Table of Contents
- 1 आईपीसी 149 क्या है?
- 2 धारा 149 के आवश्यक तत्व
- 3 1. पाँच या अधिक व्यक्ति
- 4 2. सामान्य उद्देश्य
- 5 3. विधि-विरुद्ध उद्देश्य
- 6 4. अपराध कार्य किया जाये
- 7 5. सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में कार्य किया जाये
- 8 6. अपराध किये जाने की सम्भावना का ज्ञान हो
- 9 सामान्य आशय तथा सामान्य उद्देश्य
- 10 सामान्य आशय एवं सामान्य उद्देश्य के बीच अन्तर
आईपीसी 149 क्या है?
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 149 संयुक्त अपराधियों के सम्बन्ध में उपबन्ध करती है. जब कभी कोई अपराध कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है तो उनमें से प्रत्येक का दायित्व निर्धारित करना कठिन कार्य है. संयुक्त दायित्व का सामान्य सिद्धान्त धारा 34 में उपबन्धित किया गया है. परन्तु विशेष परिस्थितियों में पाँच या पाँच से अधिक व्यक्तियों द्वारा किये गये अपराध को धारा 149 के अन्तर्गत दण्डनीय बनाया गया है.
IPC की धारा 149 क्या है? धारा 149 के अनुसार, “यदि विधि-विरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है या कोई ऐसा अपराध किया जाता है जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य उस उद्देश्य को अग्रसर करने में सम्भाव्य जानते थे तो हर व्यक्ति, जो अपराध के किये जाने के समय उस जमाव का सदस्य है, उस अपराध का दोषी होगा।”
आईपीसी की धारा 149 क्या है? सरल शब्दों में, अगर तीन या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह साझा इरादे के साथ किसी अपराध में शामिल होता है और उनका साझा इरादा अपराधी कार्रवाई को करने के लिए होता है, तो उन्हें भी उस अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता है.
इस धारा के तहत, अगर किसी समूह के सदस्यों ने साझा इरादा रखते हुए गैरकानूनी ढंग से संगठित होकर अपराध के किसी घटनाक्रम का हिस्सा बना लिया है, तो संघर्ष के समय वे लोग धारा 149 के तहत दोषी ठहराए जा सकते हैं, भले ही उनमें से कोई भी व्यक्ति अपराधी कार्रवाई में सीधे शामिल न हो.
यह धारा सामाजिक और सांप्रदायिक हिंसा और उपद्रव के मामलों में उपयोग होती है, जहां एक समूह के सदस्यों के बीच आपसी संघर्ष या हिंसा की स्थिति उत्पन्न होती है. यदि किसी अपराध के दौरान व्यक्ति के द्वारा किये गए अपराध को संघर्ष के तहत कराया जाता है, तो धारा 149 के तहत सभी समूह के सदस्यों को सजा का हिस्सा मिल सकता है.
यह धारा हिंसा और उपद्रव के मामलों में संगठित अपराधियों को नियंत्रित करने और समाज को सुरक्षित रखने के लिए है. यह धारा सामाजिक और न्यायिक न्याय व्यवस्था को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि धारा 149 किसी नये अपराध का सृजन नहीं करती है अपितु विधिविरुद्ध जमाव के सभी सदस्यों के प्रतिनिधिक दायित्व की घोषणा करती है |
धारा 149 के आवश्यक तत्व
1. पाँच या अधिक व्यक्ति
धारा 149 के लिए यह आवश्यक है कि जिन व्यक्तियों को इस धारा के अधीन उत्तरदायी ठहराया जा रहा है वे विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्य हों. विधि-विरुद्ध जमाव के लिए पाँच या अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है. पाँच से कम व्यक्तियों का जमाव विधि-विरुद्ध जमाव नहीं माना जा सकता.
कल्लू बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2006 799 SC) के बाद में विभिन्न औजारों से लैश सत्ताइस व्यक्तियों ने परिवादी पर हमला क्षति कारित करने के अपने सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने हेतु किया था. इनमें से केवल चार को दोषसिद्ध किया गया. उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि चार व्यक्तियों की दोष सिद्धि का यह अर्थ नहीं है कि कोई विधि विरुद्ध जमाव नहीं था. कई व्यक्तियों को दोष मुक्त का मात्र तथ्य दोषसिद्ध किये गये चार व्यक्तियों को यह प्रतिवाद करने का अवसर नहीं देता कि धारा 149 नहीं लागू होगी.
वहीं, मोहन सिंह बनाम पंजाब राज्य (AIR 1963 SC 174 ) के मामले में पाँच व्यक्तियों पर आरोप लगाया गया, पर विचारण के पश्चात् तीन अभियुक्तों को न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया और शेष बचे दो अभियुक्तों को धारा 149 के अन्तर्गत उत्तरदायी ठहराया गया. उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यदि शेष बचे व्यक्ति पाँच से कम हैं तो उन्हें विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य नहीं माना जा सकता.
2. सामान्य उद्देश्य
विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्यों द्वारा सामान्य उद्देश्य के लिए एकत्र होना आवश्यक है. यह धारा यह दर्शाती है कि अपराध विधि विरुद्ध जमाव के सामान्य उद्देश्य से सम्बन्धित तथा सभी उस जमाव के सदस्य थे. यह सामान्य उद्देश्य के अग्रसारण में कार्य नहीं होता है बल्कि सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति में कार्य होता है.
परन्तु सामान्य उद्देश्य के लिए यह कदापि आवश्यक नहीं है कि सभी व्यक्तियों में पहले आपस में सलाह-मशविरा किया गया हो अथवा योजना बनाई गई हो. धारा 149 के प्रयोजन के लिए उस स्थिति में सभी व्यक्तियों का सामान्य उद्देश्य समझ लिया जायेगा जब जमाव के सभी सदस्यों को उसके विधि विरुद्ध उद्देश्य की जानकारी हो तथा वे उसके लिए सहमत हो गये हों.
रमेश एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य, (2011) के वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि किसी भी विधि-विरुद्ध जमाव का सामान्य उद्देश्य का निष्कर्ष जमाव की प्रकृति, सदस्यों द्वारा धारित अस्त्रों और जमाव के घटना के समय एवं बाद के आचरण द्वारा निकाला जायेगा.
वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य बनाम दानसिंह (1997 Cr LJ 1150 SC) के मामले में एक अनुसूचित जाति के परिवार की एक बारात दूसरे गांव से गुजर रही थी तब वहाँ के लोगों ने सहरा को मन्दिर के चरणों में रखने को कहा. बारात द्वारा ऐसा मना करने पर कुछ लोगों ने बारात के लोगों से मारपीट की जिसमें कुछ मारे गये. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वे सब लोग भारतीय दण्ड संहिता की विभिन्न धाराओं के साथ धारा 149 के तहत अपराधी हैं.
3. विधि-विरुद्ध उद्देश्य
धारा 149 के लागू होने के लिये विधि-विरुद्ध जमाव का अस्तित्व में होना आवश्यक है. विधि-विरुद्ध जमाव की परिभाषा धारा 141 में दी गयी है जिससे स्पष्ट होता है कि व्यक्तियों का केवल वही जमाव विधि-विरुद्ध जमाव माना जायेगा जो धारा 141 में गिनाये गये उद्देश्यों के लिए एकत्र हुआ हो.
4. अपराध कार्य किया जाये
धारा 149 उसी समय लागू होगी जब विधि-विरुद्ध जमाव के सदस्यों द्वारा अपराध कार्य किया जाये. यह धारा मात्र विधि-विरुद्ध जमाव को दण्डनीय नहीं बनाती, बल्कि उससे आगे की स्थिति को दण्डनीय बनाती है. इस प्रकार धारा 149 के प्रयोजन के लिए अपराध की तैयारी अथवा प्रयत्नं पर्याप्त नहीं है. इसके लिए अपराध का वास्तविक निष्पादन किया जाना चाहिये.
महमूद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, (2008) इस मामले में न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यदि एक बार विधिविरुद्ध जमाव की सदस्यता साबित कर दी जाती है, तो अभियोजन पक्ष के लिए धारा 149 को सहायता से दायित्व के अधिरोपण हेतु अभियुक्तों में किसी पर कोई विनिर्दिष्ट प्रत्यक्ष कार्य साबित करना आवश्यक नहीं है. विधि-विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य द्वारा किसी प्रत्यक्ष कार्य को करना आवश्यक नहीं है.
5. सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में कार्य किया जाये
धारा 149 उन सभी व्यक्तियों को समान रूप से उत्तरदायी बनाती है जो सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में कोई अपराध कार्य करते हैं. लेकिन धारा के लागू होने के लिए यह कदापि आवश्यक नहीं कि विधि-विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य द्वारा अतिरिक्त कार्य किया जाये. इसके लिए मात्र इतना ही पर्याप्त है कि विधि-विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य ने सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में हिस्सा लिया हो. इस प्रकार यह धारा विधि-विरुद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य को जमाव द्वारा किये गये सभी कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराती यह केवल उन कार्यों के लिए ही उत्तरदायी बनाती है जो सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किये गये हैं.
महाराष्ट्र राज्य बनाम कारी साव एवं अन्य (AIR 2003 SC 3901) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 में प्रयुक्त शब्द “सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में” का वास्तविक अर्थ ‘सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के उद्देश्य’ से लगाया जाता है.
6. अपराध किये जाने की सम्भावना का ज्ञान हो
धारा 149 दो परिस्थितियों में व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहराती है-
- प्रथम, यदि अपराध कार्य सबके सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में किया जाता है, तथा
- दूसरा, यदि सब का सामान्य उद्देश्य भिन्न कार्य करने का था लेकिन उस कार्य के किए जाने की सम्भावना या ज्ञान जमाव के सदस्यों को था तो भी वे समान रूप से उत्तरदायी होंगे.
साधारण शब्दों में, सामान्य उद्देश्य से हटकर अपराध कार्य किये जाने पर भी सदस्य समान रूप से उत्तरदायी ठहराये जा सकेंगे, यदि उस अपराध कार्य के किये जाने की सम्भावना थी अथवा किये जाने का ज्ञान सदस्यों को था.
दया किशन बनाम हरियाणा राज्य, (AIR 2010 SC 2147) इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि विधिविरुद्ध जमाव के एक सदस्य द्वारा अपराध कारित किया गया था. यद्यपि कि वह सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में कारित नहीं था. तथापि यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के द्वितीय भाग के अन्तर्गत आ सकता है. न्यायालय ने कहा कि अपराध ऐसा था जिसे सदस्यगण जानते थे कि उसे कारित होने की संभावना है. “जानते हैं” पदावली का अर्थ मात्र सम्भावना नहीं होता है जैसे कि घट सकता है या नहीं घट सकता है |
सामान्य आशय तथा सामान्य उद्देश्य
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 के अनुसार, यदि विधि-विरुद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा उस जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में अपराध किया जाता है या ऐसा आशय किया जाता है जिसका किया जाना उस जमाव के सदस्य सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में सम्भावित मानते थे तो प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के समय जमाव का सदस्य है उस अपराध के लिए उत्तरदायी होगा. इस प्रकार धाराएं 34 तथा धारा 149 दोनों ही संयुक्त अपराधियों के सम्बन्ध में उपबन्ध करती हैं. ऊपरी तौर पर दोनों धाराओं में काफी समानता लगती है. परन्तु वास्तव में ‘सामान्य आशय’ का सिद्धान्त ‘सामान्य उद्देश्य’ से काफी भिन्न है.
विरेन्द्र सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2011) के मामले में न्यायालय द्वारा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 34 और धारा 149 के मध्य विभेद को स्पष्ट किया गया. न्यायालय ने कहा, जब पाँच या पाँच से अधिक लोग मिलकर कोई कार्य करते हैं या करने का आशय रखते हैं तब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149 तथा धारा 34 दोनों ही लागू हो सकते हैं.
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 149, धारा 34 की अपेक्षा अधिक व्यापक अर्थवाली है और अब ऐसे मामलों में जहाँ धारा 149 लागू होती है वहाँ प्रतिनिहित दायित्व उन लोगों के सम्बन्ध में होती है जो वास्तविक रूप से अपराध कारित नहीं करते हैं.
धारा 34 (सामान्य आशय) व धारा 149 (सामान्य उद्देश्य) में निम्नलिखित अन्तर स्थापित किये जा सकते हैं-
सामान्य आशय एवं सामान्य उद्देश्य के बीच अन्तर
- सामान्य आशय (धारा 34) हेतु व्यक्तियों की संख्या कम से कम दो होनी चाहिए, जबकि सामान्य उद्देश्य (धारा 149) में कम से कम व्यक्तियों की संख्या 5 होनी चाहिए.
- धारा 34 किसी अपराध का सृजन नहीं करती, जबकि धारा 149 एक विशेष अपराध का सृजन करती है.
- धारा 34 में आशय का पूर्व नियोजित होना आवश्यक है, जबकि धारा 149 में पूर्व नियोजित आशय आवश्यक नहीं होता.
- सामान्य आशय में सदस्यों का अपराध कार्य में सक्रिय योगदान होना चाहिए, जबकि विधि विरुद्ध जमाव का सदस्य होना ही पर्याप्त है.
- सामान्य आशय में कार्य करने से पूर्व सभी सदस्यों के दिमागों का पूर्व मिलन आवश्यक है, जबकि इसके अन्तर्गत दिमागों का पूर्व मिलन आवश्यक नहीं है.
- धारा 34 संयुक्त दायित्व के सिद्धान्त का प्रतिपादन करती हैं, जबकि धारा 149 संयुक्त दायित्व की घोषणा करती है |