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राज्य विधिज्ञ परिषद क्या है?
राज्य विधिज्ञ परिषद किसे कहते हैं? राज्य विधिज्ञ परिषद (State Bar Council) से तात्पर्य अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 3 के अधीन गठित विधिज्ञ परिषद से है. इस प्रकार धारा 3 के अन्तर्गत जो परिषद गठित होती है उसे राज्य विधिज्ञ परिषद कहते हैं |
राज्य विधिज्ञ परिषद का गठन
अधिनियम की धारा 3 (1) उल्लेखित करती हैं कि भारत संघ के प्रत्येक राज्य क्षेत्र के लिए राज्य विधिज्ञ परिषद का गठन किया जायेगा.
1. धारा 3 (2) उल्लेखित करती है कि राज्य विधिज्ञ परिषद निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी अर्थात
1. दिल्ली राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में भारत का अपर महासालिसिटर (Solicitor General), पदेन, असम, नगालैंड, मेघालय, मणिपुर और त्रिपुरा राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में प्रत्येक राज्य अर्थात असम, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा का महाधिवक्ता, पदेन, पंजाब और हरियाणा राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में प्रत्येक राज्य, अर्थात पंजाब और हरियाणा का महाधिवक्ता, पदेन, और किसी अन्य राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में उस राज्य का महाधिवक्ता पदेन.
2. पांच हजार से अनधिक के निर्वाचक मंडल वाली राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में, 15 सदस्य, 5 हजार से अधिक किन्तु 10 हजार से अनधिक के निर्वाचक मंडल वाली राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में बोस सदस्य, और 10 हजार से अधिक के निर्वाचक मण्डल वाली राज्य विधिज्ञ परिषद की दशा में 25 सदस्य, जो राज्य विधिज्ञ परिषद की निर्वाचक नामावली के अधिवक्ताओं में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित हो.
परन्तु ऐसे निर्वाचित सदस्यों में से यथासंभव आधे के निकट सदस्य, ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा इस निमित्त बनाए जाएं, ऐसे व्यक्ति होंगे जो किसी राज्य नामावली में कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहे हों, और ऐसे किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में 10 वर्ष की उक्त अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान ऐसा व्यक्ति भारतीय विधिज्ञ परिषद अधिनियम, 1926 (1926 का 38) के अधीन नामांकित अधिवक्ता रहा हो.
3. प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा जो उस परिषद द्वारा ऐसी रिति से निर्वाचित किया जाएगा जो विहित की जाए.
(3A) अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 1977 (1977 का 38) के प्रारम्भ के ठीक पूर्व किसी राज्य विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, ऐसे प्रारम्भ पर यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद धारण नहीं करेगा.
परन्तु ऐसा प्रत्येक व्यक्ति अपने पद के कर्त्तव्यों का तब तक पालन करता रहेगा जब तक कि प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद का यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, जो अधिवक्ता (संशोधन) अधिनियम, 1977 के प्रारम्भ के पश्चात् निर्वाचित हुआ है, पदभार संभाल नहीं लेता.
4. कोई अधिवक्ता उपधारा (2) के अधीन किसी निर्वाचन में मतदान करने, या किसी स्टेट बार काउन्सिल के सदस्य के रूप में चुने जाने और सदस्य होने के लिए तब तक निरहित होगा जब तक उसके पास ऐसी अर्हताएं न हो या वह ऐसी शर्तें पूरी न करता हो, जो भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा इस निमित्त विहित की जाएं और किन्हीं ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए. जो बनाए जाएं, प्रत्येक राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा निर्वाचक नामावली तैयार की जाएगी और समय-समय पर पुनरीक्षित की जाएगी |
राज्य विधिज्ञ परिषद के कार्य
राज्य विधिज्ञ परिषद के कार्य क्या है? राज्य विधिज्ञ परिषद के निम्नलिखित कार्य हैं-
- अपनी नामावली में अधिवक्ता के रूप में व्यक्तियों को प्रविष्ट करना.
- अधिवक्ता की नामावली तैयार करना और उसे बनाए रखना.
- अपनी नामावली के अधिवक्ताओं के विरुद्ध अवचार के मामले ग्रहण करना और उनका अवधारण करना.
- अपनी नामावली के अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना.
- धारा 7 की उपधारा (2) के खण्ड (क) और इस धारा की उपधारा (2) के खण्ड (क) में निर्देशित की गई कल्याण योजनाओं के प्रभावकारी संचालन के प्रयोजनों के लिए अधिवक्ता संघ के विकास में वृद्धि करना.
- विधि सुधार का उन्नयन और उसका समर्थन करना.
- विधिक विषयों पर प्रतिष्ठित विधि शास्त्रियों द्वारा परिसंवादों का संचालन और वार्ताओं का आयोजन करना और विधि से सम्बन्धित पत्रिकाओं और लेख प्रकाशित करना.
- विहित रोति से निर्धनों को विधिक सहायता देने के लिये विधिक सहायता केन्द्र आयोजित करना.
- विधिज्ञ परिषद की निधियों का प्रबन्ध और उनका विनिधान करना.
- अपने सदस्यों के निर्वाचन की व्यवस्था करना.
- धारा 7 की उपधारा (1) के खण्ड (1) के अन्तर्गत दिये गये निर्देशों के अनुसार विश्वविद्यालयों की देखभाल एवम् निरीक्षण करना.
- इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन विधिज्ञ परिषद को प्रदत्त अन्य सभी कृत्यों का पालन करना.
- पूर्वोक्त कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक अन्य सभी कार्य करना |
राज्य विधिज्ञ परिषद की शक्तियां
स्टेट बार काउन्सिल की शक्तियां क्या है? अधिवक्ता अधिनियम के अन्तर्गत राज्य विधिज्ञ परिषद को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-
1. नियम बनाने की शक्ति
अधिनियम की धारा 28 के अन्तर्गत राज्य विधिज्ञ परिषद निम्नलिखित विषयों पर नियम बना सकती है-
- वह समय जिसके भीतर और वह प्ररूप, जिसमें कोई अधिवक्ता धारा 20 के अधीन किसी राज्य विधिज्ञ परिषद की नामावली में अपना नाम दर्ज कराने का अपना आशय प्रकट करेगा.
- वह प्ररूप जिसमें विधिज्ञ परिषद की, उसकी नामावली में अधिवक्ता के रूप में प्रवेश के लिए आवेदन किया जाएगा और वह रीति, जिससे ऐसे आवेदन का विधिज्ञ परिषद की नामांकन समिति द्वारा निपटारा किया जाएगा.
- वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति ऐसी किसी नामावली में अधिवक्ता के रूप में प्रविष्ट किया सकेगा.
- वे किस्तें जिनमें नामांकन की फीस दी जा सकेगी.
- नियम तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक वे भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा अनुमोदित न कर दिए गए हों.
2. अवचार के लिए अधिवक्ताओं को दण्डित करने की शक्ति
धारा 35 के अनुसार-
1. जहाँ किसी शिकायत की प्राप्ति पर या अन्यथा, किसी राज्य विधिज्ञ परिषद के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसको नामावली का कोई अधिवक्ता वृत्तिक या अन्य अवचार का दोषी रहा है वहाँ वह मामले को, अपनी अनुशासन समिति को निपटाने के लिए, निर्दिष्ट करेगी.
(1A) राज्य विधिज्ञ परिषद अपनी अनुशासन समिति के समक्ष लंबित किसी कार्यवाही को या तो स्वप्रेरणा से या किसी हितबद्ध व्यक्ति द्वारा उसको किए गए आवेदन पर, वापस ले सकेगी और यह निदेश दे सकेगी कि जाँच उस राज्य विधिज्ञ परिषद की किसी अन्य अनुशासन समिति द्वारा की जाए.
2. राज्य विधिज्ञ परिषद को अनुशासन समिति मामले की सुनवाई के लिए तारीख नियत करेगी और उसकी सूचना सम्बन्धित अधिवक्ता को और राज्य के महाधिवक्ता को दिलवाएगी.
3. राज्य विधिज्ञ परिषद की अनुशासन समिति, सम्बद्ध अधिवक्ता और महाधिवक्ता को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात निम्नलिखित आदेशों में से कोई आदेश कर सकेगी, अर्थात्-
- शिकायत खारिज कर सकेगी या जहाँ राज्य विधिज्ञ परिषद की प्रेरणा पर कार्यवाहियों आरम्भ की गई थीं वहाँ यह निदेश दे सकेगी कि कार्यवाहियाँ फाइल कर दी जाएं.
अधिवक्ता को दंड दे सकेगी. - अधिवक्ता को विधि व्यवसाय से उतनी अवधि के लिए निलंबित कर सकेगी। जितनी वह ठीक समझे.
अधिवक्ता का नाम, अधिवक्ताओं की राज्य नामावली में से हटा सकेगी. - जहाँ कोई अधिवक्ता उपधारा (3) खंड (ग) के अधीन विधि व्यवसाय करने से निलंबित कर दिया गया है वहाँ वह, निलंबन की अवधि के दौरान, भारत में किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकरण या व्यक्ति के समक्ष विधि व्यवसाय करने से वर्जित किया जाएगा.
- जहाँ महाधिवक्ता को उपधारा (2) के अधीन कोई सूचना जारी की गई हो वहाँ महाधिवक्ता राज्य विधिज्ञ परिषद को अनुशासन समिति के समक्ष, या तो स्वयं या उसकी ओर से हाजिर होने वाले किसी अधिवक्ता के माध्यम से हाजिर कर सकेगा.
3. समितियां तथा सदस्यों का गठन
धारा 99A तथा 10 के अन्तर्गत विधिज्ञ परिषद अनुशासन समिति. विधिक सहायता समिति, कार्यकारिणी समिति, नामांकन समिति तथा शिक्षा समिति का गठन कर सकती है. इसके सम्बन्ध में परिषद नियमावली भी बना सकती है.
विधिज्ञ परिषद अपने कार्य के लिए स्टाफ सदस्यों को भी नियुक्त कर सकती है, इस सम्बन्ध में वह नियम भी बना सकती है.
4. लेखा तथा लेखा परीक्षा रखने सम्बन्धी शक्ति
धारा 12 के अनुसार-
- प्रत्येक विधिज्ञ परिषद ऐसी लेखाबहियां और अन्य बहियां ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से रखवायेगी जो विहित की जाए.
- विधिज्ञ परिषद के लेखाओं की लेखापरीक्षा कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन कम्पनियों के लेखा परीक्षकों के रूप में कार्य करने के लिए सम्यक रूप से अहिंत लेखा परीक्षाओं द्वारा, ऐसे समयों पर और ऐसी रीति से की जाएगी, जो विहित किए जाएं या को जाएं.
- प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर यथासाध्य शीघ्रता से, किन्तु ठीक अगले वर्ष के दिसम्बर के 31वें दिन के पश्चात नहीं, राज्य विधिज्ञ परिषद अपने लेखाओं की एक प्रति लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट को एक प्रति सहित भारतीय सरकार को भेजेगी और उसे राजपत्र में प्रकाशित करवाएगी.
- प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर यथासाध्य शीघ्रता से, किन्तु ठीक अगले वर्ष के दिसम्बर के 31वें दिन के पश्चात नहीं, भारतीय विभिन्न परिषद अपने लेखाओं की एक प्रति, लेखा परीक्षकों की रिपोर्ट की एक प्रति सहित, केन्द्रीय सरकार को भेजेगी और उसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित करवाएगी |