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अधिनियम के मूल उद्देश्य
- उपभोक्ता के हितों को संरक्षित करना,
- उपभोक्तां विवादों को शीघ्र निबटाना,
- उचित अनुतोष (Relief) प्रदान करना है |
अधिनियम द्वारा संरक्षित उपभोक्ता के अधिकार
खतरनाक माल विरुद्ध संरक्षण
उपभोक्ता जीवन एवं सम्पत्ति के लिये हानिकारक माल एवं सेवाओं विपणन (मार्केटिंग) के सम्बन्ध में सुरक्षा रखता है. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 (a) के अनुसार, जीवन एवं सम्पत्ति के परिसंकटमय माल एवं सेवाओं के विपणन के विरुद्ध उपभोक्ताओं को संरक्षण का अधिकार प्राप्त है.
वर्तमान बाजार व्यवस्था में एक ओर उत्पादकों एवं व्यापारियों द्वारा लाभ लालसा लगातार वृद्धि, विविध उत्पाद, प्रतिस्पर्द्धात्मक वाणिज्यिक क्रिया-कलाप तथा भ्रामक विज्ञापन आदि तथा दूसरी ओर उपभोक्ताओं में व्याप्त अज्ञानता, क्रयशक्ति में निरन्तर ह्रास तथा प्रगतिशीलों की कतार में शामिल होने की इच्छा आदि ने उपभोक्ताओं के शोषण का संवर्धन किया है.
बाजार में बहुत सी ऐसी वस्तुयें बिक्री हेतु उपलब्ध होती हैं जो गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता की कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं, जिनका उपभोग हानिकर या असुरक्षित होता है. एक ही उत्पाद की अनुकृति एक ही नाम और मॉडल में व्यापारियों द्वारा बाजार में बिक्री के लिये लाई जाती है जिसे व्यापारी उपभोक्ताओं को अधिक लाभ कमाने की दृष्टि अनुचित मूल्य पर बेचता है जिससे उपभोक्ताओं को हानि उठानी पड़ती है.
सूचित किये जाने का अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 (b) के अनुसार, माल या सेवाओं, जैसी भी स्थिति हो, की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य के बारे में उत्पादक द्वारा सूचित किये जाने का अधिकार प्राप्त है ताकि अनुचित व्यापारिक व्यवहार से उपभोक्ताओं को सुरक्षा दी जा सके.
उपभोक्ता अपने लिये आवश्यक वस्तुओं का क्रय या सेवा का उपयोग करते समय गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता आदि के में जानकारी चाहता तो विक्रेता का यह कर्तव्य जाता कि वह उन वस्तुओं एवं सेवाओं बारे में उपभोक्ता को उचित पर्याप्त सूचना ताकि उपभोक्ता चयन में अपने विवेक का प्रयोग कर सके या उपभोग करते समय सावधानी बरत सके.
चयन का अधिकार
अधिनियम का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि प्रतिस्पर्धी मूल्यों विभिन्न किस्मों एवं सेवाएं सुलभ कराने का आश्वासन दिये जाने सम्बन्ध उपभोक्ताओं अधिकार प्रदान किया जाए. हमारे देश प्रायः आवश्यक वस्तुओं का प्राकृतिक अथवा कृत्रिम अभाव हो जाता है.
बाजार में उत्पाद का आना या जमाखोरों एवं कालाबाजारियों द्वारा बाजार सामान गायब कर दिये जाने का सीधा प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ता है. उपभोक्ताओं खरीदने के लिये विवश होना पड़ता जो उनकी आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे.
सुने जाने का अधिकार
इस अधिकार के अंतर्गत उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा तभी सम्भव है जबकि सरकारी नीतियों के प्रतिपादन एवं अधिनियम में वर्णित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनके हितों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाये और उनकी शिकायतों पर अधिनियम द्वारा अभिकरणों द्वारा सम्यक रूप से विचार करते हुये शीघ्र उपचार प्रदान किया जाये.
इस सम्बन्ध अधिनियम के अन्तर्गत जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अर्द्ध-न्यायिक अभिकरणों की स्थापना की गई है जो विनिश्चय के दौरान सिविल न्यायालय की प्रक्रियात्मक जटिलताओं से अलग प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का अनुपालन करते हुये उपभोक्ताओं को शीघ्र न्याय प्रदान करते हैं.
प्रतितोष प्राप्त करने का अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की 6 (e) के अन्तर्गत अनुचित व्यापारिक व्यवहार या प्रतिबंधित व्यापार व्यवहार या उपभोक्ताओं के अनैतिक शोषण के विरुद्ध प्रतितोष प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है.
उपभोक्ता को अनैतिक शोषण से सुरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से अधिनियम के क्षेत्र को काफी विस्तृत कर दिया गया है.
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
उपभोक्ता आन्दोलन की सार्थकता उपभोक्ता शिक्षा के अधिकार पर निर्भर करती उपभोक्ता शिक्षा के अधिकार के बिना सभी अधिकार अप्रासंगिक एवं अव्यावहारिक होंगे. जब उपभोक्ताओं को अपने हितों एवं अधिकारों के बारे में बोध नहीं होगा, आन्दोलन दिशाहीन तथा व्यर्थ होगा.
अधिनियमों का निर्माण मात्र ही किसी समस्या का समाधान नहीं होता जब तक उनके बारे में लोगों को पर्याप्त जानकारी न हो. उपभोक्ताओं के लिये उनके हितों की सुरक्षा के में व्यापक शिक्षा नीति आवश्यक है जिसमें न सिर्फ उनके हितों एवं शोषण के बारे में बल्कि उपभोक्ता न्याय प्राप्त करने के लिये सभी सम्बन्धित विषयों समावेश होना चाहिये. जागरूकता विश्वास पैदा करती और उपभोक्ता को यदि शिक्षित एवं दिया जाये तो यह उपभोक्ता हितों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये अपेक्षाकृत सशक्त साधन होगा |