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सहमति की परिभाषा
IPC में सहमति क्या है? सहमति को भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) में परिभाषित नहीं किया गया है यद्यपि धारा 90 यह बताती है कि सहमति कब स्वतंत्र नहीं होती है. सहमति का तात्पर्य यह है कि जो कार्य हो रहा है उसको स्वीकार कर लेना.
साधारण बोलचाल की भाषा में ‘सहमति’ एक प्रत्यक्ष चित्त की क्रिया है अर्थात यह स्वतंत्र इच्छा की एक अभिव्यक्ति है जो किसी कार्य का समर्थन सकारात्मक ढंग से करती है.
यह आत्मसमर्पण से भिन्न है. प्रत्येक सहमति में आत्मसमर्पण होता है, परन्तु प्रत्येक आत्मसमर्पण में सहमति हो यह आवश्यक नहीं. सहमति अनुमोदन तथा समर्थन से भी भिन्न है. अपराध के बाद का अनुमोदन या समर्थन उसे वैध नहीं बना देता. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में सहमति की परिभाषा न देकर यह बताया गया है कि सहमति क्या नहीं होगी.
कब कोई सहमति वैध सहमति नहीं है?
धारा 90 क्या है? धारा 90 के अनुसार, कोई सहमति वैध सहमति नहीं है, यदि वह-
- किसी व्यक्ति द्वारा क्षति के भय के अधीन दी जाती है, या
- किसी व्यक्ति द्वारा तथ्य के भ्रम के कारण दी जाती है, या
- किसी विकृतचित्त व्यक्ति द्वारा दी जाती है, या
- किसी नशे के अधीन व्यक्ति द्वारा दी जाती है, या
- 12 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति द्वारा दी जाती है.
उपर्युक्त संख्या (1) तथा (2) के लिए यह आवश्यक है कि सहमति प्राप्त करने वाला व्यक्ति इस बात को जानता हो या विश्वास किये जाने का कारण हो जबकि संख्या (3), (4) तथा (5) के लिए यह आवश्यक है कि सहमति देने वाला व्यक्ति उस असमर्थता की प्रकृति और परिणाम को न जानता हो जिस कार्य के लिए वह अपनी सहमति दे रहा है.
कब सहमति मात्र बचाव है?
धारा 87 क्या है? धारा 87 के अनुसार, कोई बात जो मृत्यु करने या गम्भीर उपहति पहुँचाने के आशय से न की जाये और वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहमति से जो 18 वर्ष से अधिक आयु का हो, प्रत्यक्ष या लक्षित सहमति दिये जाने के बाद किया गया हो, अपराध नहीं होती।”
उदाहरण के लिए, ‘क’ और ‘ख’ आमोदार्थ आपस में पट्टेबाजी करने की सहमत होते हैं. इस सहमति में किसी अपहानि को जो ऐसी पट्टेबाजी में खेल के नियम के विरुद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की हर एक की सम्मति विवक्षित है, और यदि क यथानियम पट्टेबाजी करते हुए ‘ख’ को उपहति कारित कर देता है, तो ‘क’ कोई अपराध नहीं करता है.
इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जो सहमति देता है उसे क्षति नहीं होती क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने हितों का उत्तम निर्णायक होता है.
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि धारा 87 केवल उसी व्यक्ति को संरक्षण प्रदान फरेगी जिसने 18 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति को उसकी सहमति से हानि पहुँचायी है.
परन्तु यह हानि न तो मृत्यु या गम्भीर उपहति होनी चाहिए और न ही यह कार्य मृत्यु या गम्भीर उपहति पहुँचाने के आशय से किया गया हो और न ही उस व्यक्ति को ज्ञान हो कि उस कार्य से मृत्यु या गंभीर उपहति पहुँच सकती है. सहमति यद्यपि प्रत्यक्ष अथवा लक्षित हो सकती है परन्तु सहमति देने वाला व्यक्ति परिपक्व समझवाला व स्वस्थचित्त का होना चाहिए.
धारा 88 के अनुसार, कोई बात जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गयी हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके फायदे के लिए यह बात सद्भावनापूर्वक की जाये, जिसने अपहानि को सहने या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त, चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या ऐसा करने का आशय हो या कारित होने की सम्भावना ज्ञात की हो.
यह सिद्धान्त उन हत्याओं के सम्बन्ध में है जो आशयपूर्वक नहीं को गयी तथा दूसरे को लाभ पहुँचाने के सन्दर्भ में हुई हो. उदाहरण के लिए डाक्टर से आपरेशन के समय हुई मृत्यु आदि. परन्तु यह धारा ऐसे कार्य जो स्वयं अपराध है, को विधिमान्य नहीं बनाती है. इस धारा के तहत सहमति देने वाले व्यक्ति की आयु का उल्लेख नहीं किया गया है.
उदाहरण के तौर पर, ‘क’ एक शल्य चिकित्सक, यह जानते हुए कि एक विशेष शल्यकर्म से ‘ख’ को मृत्यु कारित होने की सम्भावना है किन्तु ‘ख’ का मृत्यु कारित करने का आशय न रखते हुए सद्भावनापूर्वक ‘ख’ के फायदे के आशय से ‘ख’ की सहमति से ‘ख’ पर वह शल्यकर्म करता है. ‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया है.
धारा 89 बालक अथवा विकृतचित्त व्यक्तियों के सम्बन्ध में उनके फायदे के लिए किये जाने वाले कार्यों को संरक्षण प्रदान करती है. इस धारा के प्रावधानों के तहत ऐसे व्यक्तियों की तरफ से उनके संरक्षक द्वारा सहमति दी जा सकती है. परन्तु वह ऐसे सहमति नहीं दे सकता है जो कि ऐसे व्यक्ति को मृत्यु या गम्भीर उपहति के कार्य से संलग्न हो परन्तु भयंकर रोग निवारण के लिए सहमति दी जा सकती है.
किन परिस्थितियों में कोई बात अपराध नहीं है?
धारा 92 क्या है? धारा 92 के अनुसार, कोई बात अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक सहमति के बिना किया जाये अपराध नहीं है. यदि परिस्थितियां ऐसी हो कि उस व्यक्ति के लिए असम्भव हो कि वह सहमति दे या सहमति देने के लिए असमर्थ है, उसका कोई संरक्षक या विधिपूर्ण भारसाधक सहमति देने के लिए न हो.
उदाहरण के तौर पर, ‘क’ शल्य चिकित्सक यह देखता है कि एक शिशु की ऐसी दुर्घटना हो गयी है जिसका प्राणांतक साबित होना सम्भव है यदि शस्त्रकर्म तुरन्त न कर दिया जाय, इतना समय नहीं है कि शिशु के संरक्षक से आवेदन किया जाय. ‘क’ सद्भावपूर्वक शिशु के फायद के लिए शस्त्रकर्म करता है. ‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया.
आईपीसी की धारा 92 गर्भित सहमति
धारा 92 गर्भित सहमति के सम्बन्ध में प्रावधानों को उपबन्धित करती है. इस धारा के अनुसार आपात कालीन परिस्थितियों में जिनमें व्यक्ति की सहमति प्राप्त करना सम्भव नहीं होता है तो सद्भावनापूर्वक उस व्यक्ति के लाभ के लिए कार्य किया जा सकता है. परन्तु यह धारा आशयपूर्वक किये गये कार्यों को संरक्षण नहीं देती है.
उदाहरण के तौर पर, ‘ख’ को एक बाघ उठा ले जाता है. यह जानते हुए कि सम्भाव्य है कि गोली लगने से ‘ख’ मर सकता है. किन्तु ‘ख’ का वध न करने का आशय रखते हुए और सद्भावनापूर्वक ‘ख’ के फायदे के आशय से ‘क’ उस बाघ पर गोली चलाता है जिससे ‘ख’ को मृत्युकारक घाव हो जाता है. यहां ‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया |