Table of Contents
WTO क्या है?
WTO का मुख्यालय कहां है? द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक प्रयासों के परिणाम स्वरूप जेनेवा में 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) की स्थापना हुई.
विश्व व्यापार संगठन की मुख्य आधारशिला नागरिक व्यवहार एवं सर्वाधिक अनुकूल राष्ट्र व्यवहार के सिद्धान्तों से निर्मित है. नागरिक व्यवहार सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्येक देश का यह कर्तव्य है. कि वह अन्य देशों के नागरिकों को माल सेवाओं एवं बौद्धिक संपदा से संबंधित व्यापार में उसी स्तर का संरक्षण प्रदान करे जो स्वयं वह अपने नागरिकों को देता है.
इस तरह विश्व व्यापार संगठन का सिद्धान्त सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए परस्पर भेदभाव न किये जाने के अधिकार की गारंटी है. विश्व व्यापार संगठन अपनी क्रिया प्रणाली में पारदर्शिता बनाये रखता है. यह दो स्तरों पर दिखाई देता है-
- प्रत्येक सदस्य देशों का दायित्व है कि वे अपनी व्यापारिक रीतियों एवं नीतियों में आये किसी बदलाव की सूचना विश्व व्यापार संगठन के उचित निकायों को दें, और
- विश्व व्यापार संगठन खुद नियमित लोगों को सूचनायें देता रहता है ताकि उन्हें संगठन की नीति में आये किसी बदलाव की जानकारी मिल सके |
WTO के कार्यों की प्रकृति
WTO के कार्य? मुख्य रूप से विश्व व्यापार संगठन एक ऐसा मंच है जो सदस्य देशों की इस बात में मदद करता है कि वे इस मंच पर आकर बैठें और संगठन के आधारभूत समझौतों गैट् गेट्स एवं ट्रिप्स के आलोक में अपने विवादों का हल वार्ताओं द्वारा तलाश करें. इस संगठन में जो कुछ भी होता है वह वार्ताओं के माध्यम से ही होता है.
सदस्य देशों के लिए इस संगठन का काम वार्ताओं हेतु मार्ग प्रशस्त करना या सुविधा प्रदान करना है जो चीजों पर बहस करके निर्णय तक पहुंचते हैं. ऐसे निर्णय चाहे वे किन्हीं सदस्यों के विरुद्ध प्रतिबन्ध लगाने से संबंधित हो या किसी व्यापार से संबंधित किसी मुद्दे पर हो, स्वयं सदस्यों के द्वारा लागू किये जाते हैं. संगठन के लगभग 164 सदस्य देश हैं, किसी निर्णय पर पहुंचना काफी मुश्किल काम होता है.
डब्ल्यूटीओ समझौते के केन्द्र में माल सेवाएं और बौद्धिक संपदा होती है. अन्य समझौतों का संबंध कृषि, खाद्य सामग्री संरक्षा जोव एवं पादप स्वास्थ्य, व्यापार अवरोध, कपड़ा एवं वस्त्र व्यापार एवं पर्यावरण, डम्पिंग विरोध, छूट संरक्षा, उपाय, व्यापार संबंधी निवेश के उपाय और व्यापार नीति समीक्षा व्यवस्था से है.
WTO अपने सदस्यों से जुदा नहीं है, अतः इसके निर्णय विभिन्न परिषदों एवं समितियों द्वारा लिये जाते हैं जिनमें प्रत्येक परिषद या समिति के सदस्य वे सभी देश होते हैं जो वस्तुतः विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं. मन्त्रिस्तरीय सम्मेलन इस संगठन का सर्वोच प्राधिकरण है जिसको बैठक दो वर्षों में कम से कम एक बार सम्पन्न होती है, और जो विभिन्न बहुपक्षीय समझौतों से संबंधित एक या सभी मामलों पर निर्णय देने में सक्षम है.
कोई भी राष्ट्र या सीमा शुल्क अधिक्षेत्र जिसे अपने व्यापार के संचालन में पूर्ण स्वायत्तत प्राप्त है, विश्व व्यापार संगठन का सदस्य हो सकता है. यह सदस्यता भी वार्ताओं के परिणामस्वरूप हो प्राप्त होती है. सदस्यता का इच्छुक देश अपने व्यापार एवं आर्थिक नीतिय के सभी पहलुओं का विवरण देते हुए विश्व व्यापार संगठन को आवेदन करता है.
उक्त देश के आवेदन पर विचार करने वाले कार्यदल द्वारा आवेदन का परीक्षण किया जाता है. इन कार्य दलों में संगठन के सभी सदस्य हो सकते हैं. इसे संगठन की महापरिषद या मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में रखा जाता है. यदि 2/3 सदस्य इसके पक्ष में मतदान करते हैं तो आवेदक नयाचार पर हस्ताक्षर करने और संगठन में शामिल होने हेतु स्वतंत्र हो जाता है.
WTO का मुख्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैंड) में है. मुख्यालय में 500 व्यक्तियों का स्टाफ है जिसका मुखिया महानिदेशक होता है. सचिवालय का मुख्य दायित्व उन सभी निकायों को प्रशासनिक एवं तकनीकी सहायता मुहैया कराना है जो संगठन द्वारा प्रत्यायोजित अधिकारों का प्रयोग करते हैं. ऐसे निकायों में परिषदें, समितियां, कार्यदल, वार्ता समूह आदि शामिल हैं.
सचिवालय द्वारा संगठन के अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों की मदद से व्यापार प्रदर्शनों एवं व्यापार नीतियों का विश्लेषण किया जाता है. संगठन के नियमों एवं पूर्व निर्णयों के निर्वाचन वाले व्यापार विवादों को हल करने में अपने कानूनी स्टाफ से मदद दिलवाने की जिम्मेदारी भी सचिवालय की होती है. सचिवालय नये सदस्यों के अधिमिलन पत्र के साथ संव्यवहार करता है और सदस्यता चाहने वाले देशों को परामर्श देता है.
संगठन WTO का बजट 150 मिलियन फ्रैंक से अधिक का है जिसमें व्यक्तिगत योगदान की गणना संगठन के सदस्यों द्वारा संचालित कुल व्यापार के अंशों के आधार पर की जाती है. संगठन के बजट का एक हिस्सा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार केन्द्र को भी मिलता है. 20वीं शताब्दी में औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में विकास की दर में तीव्रतर वृद्धि हुई और पृष्ठभूमि में WTO एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
बौद्धिक संपदा किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के विकास, संवर्धन और संरक्षण के लिए अपरिहार्य और मूल्यवान तत्व के रूप में उभर कर सामने आई है. बौद्धिक संपदा अधिकार ऐसे विचारों, धारणाओं, संकल्पनाओं को संरक्षण प्रदान करता है जिसका वाणिज्यिक मूल्य होता है और जो व्यापारिक या औद्योगिक उपयोग के योग्य होते हैं.
विभिन्न प्रकार की बौद्धिक सम्पदा का कई प्रकार से वाणिज्यिक उपयोग किया जा सकता है. बौद्धिक सम्पदा के रूप में व्यापार चिन्ह का वाणिज्यिक और व्यापारिक उपयोग किसी भी उत्पाद और सेवाओं तथा उसके विनिर्माता या प्रदाता की पहचान स्थापित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया है.
इस प्रकार बौद्धिक सम्पदा विधि का कोई अध्येता बौद्धिक संपदा के आर्थिक महत्व, वाणिज्यिक उपयोग और इसके संरक्षण की उपेक्षा नहीं कर सकता है |