ष ने बुरी नीयत से या छल के साथ किसी समझौते को उल्लंघन किया है, और इस प्रकार के मामलों में कानूनी करवाई हो सकती है |
कपट की परिभाषा
स्वतंत्र सम्मति को दूषित करने वाला तीसरा तत्व कपट है. हम इसको सीधी-सादी परिभाषा इस प्रकार दे सकते हैं “किसी व्यक्ति को प्रवंचना (Deceive) कारित करने के आश्य से, किसी सत्य बात को छिपाते हुए, उससे अनुचित फायदा अभिप्राय करना ही कपट है.”
डेरी बनाम पीक के मामले में न्यायमूर्ति हेनेल ने कपट की परिभाषा देते हुए कहा है “जब कोई व्यक्ति किसी बात के सत्य होने का कथन करता है, जिसके सत्य होने के बारे में उसका विश्वास नहीं है या ऐसा विश्वास करने का उसके पास कोई युक्तियुक्त आधार नहीं है और ऐसे कथन से उत्प्रेरित होकर कोई अन्य व्यक्ति ऐसा कोई कार्य कर लेता है जिससे उसे क्षति कारित होती है तो वह क्षतिग्रस्त व्यक्ति प्रवंचना के लिए वाद लाने का हकदार हो जाता है.”
नोट: शब्द प्रवंचना (Deceive) का अर्थ होता है, ठगना; धोखा देना; बहकाना; झूठ बोलना; छल करना. इस शब्द का प्रयोग आगे हम भी करेंगे इसलिए जानना जरूरी है.
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 17 में भी ऐसी ही परिभाषा दी गई है. इसके अनुसार-
“किसी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को प्रवंचना कारित करने अथवा उसे संविदा करने के लिए उत्प्रेरित करने के आशय से;
ऐसी किसी बात के सत्य होने का कथन किया जाना जो सत्य नहीं है या जिसके सत्य होने का उसे विश्वास नहीं है या
किसी तथ्य का सक्रिय रूप से छिपाया जाना या पालन करने के आशय के बिना कोई वचन दिया जाना; या प्रवंचना-योग्य अन्य कोई कार्य किया जाना या विधित घोषित कपटपूर्ण किसी कार्य या लोप का किया जाना ‘कपट’ है”.
उदाहरण के लिए, ‘क’ अपनी एक भूमि का विक्रय ‘ग’ को करता है. ‘क’ इस तथ्य को छिपाते हुए उस भूमि का विक्रय करने की एक संविदा ‘ख’ के साथ कर लेता है. सक्रिय छिपाव के कारण यह कपट है |
कपट के आवश्यक तत्व
कपट की उपर्युक्त परिभाषा से इसके निम्नांकित आवश्यक तत्व स्पष्ट होते हैं-
1. प्रवंचना करने अथवा संविदा करने के लिए उत्प्रेरित करने का आशय
कपट का प्रथम आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तत्व है; प्रवंचना अर्थात् धोखा देने का आशय. ऐसे आशय के अभाव में कोई कार्य अथवा निरूपण कपट की परिभाषा में नहीं आता.
2. तथ्यों का मिथ्या व्यपदेशन
तथ्यों का मिथ्या व्यपदेशन कपट का दूसरा तत्व है. ऐसे तथ्य का निरूपण जो सत्य नहीं है; या जिसके सत्य होने का विश्वास करने का कोई युक्तियुक्त आधार नहीं है, मिथ्यापदेशन (Misrepresentation) कहलाता है.
उदाहरण के लिए, यदि बीमा पॉलिसी को प्राप्त करने अथवा प्रतिभूति करने के लिए बीमाकृत व्यक्ति जान-बूझकर किन्हीं प्रश्नों का असत्य उत्तर देता है तो वह कपट करता है.
इस प्रकार कपट के गठन के लिए यह आवश्यक है कि कथन करने वाला व्यक्ति उस कथन के मिथ्या होने की जानकारी रखता हो अथवा उसके बारे में सचेत हो.
3. किसी तथ्य का सक्रिय छिपाव
किसी तथ्य को जानबूझकर अथवा विचारपूर्वक छिपाया जाना भी कपट का एक तत्व है. लेकिन किसी विद्यमान तथ्य को प्रकट करने में लोप करना मात्र कपट के आधार पर कार्यवाही करने का आधार नहीं हो सकता.
4. पालन के आशय के बिना दिया गया कोई वचन
ऐसा कोई वचन जिसका पालन करने का वचनदाता का आशय नहीं हो, कपट होता है. लेकिन इसके लिए वचनग्रहीता को यह साबित करना होता है कि संविदा करने के समय ही वचनदाता का आशय वचन का पालन करने का नहीं था.
जहां कोई पुरुष किसी स्त्री से इस आशय से विवाह करता है कि वह उसका वास्तविक विवाह नहीं होगा; वहां यह अभिनिर्धारित किया गया कि उस स्त्री की सम्मति कपट से अभिप्राप्त की गयी थी.
5. प्रवंचना योग्य अन्य कोई कार्य
प्रवंचना कारित करने के आशय से किया गया कोई अन्य कार्य भी कपट हो सकता है.
उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपने आपको कोई अन्य व्यक्ति होने का मिथ्या प्रतिरूपण करते हुए किसी दूसरे व्यक्ति को कोई संविदा करने के लिए उत्प्रेरित करता है. वह कपट का दोषी है |
कपट से संबंधित महत्वपूर्ण वाद
विमला बाई बनाम शंकर लाल, AIR 1959 मध्य प्रदेश 8 का मामला; इसमें वर के पिता ने वर की, जो वस्तुत: उसका जारज पुत्र था, अपना पुत्र होना निरूपित किया. यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह कपट का दोषी था.
स्मिथ बनाम हयूज, LR 6 QB 605 का मामला; इसमें यह अभिनिर्धारित किया गया कि जहां विक्रेता पर विक्रय सम्बन्धी प्रत्येक बात को प्रकट करने का विधिक दायित्व हो, वहां उसका मौन रहना कपट माना जायेगा.
उपेक्षा कपट नहीं है परन्तु यह कपट का साक्ष्य हो सकती है (राम प्रीति यादव बनाम UP बोर्ड आफ हाईस्कूल एण्ड इण्टरमीडिएट एजूकेशन, AIR 2003 SC 4268; भाऊराम ड्रागदू परालकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, AIR 2005 SC 3330) |