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परिवीक्षा का अर्थ
परिवीक्षा का अर्थ होता है एक विश्लेषण या मूल्यांकन का प्रक्रिया. इसे आमतौर पर किसी विषय, घटना, उत्पाद, सेवा, योजना या किसी अन्य प्रभावकारी पदार्थ के गुण, फायदे, दुष्प्रभाव, कार्यप्रणाली, प्रदर्शन, संगठन, नियम और अन्य पहलुओं की मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है. यह विशेष रूप से निर्णय लेने, सुधार करने और निर्धारण करने के लिए महत्वपूर्ण होता है.
परिवीक्षा के द्वारा एक विषय की गुणवत्ता, प्रदर्शन, प्रभाव, अस्तित्व और प्रभावीता की मान्यता या अनुमान लगाई जाती है. परिवीक्षा विभिन्न मापदंडों, मानकों और मान्यताओं के आधार पर की जा सकती है. इसका उद्देश्य विश्लेषण के माध्यम से ज्ञान, सूचना और समझ को बढ़ाना होता है ताकि सही निर्णय लिया जा सके और संगठन, व्यक्ति या विषय को सुधारा जा सके |
परिवीक्षा क्या है?
प्रोबेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द (Probate) से हुई है जिसका अर्थ है ‘परीक्षण करना’. वस्तुतः परिवीक्षा के अन्तर्गत अपराधी के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए उसे सुधरने का अवसर प्रदान किया जाता है. दूसरे शब्दों में परिवीक्षा के अन्तर्गत अपराधी की सजा को उसके सदाचरण के आश्वासन पर स्थगित किया जाता है. यदि अपराधी परिवीक्षा काल में अपराध की पुनरावृत्ति करता है तो पुनः दण्ड का भागी बन जाता है.
इलियट के अनुसार, अपराधी को उसके सदाचार के आश्वासन के आधार पर न्यायालय द्वारा दण्ड से मुक्ति प्रदान किया जाना ही परिवीक्षा कहलाता है.
दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 360 एवं 361 में इस सम्बन्ध में आवश्यक व्यवस्था की गई है.
वे मामले, जिनमें परिवीक्षा का लाभ दिया जा सकता है-
निम्नांकित मामलों एवं अवस्थाओं में अपराधी को सदाचार बनाये रखने के आशय का प्रतिभूति सहित या रहित वन्धपत्र निष्पादित किये जाने पर परिवीक्षा पर छोड़े जाने का आदेश पारित किया जा सकता है-
- जब कारित अपराध केवल जुर्माने या 7 वर्ष या उससे कम अवधि के कारावास से दण्डनीय हो अथवा अभियुक्त की आयु इक्कीस वर्ष से अधिक हो,
- जब कारित अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं हो और अभियुक्त की आयु 21 वर्ष से कम हो, एवं
- ऐसे अभियुक्त के विरुद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि साबित नहीं की गई हो.
परिवीक्षा की शर्तें
परिवीक्षा का आदेश निम्नांकित शर्तों के अन्तर्गत दिया जायेगा-
- अभियुक्त न्यायालय द्वारा बुलाये जाने पर उपस्थित होगा, एवं दण्डादेश पायेगा,
- अभ्यन्तर काल में वह परिशान्ति कायम रखेगा और सदाचारी बना रखेगा.
परिवीक्षा की अवधि
सदाचार की परिवीक्षा की यह अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी.
परिवीक्षा का आदेश देने के लिए सक्षम मजिस्ट्रेट
परिवीक्षा का आदेश केवल प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ही दिया जा सकता है, द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा नहीं. यदि द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट की किसी मामले में परिवीक्षा का लाभ देने की राय हो तो वह मामले को अपनी राय के साथ प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को निवेदित करेगा.
जब ऐसा कोई मामला प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को निवेदित किया जाता है तो वह मजिस्ट्रेट-
- ऐसा कोई दण्डादेश या आदेश दे सकेगा, जैसा यदि मामला मूलतः उसके द्वारा सुना जाता तो वह दे सकता था,
- आवश्यकता होने पर वह अतिरिक्त जाँच कर सकेगा अथवा साक्ष्य ले सकेगा, अथवा
- ऐसी जाँच किये जाने पर साक्ष्य लिये जाने का निर्देश दे सकेगा.
इस प्रकार इस धारा के अधीन परिवीक्षा का लाभ दिया जाना आज्ञापक (Mandatory) है, यदि –
- अपराध 21 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा कारित किया जाता है, एवं आयु के सम्बन्ध में विद्यालय के
- प्रवेश-रजिस्टर की प्रविष्टि को विश्वसनीय माना जा सकता है;
- कारित अपराध 7 वर्ष या इससे कम अवधि के कारावास से अथवा केवल जुर्माने से दण्डनीय है.
इसी प्रकार भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 323 के अन्तर्गत दोषसिद्धि की दशा में अभियुक्त को जेल में भेजने की बजाय उसे परिवीक्षा का लाभ देना न्याय की मंशा के अनुरूप है.
परिवीक्षा की शर्तों की अवहेलना किये जाने पर प्रक्रिया
परिवीक्षा पर छोड़ा गया अभियुक्त यदि मुचलके की शर्तों का पालन करने में असफल रहता है तो उसे गिरफ्तार करने के लिए वारण्ट जारी किया जा सकेगा.
भर्त्सना पर छोड़ने का आदेश
जब कोई व्यक्ति चोरी, बेईमानीपूर्ण, दुर्विनियोग, छल या भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दो वर्ष से अनधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए या जुर्माने से दण्डनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाये और उसके विरुद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि साबित नहीं की गई हो तो वह न्यायालय उस अपराधी की आयु, शील, पूर्ववृत्त (Antecedents), शारीरिक या मानसिक दशा एवं अपराध की तुच्छ प्रकृति को ध्यान में रखते हुए उसे कोई दण्डादेश देने के बजाय सम्यक् भर्त्सना (Admonition) पर छोड़ सकेगा.
इस धारा के अन्तर्गत कोई आदेश अपीलीय न्यायालय या पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहे उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी दिया जा सकेगा.
अपील या पुनरीक्षण के दौरान उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ऐसे आदेश को अपास्त (Set Aside) कर सकेगा और ऐसे अपराधी को विधि के अनुसार दण्डादेश दे सकेगा. परिवीक्षा आदि का लाभ नहीं दिये जाने पर कारणों का अभिलिखित किया जाना कोई न्यायालय किसी मामले का निपटारा निम्नलिखित के अधीन करने में समर्थ होते हुए भी यदि ऐसा नहीं करता है तो वह ऐसा नहीं करने के अपने विशेष कारणों को निर्णय में अभिलिखित करेगा |
परिवीक्षा और पैरोल में अंतर
परिवीक्षा (Probation) और पैरोल (Parole) दोनों ही न्यायिक प्रक्रियाएं हैं, जो दोषियों को जेल की सजा से रिहा करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. हालांकि, ये दो प्रक्रियाएं अलग-अलग मायने रखती हैं.
परिवीक्षा (Probation)
परिवीक्षा एक सुरक्षा प्रावधान है जिसका उपयोग किसी दोषी के मामले में किया जाता है जब उसे सजा सुनाई जाती है, लेकिन उसे जेल में नहीं भेजा जाता है. इसके बजाय, दोषी को एक निर्धारित समय अवधि के लिए स्वतंत्रता दी जाती है, जिसमें उसे सामाजिक नियमों का पालन करना होता है और किसी परीक्षणात्मक समयांतर में रहना होता है. यदि दोषी इस समय अवधि के दौरान किसी अनुचित कार्यवाही का हिस्सा बनता है, तो उसे जेल भेजा जा सकता है और उसे उसकी पूरी सजा का सामना करना होगा. परिवीक्षा अक्सर कम गंभीर अपराधों के मामलों में दी जाती है और यह दोषी को दूसरे गंभीर अपराधों से बचाने का एक तरीका होता है.
पैरोल (Parole)
पैरोल एक प्रक्रिया है जिसमें एक जेल सजा काट रहे व्यक्ति को उसकी सजा के बाकी अवधि से पहले शर्तों के साथ स्वतंत्रता दी जाती है. यह एक मान्यता प्रक्रिया है जिसमें एक पैरोल बोर्ड या अन्य प्राधिकारिक संगठन द्वारा दोषी के मामले में निर्धारित शर्तों के साथ एक समय-बाधित छूट दी जाती है. ये शर्तें शामिल हो सकती हैं, जैसे सामाजिक सेवा, सीमित आवास, निरीक्षण या नियमित मुलाकातें. यदि दोषी इन शर्तों का पालन नहीं करता है, तो उसे पैरोल छूट रद्द की जा सकती है और उसे उसकी सजा का सामना करना होगा.
पैरोल आमतौर पर गंभीर अपराधों के मामलों में दी जाती है और यह उन दोषियों को आपातकालीन जेल से रिहा करने का एक तरीका होता है जिनकी आचरण शुद्धता को और सामाजिक पुनर्मिलन को सुनिश्चित किया जा सकता है |