बोनस की परिभाषा
बोनस शब्द को बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है. सामान्य अर्थ में बोनस से तात्पर्य है जिस संस्था में कर्मचारियों ने काम किया है उसके लाभ में श्रमिकों द्वारा हिस्सा लेना बोनस कहलाता है.
आक्सफोर्ड शब्दकोश में बोनस शब्द को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है- “अभिलाभ में कल्यणकारी वस्तु अर्थात् श्रमिकों को उनकी मजदूरी के अलावा उपहार”.
न्यू इंग्लिश डिक्शनरी ‘बोनस’ शब्द को निम्न प्रकार परिभाषित करती है- “आमतौर पर प्राप्तकर्ता द्वारा पारिश्रमिक के रूप में साधारणतया देय (ड्यू) होता है उससे भी अधिक यह भेंट या पुरस्कार है और यह पूर्णतया भलाई के लिए होता है”.
वर्तमान समय में बोनस को उत्पादन की श्रेणी से अलग करके यह स्वीकार कर लिया गया है कि नियोजक के अधिशेष लाभों में से कर्मचारियों को बोनस पाने का विधिक अधिकार है.
K. S. बालान एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य, [(1981) 1 A.L.J. 111 (केरल)] के मामले में यह अभिनिर्णीत किया गया है कि बोनस भुगतान अधिनियम 1965 के पारित होने के पश्चात् अनुग्रह बोनस की विधिक दृष्टि से कोई मान्यता नहीं है. केरल उच्च न्यायालय ने उच्च वेतन प्राप्त कर्मचारियों की इस बात को भी मानने से इन्कार कर दिया कि काफी लम्बी अवधि से चली आ रही इस प्रक्रिया से सेवा शर्तों की एक विवक्षित शर्त बन गयी है.
वहीं, मिल ओनर्स एसोसिएशन बनाम राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ, [(1952) L.L.T. 423] के वाद में श्रम अपीलीय अधिकरण ने यह अवधारणा प्रस्तुत की है कि बोनस को अनुग्रह भुगतान नहीं कहा जा सकेगा |
बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के उद्देश्य
बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के निम्नलिखित उद्देश्य है-
- बोनस का भुगतान करना एवं इससे संबंधित विषयों में समुचित प्रावधान करना.
- बोनस भुगतान को प्रभावशाली और कारगर बनाने के लिए समुचित मशीनरी की स्थापना करना.
- बोनस भुगतान से संबंधित सिद्धान्त को परिभाषित करना.
बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 में यह प्रावधान किया गया है कि जिस कर्मकार ने स्थापना में कम से कम 30 दिन तक कार्य कर लिया है वह बोनस का दावा करने के लिए अधिकृत होगा. इसके अतिरिक्त यदि किसी कर्मचारी को अवचार का दोषी पाया जाता है. जिससे नियोजक को हानि हुई हो तो नियोजक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह उस लेखा वर्ष के लिए बोनस में से उस धनराशि को काट ले.
समुचित सरकार बोनस भुगतान अधिनियम के प्रयोजनों के लिए समुचित सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निरीक्षक नियुक्त कर सकती है. यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम द्वारा बनाये गये नियमों की अवहेलना अथवा उपेक्षा करता है तो वह 6 माह के कारावास या एक हजार रुपये तक के आर्थिक दण्ड या दोनों से दण्डनीय होगा.
इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी जहां बोनस भुगतान (संशोधन) अधिनियम, 1970 के प्रारम्भ से पूर्व जिन कर्मचारियों ने अपने नियोजकों के साथ कोई ऐसा करार या समझौता किया है जो इस अधिनियम के अधीन देव लाभों पर आधारित बोनस के बदले में उत्पादन या उत्पादकता से सम्बद्ध किसी वार्षिक बोनस के भुगतान के लिए है, तो उन कर्मचारियों को करार या समझौते के अधीन बोनस प्राप्त होगा.
बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 अधिकार स्वरूप बोनस प्रदान करने के संदर्भ में एक पूर्ण संहिता है लेकिन उपचार प्रदान करने के सन्दर्भ में इस अवधारणा को दोहराना श्रेयस्कर नहीं है.
रेमिंगटन रैण्ड ऑफ इण्डिया बनाम कर्मकारगण, AIR 1970 SC 1421 में उच्चतम न्यायालय ने इस वाद में यह अवधारणा अभिव्यक्त किया है कि बोनस भुगतान अधिनियम 1965 के उपबन्धों को अधिनियम के पारित होने के पूर्व की तिथि से लागू नहीं किया जा सकता है.
इस मामले में 1963-64 वर्ष के बोनस की मांग की गई थी. न्यायालय ने यह कहा कि बोनस भुगतान अधिनियम 1963-64 की पूर्व तिथि पर लागू नहीं किया जा सकेगा, यद्यपि उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकृत पूर्णपीठ फार्मूले के आधार पर बोनस की संगणना कर कर्मकारों को बोनस राशि की अदायगी की जा सकती है |
भुगतान की समय सीमा
बोनस भुगतान अधिनियम की धारा 19 के अनुसार, जो भी रकम बोनस के रूप में एक कर्मचारी को देय है वह नकद रूप में नियोजक द्वारा लेखा-वर्ष की समाप्ति के 8 मास की अवधि के अन्दर भुगतान की जायगी. किन्तु जहां बोनस भुगतान सम्बन्धी विवाद किसी अधिकारी के सम्मुख विचाराधीन है तो उसका पंचाट (Award) जब लागू हो सकता है ऐसे विवाद के सम्बन्ध में जब निपटारा प्रवर्तन (Operation) में लागू हो, उस तारीख से एक मास के अन्दर भुगतान किया जाना चाहिये.
उपबन्ध यह कि यथोचित सरकार अथवा ऐसा अन्य प्राधिकारी, जैसा कि यथोचित सरकार इस आशय से निर्दिष्ट कर दे. नियोजक द्वारा प्रार्थनापत्र दिये जाने पर पर्याप्त कारणों पर, आदेश द्वारा 8 माह की अवधि की ऐसी अवधि के लिये बढ़ा सकता है जो उसे उचित प्रतीत हो. किन्तु इस प्रकार से बढ़ाई गई अवधि कुल दो वर्ष से अधिक न होगी |