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भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 299 एवं धारा 300 दोनों ही व्यक्ति की जीवन लीला समाप्त करने वाले कार्यों को दण्डित करती हैं. दोनों को लागू की जाने वाली शर्तें लगभग समान हैं, अतः दोनों के बीच अन्तर बहुत ही सूक्ष्म है. लेकिन फिर भी उसे वास्तविक कहा जा सकता है.
किशोरी सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य [(1954) 4 SCC 524] के वाद में न्यायाधीश गोस्वामी ने कहा कि सदोष मानव वध व हत्या के बीच बहुत बारीक अन्तर है, अतः किसी व्यक्ति को हत्या के लिए उत्तरदायी ठहराये जाने से पहले यह देख लेना चाहिये कि अभियोजन ने अभियुक्त के खिलाफ धारा 300 के प्रथम चार खण्डों में से किसी एक के अन्तर्गत साबित कर दिया है अथवा नहीं.
वहीं, R. बनाम गोविन्दा [ (1876) 1 बम्बई 342] के प्रसिद्ध मामले में सदोष मानव वध और हत्या में अन्तर स्पष्ट किया गया है. सदोष मानव वध व हत्या में न्यायाधीश मेलविल ने बहुत ही स्पष्ट अन्तर किया है जो आज भी न्यायालयों के लिए पथप्रदर्शक का कार्य करता है.
उक्त वाद में अभियुक्त ने अपनी पत्नी को नीचे गिरा दिया और उसकी छाती पर घुटना रखकर बन्द मुक्के से उसके चेहरे पर हिंसात्मक प्रहार किये, जिससे उसके दिमाग में खून जम जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी खण्डपीठ में दोनों न्यायाधीशों में मतभेद हो जाने से मामला तीसरे न्यायाधीश के पास गया तो न्यायाधीश मेलविल ने यह निर्धारित किया चूँकि न तो अभियुक्त का आशय मृत्यु कारित करना था और न हो क्षति न्यायाधीश मेलविल का मत था कि अभियुक्त का अपनी पत्नी को मार देने का आशय नहीं था और न हो उसके द्वारा पहुँचायी गयी चोटें प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में ऐसी थीं कि उनसे मृत्यु कारित हो जाना सम्भव न हो. धारा 299 व धारा 300 में अन्तर स्थापित करते हुए उन्होंने कहा;
सदोष मानव वध एवं हत्या के बीच अन्तर?
1. सदोष मानव वध
कोई व्यक्ति मानव वध करता है जब वह कार्य जिससे मृत्यु कारित की गयी है-
- मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो,
- ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया कार्य जिससे मृत्यु होना सम्भव हो,
- इस ज्ञान से किया गया हो कि उस कार्य से मृत्यु हो जाने की सम्भावना है.
2. हत्या
हत्या में IPC धारा 300 में वर्णित अपवादों को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है यदि वह कार्य जिससे मृत्यु कारित की गई है-
- मृत्यु करने के आशय से किया गया हो,
- ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो जिससे अभियुक्त जानता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु होना सम्भव है जिसको क्षति पहुँचायी गयी हो,
- किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसको पहुँचाने का आशय हो, प्रकृति के सामान्य अनुक्रम में मृत्यु करने के लिए पर्याप्त हो.
- इस ज्ञान से किया गया हो कि कार्य आसन्न संकट से इतना परिपूर्ण है कि हर अधिसम्भावना के अंतर्गत उस कार्य से मृत्यु हो जायेगी या वह ऐसी शारीरिक क्षति पहुँचा ही देगा जिससे मृत्यु हो जाना सम्भव हो |