Table of Contents
- 1 संविदा कल्प
- 2 कल्प संविदा की परिभाषा
- 3 भारतीय संविदा अधिनियम के अन्तर्गत संविदा-कल्प
- 4 1. संविदा करने के लिए असमर्थ व्यक्ति को या उसके लेखे प्रदाय की गई आवश्यक वस्तुओं के लिए दावा
- 5 2. उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति हितबद्ध है
- 6 3. अनुग्रहीत न करने का आशय रखते हुए परिदत्त वस्तु का फायदा उठा लेने पर
- 7 4. पड़ा हुआ माल पाये जाने पर
- 8 5. भूल या प्रपीड़न के अधीन धन आदि का संदाय किये जाने पर
संविदा कल्प
संविदा कल्प क्या है? सामान्यतः संविदाएं पक्षकारों के कार्य का परिणाम होती हैं. पक्षकार ही किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने का करार करते हैं और उन्हीं पर उसके अनुपालन का दायित्व रहता है. लेकिन कभी-कभी पक्षकारों के बीच प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई करार नहीं किया जाता है. फिर भी उनके बीच किये गये अथवा किये जाने वाले आचरण से ऐसे दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे कि किसी संविदा से उत्पन्न होते हैं. विधि में ऐसी संविदाओं को विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता है; जैसे-
- आभासी संविदा,
- गर्भित संविदा,
- संविदा-कल्प,
- विवक्षित संविदा आदि |
कल्प संविदा की परिभाषा
कल्प संविदा या आभासी संविदा को विभिन्न विधिशास्त्रियों के द्वारा परिभाषित किया गया है-
पोलक के अनुसार, “आभासी संविदायें वे संविदाएं हैं जिनमें विषय क्षेत्र का काल्पनिक विस्तार होने के कारण ऐसे कर्तव्यों का आवर्तन होता है जो वास्तव में इसके अन्तर्गत नहीं आते हैं. अतः यह तथ्यतः संविदायें नहीं हैं, किन्तु विधिक संविदायें हैं।”
विनफील्ड के अनुसार, “आभासी संविदा एक ऐसा दायित्व है जो विधि के किसी शीर्षक के अन्तर्गत पूर्णतया निर्देशित करने योग्य नहीं है तथा किसी विशिष्ट व्यक्ति को अनुचित लाभ के आधार पर धन के लिए आरोपित किया जाता है।” |
भारतीय संविदा अधिनियम के अन्तर्गत संविदा-कल्प
जिन संविदाओं को आंग्ल विधि में “संविदा-कल्प” (Quasi-contracts) कहा जाता है, उन्हीं को भारतीय विधि में संविदा द्वारा सृजित सम्बन्धों के सदृश उत्तरदायित्व उत्पन्न करने वाले सम्बन्धों के नाम से संबोधित किया जाता है. इनका उल्लेख भारतीय संविदा अधिनियम, 1972 की धारा 68 से 72 तक में किया गया है.
1. संविदा करने के लिए असमर्थ व्यक्ति को या उसके लेखे प्रदाय की गई आवश्यक वस्तुओं के लिए दावा
धारा 68 के अनुसार, वह व्यक्ति जो किसी ऐसे व्यक्ति को जो संविदा करने मैं असमर्थ है या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके पालन-पोषण के लिए वह वैध रूप से आबद्ध हो, जीवन में उसकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तुएं प्रदाय करता है, उस असमर्थ व्यक्ति की सम्पत्ति से प्रतिपूर्ति पाने का हकदार होता है.
उदाहरण के लिए, एक लेनदार किसी अवयस्क व्यक्ति को, उसकी आवश्यकता के लिए दिये गये उधार धन को उस अवयस्क व्यक्ति की सम्पति से पुनः प्राप्त करने का हकदार होता है. यह इस सामान्य नियम का कि “अवयस्क के साथ की गई संविदा पूर्ण रूप से शून्य होती है” का एक अपवाद है.
2. उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति हितबद्ध है
धारा 69 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी धन का संदाय करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध (Bound By Law) है, वह ऐसा धन संदाय नहीं करता है. तब वह व्यक्ति जो ऐसे संदाय में हितबद्ध है, संदाय कर देता है, उस व्यक्ति से जो विधि द्वारा आबद्ध है, प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है.
उदाहरण के लिए, सरकारी राजस्व के बकाया की वसूली में ‘क’ का माल गलत रूप से कुर्क कर लिया जाता है. ‘क’ अपने माल को कुर्क होने से बचाने के लिए ‘ख’ द्वारा शोध्य रकम का संदाय करता है. ‘क’ ‘ख’ से प्रतिपूर्ति पाने का हकदार है.
3. अनुग्रहीत न करने का आशय रखते हुए परिदत्त वस्तु का फायदा उठा लेने पर
धारा 70 के अनुसार, जहां कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई बात विधिपूर्वक करता है और उसका आशय उसे आनुग्रहिकत: (Gratuitous) अर्थात निःशुल्क करने का नहीं रहता है, और वह पश्चात कथित व्यक्ति उसका फायदा उठा लेता है, वहां वह पूर्वकथित व्यक्ति पश्चात कथित व्यक्ति से प्रतिकर प्राप्त करने का हकदार होता है.
अधिनियम की धारा 70 के अन्तर्गत क्वाण्टम मेरियट का सिद्धान्त सन्निहित है.
इस प्रकार यह व्यवस्था भी साम्य एवं न्याय के सिद्धान्तों पर आधारित है. ऐसे सिद्धान्त प्रत्यावर्तन एवं अन्यायपूर्ण समृद्धि के निवारण के साम्यिक सिद्धान्त है.
उदाहरण के लिए, एक व्यापारी ‘क’ कुछ माल ‘ख’ के गृह पर भूल से छोड़ जाता है. ‘ख’ उस माल को अपने माल के रूप में बरतता है. उसके लिए ‘क’ को संदाय करने के लिए यह आबद्ध है. लेकिन जहां ‘ख’ की सम्पति को ‘क’ आग से बचाता है और परिस्थितियां दर्शित करती हैं कि ‘क’ का आशय आनुग्रहिकतः कार्य करने का था, तो वहां ‘फ’ ‘ख’ से प्रतिकर पाने का हकदार नहीं है.
4. पड़ा हुआ माल पाये जाने पर
धारा 71 के अनुसार, जहां किसी व्यक्ति को कोई पढ़ा हुआ माल मिलता है, वहां वह उस माल के प्रति उपनिहिती (Bailee) हो जाता है और उस माल के सम्बन्ध में उसका सही उत्तरदायित्व होता है जो उपनिहिती का होता है.
ऐसे मामलों में सामान्यतः उपनिहिती का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह ऐसे माल के प्रति वैसी ही सतर्कता एवं सावधानी बरते जैसी मामूली प्रज्ञा वाला (Ordinary Pruden) व्यक्ति वैसी हो परिस्थितियों में अपने ऐसे माल के प्रति बरतता है.
5. भूल या प्रपीड़न के अधीन धन आदि का संदाय किये जाने पर
धारा 72 के अनुसार, यदि कोई “व्यक्ति भूल से या प्रपीड़न के अधीन कोई धन संदत करता है या किसी चीज की परिदान कर देता है तो वह ऐसे धन या चीज को पुनः प्राप्त करने का हकदार होता है.
उदाहरण के लिए, ‘क’ और ‘ख’ संयुक्त रूप से ‘ग’ के 1,000 रुपये के देनदार हैं. अकेला ‘क’ ही ‘ग’ को वह रकम संदत्त कर देता है और इस तथ्य को न जानते हुए ‘ग’ को ‘ख’ 1,000 रुपये फिर संदत कर देता है. इस रकम का ‘ख’ को प्रतिसंदाय करने के लिए ‘ग’ आवद्ध है.
धारा 72 के अन्तर्गत धन या वस्तु को वापस लौटाने का आधार अन्यायपूर्णं समृद्धि (Unjust Enrichment) का सिद्धान्त है.
मेसर्स सहकारी खाँड उद्योग मंडल लिमिटेड बनाम कमिश्नर आफ सेण्ट्रल एक्साइज एण्ड कस्टम्स (AIR 2005 SC 1897) में उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकन किया है कि अन्यायपूर्ण समृद्धि का सिद्धान साम्या पर आधारित सिद्धान्त है. इस आधार पर अनुतोष प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है. कि वादी (या अपीलकर्ता) यह साबित करे कि उसने उस धन का जिसके लिए वह अनुतोष मांग रहा है भुगतान कर दिया है और उसने भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला है एवं यदि उसे यह अनुतोष नहीं प्रदान किया गया तो हानि सहन करनी पड़ेगी.
परन्तु हूडा तथा अन्य बनाम बालेश्वर कनवर तथा अन्य (AIR 2005 SC 1491) में इस आधार पर विकास प्राधिकरण ने धन जब्त कर लिया था कि प्रत्यर्थी ने आवंटित भूखण्ड स्वीकार नहीं किया एवं स्वीकार न किये जाने की संसूचना देने में एक महोने से अधिक की देरी को उच्चतम न्यायालय ने इस वाद में यह निर्णीत किया कि संसूचना में देरी इसलिए प्रत्यर्थी ने किया था क्योंकि डाकघर में छुट्टी थी और विकास प्राधिकरण का कार्यालय बन्द था. अतः प्रत्यर्थी 9 प्रतिशत व्याज सहित अग्रिम धन पाने का हकदार है.
चण्डीप्रसाद उनियाल बनाम स्टेट ऑफ उत्तराखण्ड (AIR 2012 SC 2951) के मामले में कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान कर दिये जाने को उच्चतम न्यायालय ने अयुक्तियुक्त लाभ (Unjust Enrichment) मानते हुए उसे पुनः वसूल किये जाने योग्य बताया |