Table of Contents
- 1 हमला की परिभाषा
- 2 हमला या आक्रमण के आवश्यक तत्व
- 3 संप्रहार की परिभाषा
- 4 संप्रहार के आवश्यक तत्व
- 5 आक्रमण तथा संप्रहार के बीच अन्तर
- 6 आक्रमण तथा संप्रहार का न्यायोचित्य अथवा बचाव
- 7 1. आत्मरक्षा
- 8 2. सम्पत्ति की सुरक्षा
- 9 3. सम्पति का पुनर्ग्रहण
- 10 4. अवश्यम्भावी दुर्घटना
- 11 5. विधिपूर्ण सुधार
- 12 6. अनुमति
- 13 7. सार्वजनिक शान्ति की सुरक्षा
- 14 8. विधिक प्रक्रिया
हमला की परिभाषा
हमला या आक्रमण (Assault) की परिभाषा विभिन्न विधिशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की है. कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित है-
सामग्रड के अनुसार, ‘बिना वैध औचित्य के किसी व्यक्ति के शरीर के प्रति अभिप्रायपूर्वक बल का प्रयोग आक्रमण (Assault) कहा जाता है।’
प्रोफेसर विनफील्ड के अनुसार, ‘आक्रमण से अभिप्राय प्रतिवादी के उस कार्य से है जो वादी के मन में इस प्रकार की युक्तियुक्त आशंका उत्पन्न कर देता है कि प्रतिवादी उस पर प्रहार करेगा.’
सर फेड्रिक पोलक के अनुसार, “प्रतिवादी द्वारा वादी के शरीर पर अवैध रूप से हाथ रखना या उसको शारीरिक क्षति पहुँचाने का प्रयास करना, यदि प्रतिवादी को ऐसा कार्य करने की क्षमता और आशय विद्यमान है, आक्रमण कहलाता है.”
हमला प्रतिवादी के ऐसे कृत्य को कहते हैं जिससे वादी को युक्तियुक्त (सही तरीके की) आशंका होती है. कि प्रतिवादी उस पर अवैध प्रहार करेगा |
हमला या आक्रमण के आवश्यक तत्व
आक्रमण को अपकृत्य के रूप में सिद्ध करने के लिए वादी को निम्नलिखित बातें सिद्ध करनी चाहिए-
- प्रतिवादी के व्यवहार व भाव-प्रदर्शन आदि से ऐसा प्रतीत होता है कि वह वादी के विरुद्ध बल-प्रयोग करने वाला है.
- प्रतिवादी के व्यवहार तथा भाव-प्रदर्शन से वादी को युक्तियुक्त भय उत्पन्न हो गया था कि प्रतिवादी उसके विरुद्ध अवश्य बल-प्रयोग करने वाला है.
- कि प्रतिवादी द्वारा धमकी को कार्यान्वित करने की दृश्यमान क्षमता मौजूद थी.
इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि आक्रमण के लिए प्रतिकूल या गैर-कानूनी आशय का होना आवश्यक है. जैसे भीड़ में घुसना या साधारण धक्का देना अथवा जीवन के सामान्य व्यापार में होने वाली क्रियायें न तो अपराध हैं और न अपकृत्य. लेकिन किसी को हथियार या बिना हथियार के चोट करना या किसी के चेहरे के सामने मुक्का तानना या खाली बन्दूक दिखाना जिससे बन्दूक की स्थिति मालूम पड़े तो ये सभी कार्य आक्रमण कहे जायेंगे.
रेड बनाम कोकर, (1853) के बाद में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रहार के लिए यह आवश्यक है कि हिंसा की धमकी से कुछ अधिक हो.
इस विषय पर स्टीफेन बनाम मायर्स, (1830) के वाद का निर्णय इस विषय में अत्यन्त महत्वपूर्ण है. आक्रमण में वास्तविक क्षति अथवा वास्तविक भय-प्रयोग दिखाने की आवश्यकता नहीं है. बल-प्रयोग की धमकी ही आक्रमण के लिए पर्याप्त है यदि उसे पूरा करने की वर्तमान क्षमता रही हो. इस प्रकार यदि कटघरे में बन्द व्यक्ति, बाहर खड़े व्यक्ति को प्रहार करने के लिए मुट्ठी तानकर प्रहार करने की धमकी दे तो यह आक्रमण नहीं माना आयेगा क्योंकि इसमें वर्तमान क्षति पहुँचाने की वास्तविक क्षमता नहीं है.
ब्लैक बनाम बर्नार्ड, (1890) इस वाद प्रतिवादी ने वादी के ऊपर भरी हुई पिस्टल तानी और वादी को गोली मारने की धमकी दी. न्यायालय का मत था- प्रतिवादी का कार्य आक्रमण होगा यदि वह यह न कर दे कि पिस्टल खाली थी. यह बात महत्वहीन है कि उसका आशय धमकी पूरा न करने का था या नहीं |
संप्रहार की परिभाषा
सामण्ड के अनुसार, संप्रहार का अपकार तब घटित होता है जब कोई व्यक्ति बिना किसी विधिपूर्ण औचित्य के साशन दूसरे व्यक्ति पर बल का करता है.
भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 350 के अनुसार “कोई व्यक्ति संप्रहार का उत्तरदायी तब होता है जब वह क्रोधावेश में आकर किसी अन्य व्यक्ति को डराने या हानि पहुँचाने की नीयत से उसके शरीर पर वास्तव में प्रहार करता है या उसे स्पर्श करता है।”
इस प्रकार संप्रहार वह अपकृत्य है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के शरीर को गैर-कानूनी ढंग से स्पर्श करता है. इस अपकृत्य के लिए यह बात निरर्थक है कि वादी को स्पष्ट चोट आई है या नहीं. भी आवश्यक नहीं है कि वादी अपने शरीर के अंगों द्वारा ही स्पर्श करे, छड़ी के द्वारा स्पर्श भी प्रहार कहा जायेगा. किसी व्यक्ति के ऊपर थूक देना, पानी या कूड़ा फेंकना भी संप्रहार माना गया है |
संप्रहार के आवश्यक तत्व
- एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के शरीर पर प्रहार या उसे स्पर्श करना,
- यह प्रहार या स्पर्श उस दूसरे व्यक्ति की इच्छा एवं आज्ञा के विरुद्ध होना,
- स्पर्श से चोट आना या न आना निरर्थक है.
हर्स्ट बनाम पिक्चर थियेटर्स लिमिटेड, (1915) वादी एक सिनेमा सो का टिकट खरीद कर सीट पर बैठा था. मैनेजर के आदेश से उसे सीट से बलपूर्वक निकाल दिया गया. मैनेजर की यह गलत धारणा थी कि उसने सीट का किराया नहीं दिया है. न्यायालय ने वादी को संप्रहार के अपकृत्य के लिए एक अच्छी क्षतिपूर्ति का अधिकारी माना.
स्पष्टीकरण संप्रहार के तत्वों का परीक्षण करने पर निम्नलिखित मामले संप्रहार में नहीं आते हैं-
- किसी के साथ हाथ मिलाना-इसमें सहमति समझी जाती है,
- पुलिस द्वारा कानून के पालन में किसी को गिरफ्तार करने में बल-प्रयोग,
- किसी व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए साधारण ढंग से झकझोरना |
आक्रमण तथा संप्रहार के बीच अन्तर
यद्यपि आक्रमण एवं संप्रहार दोनों ही अपकृत्य के समान प्रकृति वाले लगते हैं परन्तु दोनों में मौलिक अन्तर भी है. इस अन्तर को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-
- यद्यपि दोनों में गाँव आवश्यक है, लेकिन किसी व्यक्ति के विरुद्ध अवैध बल का प्रयोग संप्रहार होता है जबकि किसी व्यक्ति को अवैध बल-प्रयोग के आसन्न भय में डाल देना, हालांकि बल का वास्तव में प्रयोग नहीं हुआ हो, आक्रमण कहलाता है.
- सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार-संप्रहार (Battery) में आक्रमण (Assault) सम्मिलित रहता है. इस प्रकार आक्रमण एवं संप्रहार की दिशा में एक प्रयत्न या संप्रहार करने को धमकी है. आक्रमण को अपूर्ण संग्रहार कहा जाता है.
- संप्रहार में भौतिक स्पर्श आवश्यक है जबकि संप्रहार नहीं |
आक्रमण तथा संप्रहार का न्यायोचित्य अथवा बचाव
आक्रमण एवं संप्रहार के अपकृत्यों से प्राप्त क्षतिपूर्ति के लिए लाये गये वाद में प्रतिवादी निम्नलिखित बचाव ले सकता है. ये बचाव के परिस्थितियां हैं जिनमें किया गया आक्रमण एवं प्रहार अनुयोज्य नहीं माना जाता है-
1. आत्मरक्षा
आत्मरक्षा पति, पत्नी, माँ-बाप एवं अपने बच्चों व स्वामी की रक्षा सदैव अनुमेय (Permissible) है. आत्मरक्षा में किये गये आक्रमण या संप्रहार अनुयोज्य नहीं होते हैं. यह सिद्धान्त “Son asault demesne” कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कि जिस अपकृत्य की शिकायत की गई है वह वादी के स्वयं के ही हमले का प्रभाव था.
2. सम्पत्ति की सुरक्षा
सम्पत्ति को सुरक्षा में किया गया आनुपातिक एवं आवश्यक बल प्रयोग क्षम्य है. इस प्रकार मकान, माल एवं जानवरों के कब्जा सुरक्षा के लिए स्वामी को अधिकार है कि यह बलपूर्वक घर में प्रवेश करने वाले को निकाल दे.
3. सम्पति का पुनर्ग्रहण
सम्पत्ति के वास्तविक स्वामी एवं उसके सेवक को उसकी आज्ञा पर यह अधिकार है कि वह किसी व्यक्ति द्वारा गैर-कानूनी ढंग से हस्तगत की गई सम्पत्ति को उससे वापस ले ले. इस स्थिति में किया गया आक्रमण एवं संप्रहार अनुयोज्य नहीं है.
4. अवश्यम्भावी दुर्घटना
यदि किसी अवश्यम्भावी दुर्घटनावश किसी व्यक्ति का शरीर उसकी इच्छा के विरुद्ध स्पर्श करना पड़े और यह स्पर्श अन्यथा अवैध न हो तथा उपेक्षापूर्वक न किया गया हो तो वह क्षम्य होता है.
5. विधिपूर्ण सुधार
इस पैतृक या पैतृक कल्प कृत्य भी कहते है. माँ-बाप एवं अभिभावक अपने बच्चों को सुधारने हेतु युक्तियुक्त एवं उचित बल-प्रयोग कर सकते हैं जो आक्रमण या प्रहार रूप में अनुयोज्य नहीं माना जायेगा.
6. अनुमति
अनुमति एवं अनुज्ञा के अन्तर्गत किये गये अपकृत्य होते हुये भी अनुयोज्य नहीं माने जाते हैं.
7. सार्वजनिक शान्ति की सुरक्षा
सार्वजनिक शान्ति की संरक्षा के लिए उचित बल-प्रयोग करते हुए यदि व्यक्ति को आक्रमण या प्रहार करना पड़े तो वह अनुमोदन नहीं माना जाता है.
8. विधिक प्रक्रिया
विधिक उद्देश्यों की पूर्ति में जिसमें किसी विधि के अन्तर्गत तलाशी एवं गिरफ्तारी का कर्तव्य भी सम्मिलित है, यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध आक्रमण या संहार करना पड़े तो वह अनुयोज्य नहीं माना जाता है |