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अभिवचन में संशोधन
व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 में संशोधन सम्बन्धी प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है. अभिवचन में संशोधन (Amendment in Pleadings) तीन प्रकार से हो सकता है-
- न्यायालय स्वयं किसी पक्षकार के अभिवचनों के संशोधन का आदेश दे सकता है.
- एक पक्षकार अपने विपक्षी के अभिवचनों के संशोधन के लिये न्यायालय से प्रार्थना कर सकता है और न्यायालय उस प्रार्थना को स्वीकार कर सकता है.
- कोई पक्षकार स्वयं अपने अभिवचनों में संशोधन करने के लिये न्यायालय में प्रार्थना कर सकता है और न्यायालय तद्नुसार आदेश पास कर सकता है |
संशोधन के प्रकार
अभिवचन में संशोधन दो प्रकार का होता है-
1. अनिवार्य संशोधन
जब अभिवचन में संशोधन न्यायालय के आदेश पर बिना किसी पक्षकार के निवेदन पर किया जाता है अथवा जब कोई संशोधन विपक्षी पक्षकार के निवेदन पर किया जाता है तो वह अनिवार्य संशोधन (Compulsory Amendment) की श्रेणी में आता है.
2. ऐच्छिक संशोधन
जब कोई पक्षकार स्वयं अपने ही अभिवचनों में संशोधन हेतु न्यायालय से आवेदन करता है और उसे अनुमति मिल जाती है तो उसे ऐच्छिक संशोधन (Voluntary Amendment) कहा जाता है. इसकी व्याख्या से सम्बन्धित मुख्य प्रावधान व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 17 में संकलित है.
पक्षकारों को उनके अपने अभिवचनों में संशोधन की अनुमति प्रदान करने सम्बन्धी आधारभूत सिद्धान्त जो स्वयं व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 6 नियम 17 में उपबन्धित कर दिये गये हैं जो यह व्यवस्था करता है कि कार्यवाहियों की किसी भी अवस्था पर-
- ऐसे सभी संशोधन की अनुमति प्रदान कर दी जानी चाहिये जिससे विपक्षी पक्षकार के साथ अन्याय न होता हो; तथा
- ऐसे सभी संशोधनों की अनुमति प्रदान कर दी जानी चाहिये जो पक्षकारों के बीच विवादग्रस्त वास्तविक प्रश्नों को तय करने के लिए आवश्यक हो.
उपर्युक्त दो सिद्धान्तों के अतिरिक्त समय के व्यतिक्रम के साथ न्यायालयों के निर्णयों से अनेक अन्य सिद्धान्त भी सुस्थापित हो चले जिनका अनुपालन पक्षकारों के संशोधन की अनुभूति प्रदान करने के पूर्व न्यायालयों को करना चाहिये |
न्यायालय कब संशोधन अस्वीकार कर सकता है?
1. जब प्रस्तावित संशोधन अनावश्यक हो
न्यायालय किसी अभिवचन में तब संशोधन के लिये मना कर सकता है जबकि ऐसा संशोधन अनावश्यक हो. ऐसा प्रायः दो परिस्थितियों में होता है.
- जबकि ऐसा संशोधन केवल टेक्निकल हो, या
- जबकि वह व्यर्थ हो या उसमें कोई सार न हो.
2. जब कि प्रस्तावित संशोधन से विपक्षी पक्षकार को क्षति पहुंचती हो
न्यायालय किसी संशोधन को तब स्वीकार नहीं करेगा जबकि प्रस्तावित संशोधन से किसी विपक्षी पक्षकार को क्षति पहुँचती हो. परन्तु यदि पक्षकार को भरपाईं हर्जा खर्चा देकर की जा सकती है तो ऐसा संशोधन स्वीकार किया जा सकता है.
3. जबकि प्रस्तावित संशोधन से वाद का मौलिक स्वरूप ही बदल जाता है
किसी मामले का स्वरूप केवल इस आधार पर परिवर्तित नहीं मान लिया जायेगा कि प्रस्तावित संशोधन से उसके संचालन में किसी नवीनता का आभास हो अथवा नये विवरण प्रस्तुत होंगे. मामले के स्वरूप का परिवर्तन तथ माना जायेगा जब कि प्रस्तावित संशोधन द्वारा कोई ऐसा मामला उठाया जाये जो मौलिक मामले से सर्वथा भिन्न या असंगत हो. किन्तु यदि सर्वाभिन्न अथवा असंगत केरा को ही प्रस्तावित संशोधन द्वारा लिये जाने का प्रयास किया जा रहा है तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाना चाहिये.
4. जबकि प्रस्तावित संशोधन दुराशयपूर्वक (Mala-Fide) किया गया हो
यदि प्रस्तावित संशोधन का आवेदन सद्भावनापूर्वक नहीं किया गया हो तो उसकी अनुमति नहीं प्रदान की जानी चाहिये.
5. संशोधन के आवेदन में अत्यधिक देरी
प्रस्तावित संशोधन के लिये आवेदन करने में बहुत अधिक विलम्ब करने के आधार पर अनेक मामलों में संशोधनों को अस्वीकृत किया जा चुका है, विशेषकर तब जब कि उस देरी का कोई संतोषजनक उत्तर भी न हो.
6. नया तथ्य अथवा नया अभिवाक्
अतिरिक्त लिखित कथन के माध्यम से संशोधन द्वारा नया तथ्य अथवा नया अभिवाक् अनुज्ञात नहीं किया जा सकता |
संशोधन का प्रभाव
संशोधन के बाद न्यायालय को संशोधित अभिवचन पत्र को देखना चाहिये और उन अभिवचनों को, जो कि संशोधन से पहले किये गये हों छोड़ देना चाहिये. इस प्रकार न्यायालय द्वारा आगे की प्रक्रिया के लिये संशोधित अभिवचन को ही प्रयोग में लिया जायेगा |
संशोधन के सम्बन्ध में न्यायालय की शक्ति
आदेश 6 नियम 16 के अनुसार, न्यायालय कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम पर निम्नलिखित किसी भी बात को किसी अभिवचन में काटे जाने या संशोधित किये जाने का आदेश दे सकता है-
- जो अनावश्यक, कलात्मक, तुच्छ या तंग करने वाली हो; अथवा
- जो वाद के निष्पक्ष परीक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली हो या उससे उलझन पैदा न करने वाली हो या विलम्ब करने वाली हो,
- जो अन्य प्रकार से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग हो |
विरोधी पक्षकार के अभिवचन में संशोधन
आदेश 6 नियम 16 के प्रावधानों के तहत कोई पक्षकार अपने विरोधी के अभिवचन में भी संशोधन करा सकता है. परन्तु इसके लिये आवश्यक है कि वह अभिवचन-
- अनावश्यक, कलेकात्मक, या तंग करने वाला हो, या
- विचारण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला हो, या
- न्यायालय की आदेशिका का दुरुपयोग हो.
उपरोक परिस्थितियों में एक पक्षकार अपने विरोधी के अभिवचन (Pleadings) में संशोधन के लिये आवेदन कर सकता है तथा न्यायालय यदि उचित समझता है, तो ऐसे संशोधन हेतु आज्ञा दे सकता है |